आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया. आसमान ज़मीन से ही आसमान लगता है तो ज़मीन पर आ गया हूं. आज से काम शुरू. आप सभी को अच्छा लगा, तो मुझे भी लगा. नेताओं की ज़ुबान में युद्ध तो अब आए दिन की बात हो गई है लेकिन दुनिया भर में हो रही घटनाएं युद्ध की भूमिका भी तैयार कर रही हैं. सऊदी अरब के तेल के खदानों पर ड्रोन से हमला हुआ है. शनिवार की सुबह दो धमाके हुए जिसके कारण सऊदी अरब में तेल का उत्पादन घट गया है. दुनिया में हर दिन तेल का जितना उत्पादन होता है उसका पांच प्रतिशत उत्पादन घट गया है. अबक़ैक में दुनिया का सबसे बड़ा तेल संशोधन कारखाना है. ख़ुरैस तेल के खदान पर भी हमला हुआ है. ये दोनों ही सऊदी अरब की तेल कंपनी अरामको के हैं. इस हमले के कारण तेल की कीमतें बढ़ने लगी हैं. सोमवार को ही कच्चे तेल की कीमत 20 प्रतिशत बढ़ गई. 60 डॉलर प्रति बैरल से 72 डॉलर प्रति बैरल हो गया. 1980 के बाद पहली बार एक दिन में इतना उछाल आया है तेल की कीमतों में. इससे पहले की खलबली मची अमरीका के राष्ट्रपति ट्रंप का बयान आ गया है कि उनका मुल्क तेल के उत्पादन बढ़ाएगा, उनके इस बयान के बाद तेल की कीमतों में कुछ सुधार हुआ. 72 डॉलर प्रति बैरल से घट कर 66 डॉलर प्रति बैरल आ गया. अगर आप शुक्रवार की कीमत से हिसाब लगाएं तो भी 10 प्रतिशत की वृद्धि है. जो कि दो महीने में सबसे अधिक वृद्धि है.
अमरीका का कहना है कि हमले के पीछे ईरान का हाथ है. ईरान ने इंकार किया है. यमन के हाऊदी गुट ने हमले की ज़िम्मेदारी ली है जिसे इरान का समर्थन हासिल है. आप जानते हैं कि सऊदी अरब और यमन युद्धरत हैं. अमरीका यमन की भूमिका को नहीं मान रहा है. गोल्ड मैन शैश ने कहा कि अगर छह हफ्ते तक सऊदी अरब से तेल की आपूर्ति इसी तरह रही तो कच्चे तेल की कीमत 75 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती है. कई जानकारों का कहना है कि इसके कारण आर्थिक मंदी तेज़ न हो जाए. अमरीका और चीन के बीच व्यापारिक युद्ध के कारण अर्थव्यवस्था वैसे ही डांवाडोल है. तेल के संस्थान काफी सुरक्षित माने जाते हैं. कोई भी देश उन्हें काफी सुरक्षा में रखता है. लेकिन इस हमले के बाद सवाल उठ रहे हैं कि अब ये भी सुरक्षित नहीं रहे. अरामको के प्लांट यमन की सीमा से 1800 किलोमीटर दूर हैं फिर भी उन पर हमला हुआ है. सऊदी अरब का अभी तक कोई बयान नहीं आया है. सऊदी के बयान का इंतज़ार है. इस जवाब का भी इंतज़ार है कि तेल के उत्पादन को पूरी तरह बहाल करने में कितना वक्त लगेगा. 58 प्रतिशत उत्पादन प्रभावित हुआ है. इस वक्त यह दुनिया भर की बड़ी घटना है. उम्मीद है हालात युद्ध तक नहीं पहुंचेंगे.
भारत का कहना है कि सऊदी अरब के तेल संशोधन कांम्लेक्स पर हमले से उस पर खास असर नहीं पड़ेगा. आप जानते हैं कि भारत दुनिया में कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है. 80 प्रतिशत आयात करता है. सऊदी अरब कच्चे तेल, रसोई गैस का भारत का दूसरा सबसे बड़ा सप्लायर है. ईरान पर अमरीका के प्रतिबंध के बाद सऊदी सप्लाई पर हुए हमले को लेकर भारत निश्चिंत है कि उसका इंतज़ाम ठीक है. उम्मीद है भारत में तेल के दाम नहीं बढ़ेंगे.
क्या जम्मू कश्मीर में सुरक्षा के प्रतिबंध इतने सख़्त हैं कि इंसाफ़ के लिए हाई कोर्ट तक पहुंचना मुश्किल हो रहा है. आज सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रीय बाल आयोग की पहली अध्यक्ष रहीं शांता सिन्हा और बाल अधिकार कार्यकर्ता एनाक्षी गांगुली की याचिका पर सुनवाई हो रही थी. इस याचिका में इंडियन एक्सप्रेस, टेलिग्राफ, कैरवान, वाशिंगटन पोस्ट में छपी रिपोर्ट का हवाला दिया गया है. इंडियन एक्सप्रेस की 8 अगस्त की एक रिपोर्ट है कि 17 साल का एक लड़का क्रिकेट खेल रहा था जब सीआरपीएफ के जवानों ने पीछा किया तो वह नदी में गिर गया और डूब कर मौत हो गई. 9 अगस्त की वाशिंगटन पोस्ट में रिपोर्ट है कि सौरां में रात को छापे पड़ रहे थे और स्कूल जाने वाले बच्चे को पुलिस ले जाने लगी. पुलिस पति को ले गई और कहा कि पति को छुड़ाना है तो बच्चे को लेकर आ जाए. टेलिग्राफ की एक खबर है 14 अगस्त की जिसमें रिपोर्ट है कि पम्पोर में 11 साल के एक लड़के को बग़ैर किसी रिकॉर्ड के 6 दिनों तक हिरासत में रखा गया. जब वह बाहर आया तो बताया कि उससे भी कम उम्र के बच्चे जेल में थे.
याचिका में इस तरह के कई उदाहरण दिए गए थे जिसे सुनते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि याचिकाकर्ता जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट क्यों नहीं जाते हैं. तो जवाब में बताया गया कि सुरक्षा प्रतिबंधों के कारण हाई कोर्ट तक पहुंचना मुश्किल है. इस पर चीफ जस्टिस नाराज़ हो गए और कहा कि यह गंभीर मामला है. हम हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से बात करेंगे, रिपोर्ट लेंगे और ज़रूरत पड़ी तो खुद भी जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट जाएंगे. चीफ जस्टिस ने बाल अधिकार कार्यकर्ता की वकील हुज़ैफ़ी अहमदी को चेतावनी दी कि अगर उनकी बात सही नहीं निकली तो परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहें.
सुप्रीम कोर्ट में जम्मू कश्मीर लेकर अलग-अलग मामलों में सुनवाई चल रही थी. सारी सुनवाई चीफ जस्टिस के कोर्ट में चल रही थी. कश्मीर टाइम्स की संपादक अनुराधा भसीन ने कहा कि इंटरनेट और संचार माध्यम 43 दिनों से ठप्प है. तब सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि जम्मू और श्रीनगर से अखबार तो छप रहे हैं. कोर्ट ने पूछा कि आखिर क्यों ऐसा है कि संचार व्यवस्था चालू नहीं हो रही है. इस पर अटार्नी जनरल ने कहा कि मीडिया के लोग संचार व्यवस्था का इस्तेमाल कर रहे हैं. उन्हें दूर दराज़ के इलाके में जाने की इजाज़त है. केंद्र की तरफ से दलील दी गई कि पत्थरबाज़ों को मदद मिल रही है तो याचिकार्ता ने कहा कि श्रीनगर में मोबाइल फोन ठप्प है. इंटरनेट ठप्प है. इसे शुरू किया जाना चाहिए. इंडियन जर्नलिस्ट यूनियन भी अनुराधा भसीन की याचिका से खुद को जोड़ना चाहता है. अनुराधा भसीन की वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा कि हमें नहीं पता कि किस कानून के तहत सूचना व्यवस्था ठप्प की गई है. आपातकाल के लिए भी संसद से मंज़ूरी लेनी पड़ती है वरना 30 दिनों के भीतर वह लैप्स हो जाता है. इस मामले में तो 40 दिन से अधिक हो गए हैं.
VIDEO: क्या J&K में पाबंदी इतनी सख्त है कि हाई कोर्ट पहुंचना भी मुश्किल?
जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री फारूक अब्दुल्ला पर जन सुरक्षा कानून लगा दिया गया है. इस कानून के तहत दो साल तक बगैर किसी सुनवाई या मुकदमे के हिरासत में रखा जा सकता है. यह एक्ट उस दिन लगा जिस दिन सुप्रीम कोर्ट में अवैध रूप से हिरासत में लिए जाने के मामले की सुनवाई होने वाली थी. 83 साल के फारूक अब्दुल्ला पर लोक व्यवस्था में व्यवधान डालने का आरोप लगाया गया था. इसके तहत तीन महीने के लिए हिरासत में लिया जा सकता है. अभी तक वे नज़रबंद थे. अब उसे जेल का दर्जा दिया जाएगा. फारूक अब्दुल्ला के बेटे ओमर अब्दुल्ला सहित सैकड़ों नेता नज़रबंद हैं या हिरासत में हैं. 6 अगस्त को सुप्रिया सुले ने लोकसभा में कहा था कि फारूक अब्दुल्ला सदन में नहीं हैं तब अमित शाह ने कहा था कि उन्हें न तो गिरफ्तार किया गया है न ही हिरासत में रखा गया है. वे अपनी मर्जी से घर में हैं. मुख्यधारा के किसी राजनेता के खिलाफ पहली बार लोक सुरक्षा कानून लगा है. खासकर तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके और मौजूदा सांसद पर. आम तौर पर यह कानून आतंकवादी या अलगावादियों पर लगता है या पत्थरबाज़ों पर. नीता शर्मा ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि अगले हफ्ते संयुक्त राष्ट्र की आमसभा होनी है. वहां कश्मीर का ज़िक्र होगा, इससे पहले फारूक अब्दुल्ला मीडिया में आकर आलोचना कर सकते हैं जिससे सरकार की स्थिति अजीब हो सकती है. राज्यसभा सांसद वाइको ने एक याचिका दायर की थी कि फारूक अब्दुल्ला को छोड़ा जाए ताकि वे चेन्नई के एक कार्यक्रम में शामिल हो सकें. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और जम्मू कश्मीर को नोटिस भेजा है. कई राजनीतिक दलों के नेताओं ने फारूक अब्दुल्ला पर लोक सुरक्षा कानून लगाए जाने की निंदा की है.
पंजाब में अनुच्छेद 370 हटाए जाने को लेकर प्रदर्शन हो रहे हैं. कांग्रेस सरकार ने उन प्रदर्शनों के चारों तरफ पुलिस की मज़बूत घेराबंदी लगा दी है. बठिंडा में 10 सितंबर को बड़ा प्रदर्शन हुआ था. राज्य भर में कई छोटे मोटे प्रदर्शन हुए. रविवार को मोहाली में राज्य भर से किसान संगठन और छात्र संगठन जमा होने वाले थे. प्रदर्शनकारी मोहाली से चंडीगढ़ जाना चाहते थे ताकि राज्यपाल को मेमोरेंडम दिया जा सके मगर सफल नहीं सके.
अब हमारे एक दर्शक की बात आप तक पहुंचाना चाहता हूं. शुभम देशमुख देख नहीं सकते हैं मगर तकनीक के ज़रिए दुनिया को देखते रहते हैं. शुभम का फोन आया कि महाराष्ट्र के अमरावती में जहां समाज कल्याण विभाग का हॉस्टल है वहां तक पहुंचने का रास्ता बहुत खराग है. जो छात्र वहां रहते हैं उन्हें आने जाने में कितनी दिक्कत होती होगी. खासकर ऐसे छात्र जो देख नहीं सकते हैं. इस हॉस्टल में 1000 छात्र रहते हैं. हमने बस शुभम से पूछ लिया कि कोई तस्वीर है आपकी. शुभम ने जो तस्वीर भेजी है उससे मैं हैरान हूं. वो किसी की बाइक पर पीछे बैठे और खुद वीडियो बनाया है. हम चाहते हैं कि आप उस वीडियो देखें और महसूस करें कि एक नागरिक अपने आस पास की व्यवस्था को किस तरह से देखता है. बहुत लोग नज़रअंदाज़ कर जाते हैं, सोचते हैं कि जाने दो, कभी नहीं सुधरेगा, लेकिन शुभम ने वीडियो रिकॉर्ड किया और मुझे भेज दिया. आप शुभम के कैमरे से उस हॉस्टल तक की यात्रा कीजिए और सोचिए कि अधिकारियों को क्या बिल्कुल फर्क नहीं पड़ता होगा कि किसी छात्र को तकलीफ हो सकती है तो रास्ता ठीक कर दिया जाए. सिस्टम नहीं देख सकता है लेकिन जो देख सकते हैं तो वो तो देख लें. शुभम कभी यहां छात्र थे, रहते थे, अब नहीं रहते हैं लेकिन उनका कहना है कि आखिर कब यहां की सड़क बनेगी. महाराष्ट्र में चुनाव होने हैं. बड़ी बड़ी बातें हो रही हैं. ऐसी बातें बड़े मुद्दों की आंधी में हवा हो जाएंगी. उम्मीद है कोई शुभम जैसा होगा जो चुप चाप देख रहा होगा और नोट कर रहा होगा.
VIDEO: दृष्टिहीन शुभम ने दिखाई अपने हॉस्टल जाने वाले सड़क की खस्ता हालत
दिल्ली आते ही एक तस्वीर देखकर यकीन नही हुआ. हमारी सरकारी परीक्षा व्यवस्था किस तरह नौजवानों को बर्बाद कर रही है, उनके जीवन से खेल रही है, आप भले न समझें लेकिन वक्त निकाल कर नौजवानों से बात कीजिए. मेरे लिए इस तरह के बैनर देखना, रोज़ की बात हो चुकी है. सोचिए 6 साल पहले इनकी परीक्षा का विज्ञापन आया था, अभी तक परीक्षा पूरी नहीं हुई है, रिज़ल्ट नहीं आया. काश कोई रिसर्च करता है कि ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई परीक्षा 6 साल में पूरी नहीं होती है.
हम यह तस्वीर इन छात्रों के भरोसे पर दिखा रहे हैं. पांच छह छात्र हैं जो बैनर लिए बैनर बन गए हैं. ये अब छात्र नहीं रहे बल्कि हमारी सरकारी परीक्षा व्यवस्था के पोस्टर ब्वाय हैं. उत्तर प्रदेश की परीक्षा की यह कथा है. इनमें नारे लगाने का ज़ोर नहीं बचा है. फिर भी ये जानते हैं कि कुछ न होने से तो अच्छा है कि नारे लगाए जाएं. 3222 पदों का विज्ञापन निकला 2013 में, परीक्षा हुई 2016 में और रिज़ल्ट का पता नहीं. ये लोग मार्च, जून और सितंबर में अलग अलग प्रदर्शन कर चुके हैं. सोचिए, एक परीक्षा का रिज़ल्ट 6 साल में नहीं आया. यूपी, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश की सरकारी परीक्षाओं का हाल यही है. इन नौजवानों के साथ जो नाइंसाफी हुई है उसके बारे में सबसे अच्छी बात ये है कि इन्हें समझ नहीं आता. आपने खबर सुनी होगी कि जब टाइम्स की रैकिंग आई दुनिया की यूनिवर्सिटी की तो 1 से लेकर 300 में भारत की कोई यूनिवर्सिटी नहीं थी. अगर आप उत्तर भारत या हिन्दी प्रदेशों के ज़िलों कस्बों के कॉलेजों या यूनिवर्सिटी का हाल देखेंगे तो तब समझ आएगा कि हिन्दी प्रदेशों के इन युवाओं के साथ क्या हुआ है. इनकी पढ़ाई या छात्र जीवन पूरा बर्बाद किया गया फिर इन्हें सरकारी नौकरियों में उलझाया गया जहां दो से लेकर छह साल तक रिज़ल्ट नहीं आता है. गनीमत है कि इन नौजवानों को अपनी बर्बादी का कारण मालूम नहीं, अच्छी बात है कि गोदी मीडिया के प्रोपेगैंडा में ये मस्त हैं, झूम रहे हैं. लेकिन आज न सही कल सही, इन प्रदेशों के कॉलेजों और शिक्षा का हाल तो लेना ही होगा.
VIDEO: प्रतियोगी परीक्षाओं के नतीजों में देरी क्यों?