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This Article is From Apr 28, 2018

क्यों फ़र्ज़ी बाबाओं के चंगुल में लोग फंस रहे हैं?

Akhilesh Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 28, 2018 22:09 pm IST
    • Published On अप्रैल 28, 2018 22:09 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 28, 2018 22:09 pm IST
'गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागूं पांय, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय.' कबीर की अमरवाणी कहती है कि अगर गोविंद और गुरु दोनों साथ खड़े हों तो पहले गुरु के पैर छूने चाहिए क्योंकि उन्होंने ही गोविंद के दर्शन कराए. जब मन में अंधेरा हो तो दीपक दिखाता है गुरु. जब संसार की इस विशाल भूल-भुलैया में भटकने लगें तो हाथ पकड़ कर सही रास्ते पर ले जाता है गुरु. जब आत्मा में वास कर रहे ईश्वर से साक्षात्कार करना हो तो दिशा बताता है गुरु. जब जन्म-मृत्यु के चक्र से उबर कर मोक्ष प्राप्त करना हो तो साधन बनता है गुरु. सत्य-असत्य का भेद कराता है गुरु. सांसरिक बंधनों से मुक्ति दिलाता है गुरु.

लेकिन सनातन धर्म इस लिहाज से अलग है कि उसमें न एक गुरु है, न एक भगवान है और न ही कोई एक किताब. जीवन जीते हुए अनुयायी अपने हिसाब से बातों को सीखता है और उन पर अमल करता है. कई लोग जल्दी में होते हैं तो कलियुग में उनके लिए इंस्टेंट मोक्ष दिलाने की बात करने वाले भी मिल जाते हैं. ये खुद को संत, बाबा, बापू और यहां तक कि भगवान आदि संबोधनों से कहलवाना और इस तरह इन पवित्र संबोधनों को बदनाम करना पसंद करते हैं.

ये चित्र-विचित्र वेशभूषाओं में होते हैं. कई बार तो विदूषक जैसे भी दिखते हैं. अंट-शंट बातें कर लोगों को गुमराह करते हैं. कभी ताबीज तो कभी भभूत देकर आंखों में धूल झोकते हैं. जीवन के दुखों, कष्टों और तकलीफों का हल ढूंढने वालों को तत्काल समस्याएं हल कराने का झांसा देते हैं. किसी को नौकरी चाहिए, किसी की शादी नहीं हो रही, किसी को बच्चा नहीं हो रहा, किसी पर लक्ष्मीजी की कृपा नहीं हो रही, ये आधुनिक बाबा सारी समस्याओं के हल का दावा करते हैं.

शुरुआत छोटी जगह से होती है. फिर कानों-कान खबर फैलती है और देखते ही देखते ही करोड़ों-अरबों का विशाल साम्राज्य खड़ा हो जाता है. तंत्र-मंत्र की बात करने वाले इन स्वयंभूओं की दोस्ती नेताओं से भी होती है जो पर्चा कब भरना है और शपथ कब लेना है तक जैसे हर सवाल के जवाब ढूंढने के लिए इनके पास आते हैं.

इनकी मेहरबानी से बाबाओं का धंधा भी खूब फलता-फूलता है. सरकारी जमीन कौड़ियों के मोल आश्रमों को दे दी जाती है. इनका प्रभाव इतना बढ़ता है कि चुनावों से पहले नेता इनके चक्कर लगाते हैं ताकि वे उनके अंधभक्तों के वोट हासिल कर सकें. लेकिन धीरे-धीरे इनके आश्रमों के तहखानों और कोठरियों के काले राज सामने आने लगते हैं. कोई नाबालिग लड़कियों से बलात्कार करता है तो कोई हत्या और डकैती जैसे संगीन जुर्म में दोषी पाया जाता है. कोई जमीन हड़पता है तो कोई टैक्स चोरी करता है.

वैसे एक बड़ा वर्ग मानता है कि इतने विशाल और पुरातन सनातन धर्म को इन ढोंगी बाबाओं की वजह से बदनाम नहीं किया जा सकता. हकीकत तो यह है कि हजारों-लाखों सच्चे गुरु हमारे आसपास हैं. पर हम उन्हें ढूंढ नहीं पाते. सच का साक्षात्कार करने में देर होती जाती है जिसका फायदा मुट्ठी भर लोग उठाते हैं. लेकिन सवाल यह भी उठता है कि आखिर इन फर्जी बाबाओं का इलाज क्या है. क्या समय रहते जनता को इनके बारे में सतर्क नहीं किया जा सकता. इन्हें वैधता दिलाने से हमारे नेताओं को नहीं रोका जा सकता? इनके अंधभक्तों को क्या सही रास्ते पर नहीं लाया जा सकता? और एक बड़ा सवाल यह भी कि भटके और गुमराह समाज के एक बड़े हिस्से को सही रास्ता दिखाने वाले सच्चे गुरु आखिर हैं कहां और वे सामने क्यों नहीं आते.

(अखिलेश शर्मा एनडीटीवी इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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