केरल में हाल ही में एक दर्दनाक घटना हुई. इसमें महज 27 साल के दिमागी रूप से अस्वस्थ आदिवासी मधु को केरल के तथाकथित शिक्षित लोगों की भीड़ ने उसके हाथ बांधे, फिर उसके साथ सेल्फी ली, वीडियो बनाएं और जब यह सब करके उनका मन भर गया तो बेरहमी से पीट-पीटकर उसे अधमरा कर छोड़ दिया. आपने बिलकुल सही पढ़ा. वह दिमागी रूप से ठीक नहीं था और महज 27 साल का था.
मैं चाहती हूं कि जिन लोगों ने भीड़ से पिटते लाचार मधु के साथ सेल्फी ली उन्हें उस सेल्फी को बार-बार देखना चाहिए. अपने चेहरे, हाव-भाव को बार-बार परखना चाहिए, समझना चाहिए कि क्या वह भाव वास्तविक हैं या किसी गुरूर या भटकाव की देन. और सोचना चाहिए कि दुखी व परेशान कर देने वाले हालात में वह आखिर इतना खुश कैसे थे, आखिर कैसे बिना विचलित हुए उन्होंने ये सेल्फी ले ली... और क्या उनके किसी करीबी के साथ ऐसा होने पर भी वह इतने ही सहज रहते, सेल्फी लेते, वीडियो बनाते और फिर उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट भी करते... सच, हद है इस सड़े-गले और अंदर से मर चुके शिक्षित समाज की...
खबर और मधु की एक तस्वीर देखने के बाद मैंने गूगल पर इसकी और खबरें व तस्वीरें देखी. हर तस्वीर में मधु का चेहरा मसूमियत से भरा था. कहीं भी ड़र नहीं था उसके चेहरे पर, क्योंकि उसे शायद इस अमानवीय व्यवहार की उम्मीद ही नहीं थी, जो उसके साथ हुआ. जरा सोचिए दिमागी संतुलन कैसा खराब था, मधु का, जो बंधें हाथों में भी मासूम सी मुस्कान लिए उन लोगों को देख रहा था जो कुछ ही देर में उसपर भूखे भेड़ियों की तरह झपटने वाले थे या उस 'शिक्षित' भीड़ का, जिसने कमजोर निहत्थे मधु के हाथ बांध कर बेरहमी से पीटा और उसे मार ड़ाला. ऐसे हादसे आजकल देश के कई कोनों से सामने आ रहे हैं, लेकिन केरल जैसे राज्य में, जहां शिक्षा का स्तर बहुत अच्छा है ऐसा होना सोच में ड़ाल देता है.
सोच रही हूं मधु के भी तो कुछ सपने होंगे, वह भी अपने जीवन में खुशी की किलकारियां भरता होगा. वो भी अक्सर मुस्कुराकर कभी यूं ही आईने में खूब सेल्फी के पोज देता होगा, कभी वो भी अपनी पहुंच से परे की उस दुनियां को जीने के सपने लेता होगा, जिसने उसे दुनिया से विदा कर दिया...
एक बात तो बताइए, आखिर शिक्षित होने का मतलब क्या है. क्या महज स्कूल में दिया गया किताबी ज्ञान, कुछ वाएवा और टेस्ट पास करने से मिलने वाले सर्टिफिकेट और डिग्रियां ही आपको शिक्षित बनाती हैं... क्या जीवन की समझ, भावनाओं का मोल, जान की कीमत, विवेकशीलता, मानवता या इंसानियत, एकजुटता के मोल को समझना, ये सब बेकार की भावनाएं या सोच हैं जिनका एक शिक्षित व्यक्ति के जीवन में कोई मोल नहीं... क्योंकि इसके बल पर कोई भी स्कूल या कॉलेज सार्टिफिकेट या डिग्री नहीं देता, इनके लिए कोई स्पेशल कोर्स नहीं कराया जाता...
अगर यही सच है, तो फिर क्या फायदा ऐसे शिक्षा अभियानों का जो शिक्षित नहीं, बल्कि गुरूर में लबालब गंवार और संवेदनहीन लोगों की जमात बढ़ा रहे हों. इससे अच्छा तो वो अशिक्षित है, जिसमें इंसानियत है और जो ठीक वैसा ही व्यवहार करता है जैसा उसे प्रकृति ने बनाया है. किसी स्कूल या कॉलेज में जाकर उसने खुद को कृत्रिम शिक्षित तो नहीं बनाया न...
शायद बहुत से लोग इस बात से सहमत न होंगे, क्योंकि सब चाहते हैं कि वे या उनके बच्चे खूब पढ़ें और बड़े आदमी बनें. लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि कबीर ने बताया था 'बड़ा तो खजूर भी होता है...' जरूरत है तो झुकना, दूसरों की मदद करना, औरों के काम आना सीखने की... पर हम डिग्रियों के ढ़ेर को ही शिक्षा मान बैठे.
आज हम डॉक्टर, टीचर, इंजीनियर, बिजनेसमैन बनने की शिक्षा तो दे रहे हैं, लेकिन एक इंसान को किस तरह से इंसान ही बने रहने की जरूरत है यह सिखाना भूल गए हैं. आप मानें या न मानें यह सच हैं. क्योंकि अगर यह सच न होता तो मासूम सा मधु आज जिंदा होता... क्योंकि अगर ऐसा न होता, तो दिमागी रूप से बीमार मधु को पीटते लोग हंस कर वीडियो और सेल्फी न लेते... और क्योंकि अगर ऐसा न होता, तो केरल देश के सबसे शिक्षित राज्यों में न होता...
अब आप खुद से एक सवाल करें. सवाल ये कि यह जानते हुए कि कानून को अपने हाथ में लेना अपराध है, न्याय के लिए अलग व्यवस्था है, प्रणाली है, उन लोगों ने ऐसा किया. तो ये लोग शिक्षित कैसे हुए... किताबों में पढ़ा, पेपरों में जवाब देकर अंक लिए और असल जीवन में उसका अमल करने में फेल हुए, तो क्या उनसे उनकी डिग्रियां वापस छीनी नहीं जानी चाहिए... ये सवाल खुद से करिएगा जरूर...
अनिता शर्मा एनडीटीवी खबर में चीफ सब एडिटर हैं
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This Article is From Feb 25, 2018
दिमाग से अस्वस्थ कौन था, मधु या उसे पीट-पीट कर मारने वाले...
Anita Sharma
- ब्लॉग,
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Updated:फ़रवरी 25, 2018 13:18 pm IST
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Published On फ़रवरी 25, 2018 13:16 pm IST
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Last Updated On फ़रवरी 25, 2018 13:18 pm IST
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