बिहार में पहले चरण के मतदान के लिए मैं बेगूसराय और खगड़िया के इलाके में था. मेरा मकसद था कि इन दो जिलों में मतदान कवर करने के बाद मैं पूर्णिया निकल जाउंगा, क्योंकि अगले चरण में सीमांचल में ही चुनाव होना है और पूरा सीमांचल दूसरे चरण का केंद्र बनने वाला है. सीमांचल की 24 सीटें तय करेंगी कि पटना में सत्ता की चाभी किसके हाथ आने वाली है. सीमांचल से कांग्रेस के दो सांसद हैं, किशनगंज और कटिहार से साथ ही पूर्णिया से पप्पू यादव भी हैं. वहीं घुसपैठियों के मुद्दे को लेकर बीजेपी ने भी सब कुछ सीमांचल में झोंक दिया है.
पहले चरण के मतदान के बाद सीमांचल मीडिया के लिए भी सबसे पसंदीदा जगह बना हुआ है. वजह कई हैं, जैसे सभी राजनीतिक दलों के बड़े नेता यहां आ रहे हैं. मैंने भी सोचा चलो पूर्णिया चलते हैं तो पहले चरण के मतदान के दिन पहले तेघरा विधानसभा में घूमता रहा. यह सीट सीपीआई के कब्जे में है, जहां बीजेपी उसे कड़ी टक्कर दे रही है, फिर मैं निकल पड़ा चेरिया बरियारपुर विधानसभा के लिए, जहां आरजेडी की टक्कर जेडीयू से है और वहां पर रोचक मुकाबला हो रहा है. वहां से मैं खगड़िया जिले में घुस गया और पहुंच गया शहरबन्नी. यह गांव स्व राम विलास पासवान का है और चिराग पासवान यहीं वोट करने के लिए आने वाले थे.

यह इलाका बिहार के सबसे पिछड़े इलाकों में से एक है. पलायन यहां का सबसे बड़ा मुद्दा है, यहां के कई लोग आपको दिल्ली में रिक्शा चलाते हुए नजर आ जाएंगे. चिराग ने अपने पैतृक गांव शहरबन्नी में वोट डाला. खगड़िया से हम निकल पड़ते हैं पूर्णिया की ओर, और शुरू होता है सड़क पर हमारा संघर्ष.
चुनाव के दूसरे चरण के लिए प्रचार में तीन दिन ही बचे हैं और नेताओं ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. प्रचार करने के लिए नेता भी हाइवे के आसपास की जगह ही चुनते हैं, जिसकी वजह से इन दिनों सड़कों पर जाम आम बात है. दिल्ली, गुड़गांव या नोएडा में यदि एक दिन भी जाम लग जाए तो नेशनल मीडिया खासकर न्यूज चैनलों में खबर बन जाती है, लेकिन सुदूर गांव देहात और छोटे शहरों में भी जाम एक आम समस्या है. कई ऐसी जगह भी मिली, जहां एक रोड है और उसके दोनों तरफ दुकानें हैं, पूरा बाजार वहीं है और वही एकमात्र रास्ता है जिस पर आपको जाना है. आप चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते हैं.

यही हाल नेशनल हाइवे का भी है. बेगूसराय से पूर्णिया के हाईवे पर भी जाम मिला, वजह थी सड़क के किनारे होने वाली रैलियां. हम एक शहर से दूसरे शहर खिसकते रहे और जाम मिलता गया, हम भी उसके शिकार होते गए. बाद में पता चला कि एक बड़े नेता के रोड किनारे रैली होने की वजह से ट्रैफ़िक रोक दिया गया है, इससे हुआ कि पूरी व्यवस्था ही अस्त व्यस्त हो गई.
खैर किसी तरह हम प्रेस की गाड़ी है, कवरेज के लिए जा रहे हैं, कहकर दाएं बाएं से निकलते गए. कई जगह गाड़ियों की लंबी क़तारों को सही करवाया, तो कहीं पुलिस को समझा-बुझाकर आगे निकले, लेकिन तब तक वक्त काफी जाया हो चुका था. जहां चार घंटे लगने थे, वहां सात घंटे लगे. मगर जब शाम होने तक पूर्णिया पहुंचे तब तक जिस कवरेज के लिए आए थे वो शुरू नहीं हुआ था.
आखिरकार हमने वो असाइनमेंट भी पूरा कर लिया, लेकिन रास्ते का ट्रैफ़िक जाम बहुत देर तक जेहन में छाया रहा. बस इतना संतोष था कि एक रिपोर्टर के लिए ये आम बात है जैसे कि ट्रैफ़िक जाम आम लोगों के लिए आम हो गया है.