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तुलसी की चौपाई में छिपे हैं अयोध्या-बनारस के नतीजे

Awatansh Chitransh
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जून 10, 2024 12:41 pm IST
    • Published On जून 07, 2024 22:38 pm IST
    • Last Updated On जून 10, 2024 12:41 pm IST

देश में नई सरकार आने वाली है. नई क्या कहें तीसरी बार भाजपा की सरकार का गठन होने जा रहा है. लेकिन भारत की राजनीति में पहली बार अयोध्या और बनारस का चुनाव चर्चा का केन्द्र है. पांच सौ वर्ष बाद अयोध्या में श्री रामचंद्र की वापसी के बाद भी भाजपा अयोध्या लोकसभा सीट हार जाती है. और खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बनारस सीट पर डेढ़ लाख की मार्जिन से चुनाव जीत पाते हैं. हो सकता है कि विदेशों में भी खूब चर्चा चल रही हो. इस बहाने मुझे गोस्वामीतुलसीदास याद आ गए.

उन पर बात शुरू करने से पहले स्वामी प्रसाद मौर्य के तुलसी-हमला पर भी चर्चा करना जरूरी है. स्वामी यूपी के पिछड़ी जातियों के दिग्गज नेता हैं. बसपा में राजनीतिक उदय हुआ और भाजपा में सर्वांगीण विकास इसके बाद वह समाजवादी पार्टी में अपनी लाइन बनाने लगे. इस प्रयास में उन्होंने पिछले साल तुलसीदास की रचनाओं के सहारे हिन्दू समाज पर कई गंभीर हमले किए. हो हल्ला और हंगामा मचा, मार पिट्टौवल की नौबत आ गई. समाजवादी पार्टी में हनुमान भक्त धड़ा नाराज हुआ और स्वामी को पार्टी छोड़कर अलग राह पकड़ना पड़ा. स्वामी प्रसाद मौर्य की लाइन अखिलेश यादव को सूट कर रही थी. सो उन्होंने मौनव्रत धारण कर लिया और इतना बोला कि मैं शूद्र हूं. न्यूज चैनलों को लोकप्रिय मसाला चाहिए था. इसलिए स्वामी प्रसाद ने जो लाइन खींची थी वह घर-घर पहुंच गई. अब इसकी मीमांसा कभी और की कैसे भाजपा की प्रचार लाइन सपा के काम आ गई. फिलहाल स्वामी प्रसाद ने तुलसीदास की जिनपंक्तियों के सहारे राजनीतिक हमला किया था.

ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी. 
सकल ताड़ना के अधिकारी. 

इन्ही पंक्तियों के सहारे स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरित मानस और तुलसीदास को बकवास कह दिया जिसके बाद प्रदेश की राजनीतिक सरगर्मी बढ़ा गई. स्वामी ने कहा कि बहुत लोग रामचरित मानस को नहीं पढ़ते हैं. यह सब तुलसीदास ने अपनी खुशी के लिए लिखा है. एक वर्ग को खुश करने के लिए लिखा है. कोई भी धर्म हो, किसी को भी गाली देने का कोई अधिकार नहीं है. तुलसीदास की चौपाई में वह शूद्रों को अधम जाति का बता रहे हैं. उन्होंने मांग की कि सरकार या तो ये शब्द हटाए या इस पर प्रतिबंध लगाए. उस दौरान स्वामी फायर थे. ब्राह्मण और क्षत्रियों को निशाने पर ले रहे थे. हिन्दू धर्म का सत्यानाश का आह्वान करते घूम रहे थे. अपनी सभाओं में बयान दे रहे थे कि तुलसीदास ने रामचरित मानस में ब्राह्मण को पूजनीय बताया है. ब्राह्मण भले ही लंपट, दुराचारी, अनपढ़ और गंवार हो, लेकिन वह ब्राह्मण है तो उसे पूजनीय बताया गया है, लेकिन शूद्र कितना भी ज्ञानी या फिर विद्वान हो, उसका कोई  सम्मान नही है ऐसे धर्म का सत्यानाश हो.

बहरहाल, हम अठारहवीं लोकसभा चुनाव के नतीजों को लेकर अयोध्या और बनारस की चर्चा पर लौटते हैं. तुलसीदास राम भक्त थे और रामचरित मानस बनारस में लिखते हैं और बकायदा बनारस की पंडित परंपरा के तहत उस पर मुहर लगने के बाद ही उसे जनता को समर्पित करते हैं. वही तुलसीदास आज से पांच सौ वर्ष पहले लिखते हैं कि...

कोऊ नृप होई हमै का हानि,
चेरी छाड़ि कि होइब रानी.

यानी शासन कोई हो हमें न हानि और ना लाभ है. मैं दासी या जैसे भी हूं वैसे ही आगे भी रहूंगी. तो मानिए कि तुलसीदास को भारत के लोकतंत्र पर गजब का भरोसा था. इसलिए कहा जाता है कि बनारस जीवन का उपदेश है. तुलसीदास ने जो भी लिखा वह लोकभावना थी. वह आज भी कायम है इसलिए बहुत लोगों को स्वामी प्रसाद मौर्य की बातें सही लगी और वह खुद को भाजपा के राम प्रचार के साथ सहज नहीं पा रहा था. तो बहुत लोगों ने दिल्ली के राजा को खुली चुनौती दी कि आप राजा रहिए लेकिन हमें हानि नहीं होनी चाहिए. अयोध्या और बनारस के लोग दिल्ली के राजा से नाराज हो गए. क्योंकि उन्होंने स्थानीय जनता को हानि पहुंचाया था. जनता ने अपनी व्यवस्था में खलल पाकर दिल्ली की व्यवस्था दुरूस्त कर दी. 

खैर, मौजूदा वक्त में तुलसीदास की एक और चौपाई पर नजर डालना जरूरी है. तुलसीदास लिखते हैं...

हम चाकर रघुवीर के पटौ लिखौ दरबार. 
अब तुलसी का होएंगे नरके मनसबदार.

इन पंक्तियों में तुलसीदास ने साफ कह दिया कि हम भगवान राम के सेवक हैं, किसी और की चाकरी कैसे कर सकते हैं. कहा जाता है कि दिल्ली के शहंशाह अकबर के दरबार में नौरत्न थे वह चाहते थे कि उनमें तुलसीदास भी शामिल हो जाए. लेकिन तुलसीदास ने मना कर दिया और तब यह चौपाई लिखी गई. तुलसीदास जब चौपाई दोहा, छंद गढ रहे थे तो भारत की सामाजिक व्यवस्था क्या थी इस पर बहुतेरे चिंतकों और लेखकों ने गहरे लेख लिखे हैं. जिन्हें पढ़ना चाहिए. लेकिन इस देश की राजनीतिक व्यवस्था में मनसबदार से लेकर रायबहादुर लोग आज भी प्रभावशाली हैं. और लोकतंत्र इनके इर्द गिर्द बसता है. स्वामी प्रसाद मौर्य ने तुलसी के बहाने ही सही इस बसाहट को फिर झकझोरा है. 

अवतंस चित्रांश- एनडीटीवी में असाइनमेंट डेस्क पर कार्यरत हैं.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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