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बिहार: लालू और नीतीश राज में अपराध, किसने बिगाड़ा लॉ एंड ऑर्डर

Sanjeev Kumar Mishra
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 21, 2025 18:29 pm IST
    • Published On जुलाई 21, 2025 18:21 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 21, 2025 18:29 pm IST
बिहार: लालू और नीतीश राज में अपराध, किसने बिगाड़ा लॉ एंड ऑर्डर

बिहार की राजधानी पटना के एक नामी गिरामी अस्पताल में जो हुआ उसे पूरी दुनिया ने देखा. पुलिस ने हत्याकांड के आरोपियों को तो धरदबोचा लेकिन हथियार लहराते बेखौफ बदमाशों का सीसीटीवी फुटेज जिसने भी देखा उसके मन में बिहार की कानून व्यवस्था को लेकर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए. इस तरह की जघन्य वारदातों से प्रदेश की छवि को भी गहरा धक्का पहुंचा है. इसमें कोई संदेह ही नहीं है कि लोग खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. इस घटना ने उन्हें यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या बिहार में बदमाशों के हौसले बुलंद हैं? इस हत्याकांड के बाद बिहार के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक कुंदन कृष्णन ने जिस तरह का बेतुका बयान दिया उसने विपक्ष को बैठे बिठाए एक मौका दे दिया. पूरा विपक्ष, नीतीश सरकार पर हमलावर हो गया. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने तो बिहार को 'क्राइम कैपिटल ऑफ इंडिया' तक बता दिया. तो वहीं राजद नेता तेजस्वी यादव ने भी एनडीए सरकार पर जमकर हमला बोला, उन्होंने कहा कि बिहार को तालिबान बना दिया गया है. 

जनता में सोच-समझकर बोलना चाहिए 

16 जुलाई, 2025 को बिहार में हत्या की घटनाओं में बढ़ोत्तरी संबंधी प्रश्न के जवाब में कुंदन कृष्णन ने कहा कि हाल ही में, पूरे बिहार में बहुत सारी हत्याएं हुई हैं. ज्यादातर हत्याएं अप्रैल, मई और जून के महीनों में होती हैं. यह सब बारिश आने तक जारी रहता है, क्योंकि ज्यादातर किसानों के पास इस समय कोई काम नहीं होता. बारिश के बाद, किसान समुदाय के लोग व्यस्त हो जाते हैं और घटनाएं कम हो जाती हैं. इसलिए बिहार पुलिस ने एक नया प्रकोष्ठ बनाया है. उस प्रकोष्ठ का काम सभी पूर्व शूटरों और सुपारी किलरों का डेटाबेस तैयार करना और उन पर नजर रखना होगा.

बिहार पुलिस के एडीजीपी कुंदन कृष्णन के असंवेदनशील बयान ने विपक्ष को सरकार पर हमले का मौका दे दिया था.

बिहार पुलिस के एडीजीपी कुंदन कृष्णन के असंवेदनशील बयान ने विपक्ष को सरकार पर हमले का मौका दे दिया था.

एडीजी का मौसम वाला बयान अपराधियों पर लगाम लगाने की पुलिस की इच्छाशक्ति पर बड़े सवाल खड़े करता है. इस बयान को विपक्ष ने पुलिस की 'नाकामी' छिपाने का बहाना बताया, जिससे बिहार की और अधिक जगहंसाई हुई.

जंगलराज से तुलना कितना सही?

सन 1990 में राजद सुप्रीमो लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने. लालू के मुख्यमंत्री बनने के बाद बिहार में नए बाहुबलियों का उभार हुआ. कानून व्यवस्था की स्थिति दिन-प्रतिदिन बद से बदतर होती चली गई. कानून व्यवस्था की बदहाल स्थिति के कारण बिहार की वार्षिक वृद्धि दर गिरकर 0.6 फीसद रह गई. 1990 के दशक में लालू-राबड़ी शासन के दौरान बिहार को 'जंगलराज' नाम मिला. खराब कानून व्यवस्था, अपहरण उद्योग और भ्रष्टाचार ने राज्य की आर्थिक स्थिति को बुरी तरह प्रभावित किया था. औद्योगिक निवेश नगण्य था, और जो भी उद्योग थे, वे या तो बंद हो गए या राज्य से पलायन कर गए. आर्थिक विकास की मंद गति के बावजूद इसी समय चारा घोटाला सरीखा पाप किया गया. राज्य के पशुपालन विभाग से 950 करोड़ रुपये गबन कर लिए गए. बाद में इस घोटाले में तत्कालीन मुख्यमंत्री और आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र को दोषी ठहराया गया. तत्कालीन योजना आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट में माना था कि 2001 से 2005 के बीच बिहार की विकास दर मात्र 2.9 फीसद थी.

कानून-व्यवस्था की स्थिति इतनी खराब थी कि बड़े अधिकारी भी अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंतित रहते थे. क्योंकि उस समय अपहरण एक उद्योग का रूप ले चुका था. इन विषम परिस्थितियों में नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री का कांटो भरा ताज संभाला. 2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश कुमार का पहला लक्ष्य कानून-व्यवस्था में सुधार करना था. उन्होंने 'बिहार में अपराध को नियंत्रित नहीं किया जा सकता' इस मिथक को तोड़ते हुए शस्त्र अधिनियम के तहत लंबित मामलों के त्वरित निपटारे पर जोर दिया. सरकार ने अपराध पर 'जीरो टॉलरेंस' नीति अपनाई और जिलाधिकारियों व पुलिस अधीक्षकों को कानून-व्यवस्था के लिए सीधे जिम्मेदार ठहराया.

जनवरी 2006 से दिसंबर 2014 के बीच 80,000 से अधिक अपराधियों को सजा सुनाई गई. इनमें 200 से अधिक अपराधियों को फांसी की सजा, 1,522 को आजीवन कारावास और लगभग 4,000 अपराधियों को 10 साल से अधिक की सजा हुई.

पटना हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान बिहार में आरजेडी की सरकार में शासन को जंगलराज जैसा बताया था.

पटना हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान बिहार में आरजेडी की सरकार में शासन को जंगलराज जैसा बताया था.

लालू यादव के कार्यकाल में बिहार में कानून-व्यवस्था की स्थिति बेहद खराब थी. अपराध अपनी चरम सीमा पर था और आम जनता में भय का माहौल था. अपहरण, हत्या और डकैती जैसी घटनाएं आम थीं. उस दौरान बिहार हाईकोर्ट ने भी राज्य की स्थिति पर तल्ख टिप्पणी करते हुए उसे 'जंगलराज' की संज्ञा दी थी. अब नीतीश कुमार के कार्यकाल को लेकर भी लोग सवाल उठा रहे हैं. कई लोग इसे 'गुंडाराज' का नाम दे रहे हैं, यह दर्शाता है कि हाल की घटनाओं ने जनता के मन में कितना भय पैदा कर दिया है.

आंकडें झूठ नहीं बोलते 

बिहार सरकार के आंकड़ें राज्य में आपराधिक घटनाओं की पूरी कहानी बयां करते हैं. अगर हत्या की घटनाओं की बात करें तो 2001 में 3619, 2005 में 3423 और 2020 में 3149 हत्या के मामले दर्ज हुए. 2001 से 2020 तक हत्याओं में लगभग 12.9 फीसदी की गिरावट आई. हालांकि, 2025 के जनवरी महीने में 156 हत्याएं दर्ज की गईं, जिसका मासिक औसत (156) 2020 के मासिक औसत (लगभग 262) से काफी कम है. बिहार में डकैती की घटनाएं 2001 में 1293 और 2005 में 1191 थीं. लेकिन 2020 में यह संख्या घटकर केवल 222 रह गई. साल 2005 से 2020 तक डकैती की घटनाओं में 81.4 फीसदी की भारी कमी आई. यह नीतीश सरकार के शुरुआती कार्यकाल की बड़ी उपलब्धि थी. जनवरी 2025 में 18 डकैतियां दर्ज की गईं, जो 2020 के मासिक औसत के करीब है. लालू राज में फिरौती के लिए अपहरण 'जंगलराज' का पर्याय बन गया था. 2001 में 385 और 2005 में 251 मामले थे, लेकिन 2020 में यह संख्या घटकर केवल 42 रह गई. 2005 से 2020 तक फिरौती के लिए अपहरण में करीब 83.2 फीसद की भारी कमी आई, जो 'सुशासन' के सबसे बड़े संकेतकों में से एक था. इस साल जनवरी महीने तक छह मामले दर्ज हुए थे. आंकड़ों की मानें तो दुष्कर्म के मामले 2001 में 746 से बढ़कर 2005 में 973 और 2020 में 1438 हो गए. 2005 से 2020 तक दुष्कर्म में लगभग 47.8 फीसद की महत्वपूर्ण वृद्धि दर्ज की गई. यह एक गंभीर चिंता का विषय है और महिला सुरक्षा पर सवाल खड़े करता है. अकेले जनवरी 2025 में 121 मामले दर्ज हुए.

बिहार गाहे-बगाहे दंगों की आग में झुलसता है. इससे जुड़े आंकड़ों पर नजर डाले तो 2001 में 8520, 2005 में 7704, और 2020 में 9419 मामले दंगे के दर्ज हुए. वहीं 2005 से 2020 तक दंगों में लगभग 22.3 फीसदी की वृद्धि हुई, जो चिंताजनक है. इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि नीतीश कुमार के लंबे कार्यकाल में कुछ प्रमुख अपराधों जैसे डकैती और फिरौती के लिए अपहरण में उल्लेखनीय कमी आई है, जो उनकी 'सुशासन' की छवि को पुष्ट करता है. हालांकि, दुष्कर्म और दंगों जैसी घटनाओं में बढ़ोतरी चिंता का विषय बनी हुई है.

इस महीने पटना के एक अस्पताल में हुई हत्या की वारदात से सीएम नीतीश कुमार की सुशासन बाबू वाली छवि को नुकसान पहुंचा है.

इस महीने पटना के एक अस्पताल में हुई हत्या की वारदात से सीएम नीतीश कुमार की सुशासन बाबू वाली छवि को नुकसान पहुंचा है.

बुलडोजर नीति और कठोर कार्रवाई

बिहार में अपराध की घटनाओं पर नकेल कसने के लिए अब सरकार को केवल बयानबाजी से आगे बढ़कर ठोस कदम उठाने होंगे. उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सरीखे राज्यों में अपराधियों के खिलाफ 'बुलडोजर नीति' एक प्रभावी हथियार साबित हुई है. इस नीति के तहत, अपराधियों की अवैध संपत्तियों को ध्वस्त कर दिया जाता है, जिससे उन्हें आर्थिक रूप से भी नुकसान होता है और उनके हौसले भी पस्त होते हैं. बिहार में भी इस तरह की नीतियों को अपनाने पर विचार करना चाहिए. कुख्यात अपराधियों और संगठित गिरोहों के अवैध साम्राज्य को ध्वस्त कर देना चाहिए, फिर चाहे इसके लिए कानून के दायरे में रहकर बुलडोजर ही क्यों ना चलाना पड़े. इसके अलावा, पुलिस बल का आधुनिकीकरण, बेहतर प्रशिक्षण और खुफिया जानकारी पर आधारित ऑपरेशन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. फास्ट-ट्रैक अदालतों का गठन कर आपराधिक मामलों का तेजी से निपटारा बहुत आवश्यक है ताकि पीड़ितों को न्याय और अपराधियों को जल्द सजा मिल सके. नीतीश कुमार को अपनी 'सुशासन बाबू' की छवि को फिर से स्थापित करने के लिए निर्णायक कदम उठाने ही होंगे. कानून,व्यवस्था को ठेंगे पर रखने वालों को यह स्पष्ट संदेश देना ही होगा कि बिहार में अब 'जंगलराज' या 'गुंडाराज' की कोई गुंजाइश नहीं है. जब तक अपराधियों के मन में कानून का भय नहीं होगा, तब तक आम जनता सुरक्षित महसूस नहीं कर पाएगी. यह समय है कि सरकार कड़े फैसले ले और उन्हें प्रभावी ढंग से लागू करे, ताकि बिहार में शांति और व्यवस्था का माहौल फिर से स्थापित हो सके.

अस्वीकरण: लेखक देश की राजनीति पर पैनी नजर रखते हैं. वो राजनीतिक-सामाजिक समेत कई मुद्दों पर प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लिखते रहे हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.

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