लोकसभा चुनाव नतीजे आने के बाद ट्वीटर पर 'The Congress Must Die' यानी 'कांग्रेस को खत्म हो जाना चाहिए' जैसी बात कह चुके को क्या राहुल गांधी कांग्रेस में शामिल कर सकते हैं? योगेंद्र यादव का यह भी मानना है कि आजादी की लड़ाई में सबसे बड़ी भूमिका निभाने वाली कांग्रेस ही बीजेपी का विकल्प बनने में सबसे बड़ा रोड़ा है. उनका मानना है कि कांग्रेस सबको साथ लेकर नहीं चल पा रही है. फिर भी मेरा मानना है कि राहुल गांधी की जगह योगेंद्र यादव को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया जाए तो पार्टी में दोबारा जान फूंकी जा सकती है. लेकिन इसके लिए राहुल गांधी और कांग्रेस के बाकी बड़े नेताओं को इस सच्चाई को मानते हुए दिल बड़ा करना चाहिए कि उनके पास अभी फिलहाल कोई ऐसा नेता नहीं है जो भारतीय जनमानस में अकेले दम पर कोई प्रभाव डाल सके. एक ओर जहां कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपना पद छोड़ना चाहते हैं वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता उन्हें समझाने में लगे हैं कि वह इस ज़िम्मेदारी को न छोड़ें.
लेकिन यह भी सच है कि अगर राहुल गांधी पद नहीं छोड़ते हैं, तो कांग्रेस का उबर पाना मुश्किल होगा, क्योंकि ऐसा लगता है कि राहुल की अगुवाई में कांग्रेस अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर चुकी है. गुजरात विधानसभा चुनाव के समय जब राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया था और तब BJP को पार्टी ने कड़ी टक्कर दी थी. कर्नाटक में कांग्रेस ने सरकार बनाई और इसके बाद दिसंबर, 2018 में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनाव जीतकर सरकार बनाई. लेकिन उसके बाद राहुल लोकसभा चुनाव 2019 में सफल रणनीति बनाने में कामयाब नहीं हो पाए और तीनों राज्यों में मिली बढ़त भी गंवा बैठे. अब यह राहुल गांधी या उनकी टीम या दोनों की गलती थी, इसकी समीक्षा पार्टी को खुद ही करनी होगी, लेकिन यह तय है कि उत्तर प्रदेश में SP-BSP-RLD गठबंधन में शामिल न होना बड़ी रणनीतिक चूक थी. इसी तरह अन्य राज्यों में भी क्षेत्रीय पार्टियों से कांग्रेस की बात नहीं बन पाई.
दूसरी ओर, BJP ने बड़ा दिल दिखाते हुए अपनी जीती हुई सीटें भी छोड़कर बिहार में JDU से गठबंधन किया, महाराष्ट्र में भी शिवसेना के साथ इसी तरह गठबंधन किया गया. तो सवाल यह है कि आखिर राहुल गांधी को सलाह देने वालों ने बड़ा दिल क्यों नहीं दिखाया, जबकि वह विपक्षी एकता के नाम पर गठबंधन की अगुवाई का भी ऐलान कर चुके थे. ऐसा लगता है, राहुल गांधी भले ही 15 साल से राजनीति में हैं, लेकिन अभी वह ज़मीनी हकीकत से कोसों दूर हैं और वे आंकड़ों की हकीकत नहीं समझ पा रहे हैं.
लेकिन कांग्रेस के सामने सबसे बड़ा संकट है कि गांधी परिवार के अलावा उनके पास कोई चेहरा नहीं है जो आम लोगों को आकर्षित कर सके. तो फिर बागडोर किसे दी जाए? मुझे ऐसा लगता है कि कांग्रेस और गांधी परिवार के सामने अब दिल बड़ा वक्त करने का समय आ गया है. पार्टी की कमान उन्हें ऐसे शख्स को देनी चाहिए जो सभी तरह के चुनावी आंकड़े, राजनितिक चालो और संगठन को खड़ा कर चलाने की क्षमता रखता हो. जो यह मानता हो कि कांग्रेस ही ऐसी पार्टी है जिसमें सभी विचारों को समाहित किया जा सकता है. मेरी बात थोड़ा अजीब जरूर लग सकती है लेकिन मेरे हिसाब से इस समय योगेंद्र यादव ही कांग्रेस की बागडोर संभालने की सबसे बड़ी क्षमता रखते हैं. वह नेहरू की समाजवादी सोच से भी इत्तेफाक रखते हैं. वह हिंदी बोलने में भी गलती नहीं करेंगे. वह कांग्रेस के प्रदर्शन से निराश भी हैं और उनका मानना है कि वर्तमान कांग्रेस ही BJP का विकल्प बनने में सबसे बड़ा रोड़ा है. वह कांग्रेस को पुरानी कांग्रेस बनाने की बात करते हैं और यह माद्दा कम से कम अभी किसी कांग्रेस नेता में नहीं दिखता है.
लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि योगेंद्र यादव ही कांग्रेस के चेहरा बन जाएं. राहुल गांधी खुद को पीएम पद का उम्मीदवार बताते हुए पूरे देश का दौरा करें और उनके लिए रणनीति बनाने का काम योगेंद्र यादव करें जो कि जमीन से जुड़कर किसान की आवाज उठाते हैं और इन्हीं मुद्दों से जुड़ा संगठन भी चलाते हैं. इसके अलावा कांग्रेस के दूसरे सभी बड़े नेताओं को उन्हें उनके प्रदेश भेज देना चाहिए. वे सभी अपने-अपने राज्यों में जाकर योगेंद्र यादव की सलाह पर कांग्रेस के संगठन को मजबूत करने का काम करें. कांग्रेस को फिर से खड़ा करना है तो इतना बड़ा तो दिल करना ही पड़ेगा. नहीं तो ऑक्सफोर्ड और हावर्ड से पढ़े सलाहकार जो जमीनी हकीकत से बिलकुल कटे हुए हैं, पार्टी की ऐसी ही मिट्टी पलीद कराते रहेंगे.
योगेंद्र यादव ने बताया लोकसभा चुनाव में कांग्रेस कहां पिछड़ गई
मानस मिश्र ndtv.in में चीफ कॉपी एडिटर हैं
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