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This Article is From Apr 08, 2016

बीजेपी के उत्तरप्रदेश मिशन के लिए एक नया नेता, जो कभी था एक 'चाय वाला...'

Akhilesh Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 09, 2016 10:38 am IST
    • Published On अप्रैल 08, 2016 17:23 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 09, 2016 10:38 am IST
आखिरकार बीजेपी ने उत्तर प्रदेश के लिए अपने प्रदेश अध्यक्ष का नाम घोषित कर ही दिया। वैसे तो ये काम जनवरी में ही हो जाना चाहिए था मगर इसके लिए हिंदू नव वर्ष विक्रम संवत 2073 के पहले दिन तक इंतज़ार किया गया। ये संयोग नहीं है क्योंकि जो नाम चुना गया, उसकी पहचान भी हिंदुत्व के मुद्दों को लेकर होती रही है।

47 साल के केशव प्रसाद मौर्य यूपी बीजेपी के अध्यक्ष होंगे। वो फूलपुर से पार्टी के सांसद हैं। ये वही सीट है जिससे तीन बार देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू चुनाव जीते तो किसी ज़माने में अतीक अहमद जैसे बाहुबली भी। मोदी लहर पर सवार होकर बीजेपी ने ये सीट पहली बार जीती। मौर्य ने तीन लाख वोटों से क्रिकेटर मोहम्मद कैफ़ को हराया।

मौर्य विधायक भी रह चुके हैं। कौशाम्बी में किसान परिवार में पैदा हुए मौर्य ने संघर्ष किया। बीजेपी कहती है उन्होंने पढ़ाई के लिए अखबार भी बेचे और चाय की दुकान भी चलाई। चाय पर जोर इसलिए क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी ऐसा करते थे। मौर्य आरएसएस से जुड़े। पूर्णकालिक रहे। बाद में वीएचपी और बजरंग दल में सक्रिय रहे। हिंदुत्व से जुड़े राम जन्म भूमि आंदोलन, गोरक्षा आंदोलनों में हिस्सा लिया और जेल गए।

लेकिन यूपी जैसे विशाल राज्य के राजनीतिक पटल पर उनकी बड़ी पहचान नहीं है। शायद उनका लो प्रोफ़ाइल होना भी उनके पक्ष में गया क्योंकि बीजेपी अध्यक्ष के तौर पर उनका काम संगठन को मज़बूत करना है। ये माना जा सकता है कि वो बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं होंगे क्योंकि बीजेपी अखिलेश यादव और मायावती जैसे बड़े चेहरों के सामने कोई बड़ा चेहरा ही उतारना चाहेगी।

मौर्य कोइरी समाज के हैं। कुर्मी, कोइरी और कुशवाहा अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी में आते हैं और बीजेपी को गैर यादव जातियों में इन जातियों का समर्थन मिलता रहा है। उन्हें बना कर बीजेपी ने पिछड़ी जातियों को अपने समर्थन का संदेश भी दे दिया है।

मगर बीजेपी की रणनीति अगड़े-पिछड़े दोनों वर्गों को साथ लाने की है। राज्य में 14 साल से सत्ता के वनवास को खत्म करने के लिए ऐसा जरूरी भी है। ऐसे में लगता है कि बीजेपी कुछ महीनों बाद अगड़े समाज के किसी बड़े नेता को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर सकती है। बीजेपी का कहना है कि पार्टी यूपी को लेकर अगड़े-पिछड़े वर्ग को साथ लेकर चलती रही है। इसके लिए अटल बिहारी वाजपेयी और कल्याण सिंह का उदाहरण दिया जाता है। अब इसका उलट हो सकता है। यानी ओबीसी मोदी पीएम तो कोई ब्राह्मण यूपी का सीएम उम्मीदवार।

मौर्य के तौर पर बीजेपी ने अगले साल होने वाली यूपी की जंग के लिए अपनी क़वायद शुरू कर दी है। पार्टी ने ज़िला और मंडल स्तर पर बड़ी संख्या में ओबीसी नेताओं को कमान देकर सामाजिक समीकरणों को दुरुस्त करने की कोशिश भी की है। पार्टी कहती है कि वो यूपी में विकास के मुद्दे पर ही चुनाव लड़ेगी। मगर मौर्य को अध्यक्ष बनाए जाने से साफ है कि बीजेपी विकास में हिंदुत्व का छौंक भी लगाना चाहती है।

मौर्य पर कई आपराधिक मामले दर्ज हैं। लोकसभा चुनाव के समय चुनाव आयोग को दिए हलफनामों में मौर्य ने कहा है कि उन पर दस गंभीर आरोपों में मामले हैं।

बीजेपी अब हर महीने पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और गृह मंत्री राजनाथ सिंह की यूपी में नियमित तौर पर रैलियां करने की योजना भी बना रही है। बीच-बीच में प्रधानमंत्री भी यूपी जाते रहेंगे। दलित समाज को साथ लेने के लिए चौदह अप्रैल को बाबा साहेब अंबेडकर की जयंती से यूपी में कई कार्यक्रम चलाए जाएंगे।

यूपी का चुनाव बीजेपी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। पहली बार उसे राज्य में सहयोगी पार्टी के साथ 80 में से 73 लोकसभा सीटें मिली हैं। ये बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के लिए भी बड़ी परीक्षा है जो बिहार की करारी हार के बाद दबाव में हैं। ऐसे में बीजेपी धीरे-धीरे ही सही यूपी के लिए कदम आगे बढ़ाने लगी है।

(अखिलेश शर्मा एनडीटीवी इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं।)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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