भारतीय जनता पार्टी (BJP), जिसका पूरा जनाधार ही हिन्दुत्व के मुद्दे पर आधारित है, अब लगता है कि इसी मुद्दे को सत्ता में बने रहने के लिए हथियार के तौर पर उपयोग करने जा रही है. ऐसा इसलिए लिख रहा हूं, क्योंकि 2019 में प्रचंड जीत हासिल करने के बाद से पार्टी में आत्मविश्वास है कि जनता उसके हिन्दुत्व और राष्ट्रप्रेम वाली छवि को ध्यान में रखकर देश में होने वाले सभी चुनावों में वोट करेगी.
हाल ही में हुए महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों में BJP को कम सीटें मिलीं, लेकिन पार्टी का चुनावी मुद्दा लोकसभा चुनाव की तरह राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व ही था, इसलिए दोनों प्रदेशों में BJP नंबर वन पार्टी बन कर उभरी. हालांकि कई आलोचक BJP की हार पर उसकी आलोचना इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि उनका मानना है कि पार्टी ने स्थानीय मुद्दों को दरकिनार किया, इसलिए पार्टी अच्छा नहीं कर पाई, लेकिन हमें यह ध्यान देना होगा कि अनुच्छेद 370 और NRC के मुद्दे पर भी BJP हरियाणा में 41 सीटें जीतने में कामय़ाब रही, वहीं हिन्दुत्व के मुद्दे पर महाराष्ट्र की जनता ने भी BJP और शिवसेना गठबंधन को पूर्ण बहुमत दिया था. यह अलग बात है कि दोनों पार्टियां चुनाव के बाद अलग हो गईं.
समझने की बात यह है कि दोनों ही प्रदेशों में पांच साल की सरकार चलाने के बाद भी BJP नेतृत्व ने राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व के मुद्दे पर ही चुनाव लड़ा, यही हाल झारखंड का भी है. यहां भी पार्टी अनुच्छेद 370, राम मंदिर और NRC को ही चुनाव प्रचार में प्रमुखता से स्थान दे रही है, जिससे साफ है कि पार्टी अपने अस्तित्व को बचाए रखने और कई सालों तक राज करने के लिए इन मुद्दों को ही चुनावों में प्रमुखता से उठाएगी.
बुधवार (4 दिसंबर, 2019) को कैबिनेट की बैठक में जिस नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 को मंज़ूरी मिली, उस विधेयक ने हिन्दू राष्ट्र की ओर एक और कदम रखा है, जो आने वाले दिनों में BJP के लिए अनुच्छेद 370 से भी बड़ा मास्टरस्ट्रोक साबित होने वाला है, जैसा रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, क्योंकि इस विधेयक का बड़ा उद्देश्य यही है कि जिन पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों की आवाज़ को दबाया जाता है, उन्हें प्रताड़ित किया जाता है, ऐसे सभी लोगों के लिए भारत एक सहारा है, जहां के वह नागरिक बन सकते हैं और अच्छी, खुशहाल ज़िन्दगी जी सकते हैं. हालांकि सरकार ने यह भी साफ कर दिया है कि विधेयक के तहत दिसंबर, 2014 के पहले से भारत में रह रहे लोगों को ही नागरिकता दी जाएगी. इस तरह से BJP अपनी हिन्दुत्व की छवि को देश और विदेश में प्रमुखता से दिखाने की कोशिश कर रही है.
दूसरी ओर, नागरिकता विधेयक को वोट बैंक की राजनीति के तौर पर भी देखा जा रहा है. हिन्दू, बौद्ध, सिख, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के लोगों को नागरिकता देने से सरकार को उम्मीद है कि ये सभी लोग आने वाले समय में उसके लिए वोट बैंक का काम करेंगे. यह आरोप वैसा ही है, जैसा BJP पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के खिलाफ अवैध बांग्लादेशी लोगों को नागरिकता देकर उनका उपयोग वोट बैंक की राजनीति करने के लिए लगाती है.
हालांकि सरकार के इस कदम से मुस्लिम समुदाय के लोगों के बीच सरकार की नीयत को लेकर गलत संदेश भी जाएगा. जो मुस्लिम समुदाय तीन तलाक बिल को लेकर BJP के करीब आया था और उसने BJP के पक्ष में 2019 लोकसभा चुनाव में वोट किया, वह समुदाय नागरिकता बिल को लेकर कहीं न कहीं एक बार फिर BJP से दूर जा सकता है.
वैसे, अगर इस विधेयक की बात करें, तो यह कोई नया कानून नहीं है, जो सरकार लाने जा रही है, बल्कि सरकार पहले ही मौजूद कानून 'नागरिकता अधिनियम, 1955' में संशोधन कर रही है. आइए जानते हैं, इस विधेयक की प्रमुख बातें...
1. सरकार उस नियम को बदलना चाहती है, जिसमें पहले 11 वर्ष तक भारत में रह चुके अवैध प्रवासी को भारतीय नागरिकता प्रदान की जाती थी, लेकिन सरकार इस संशोधन के ज़रिये इस अवधि को 11 साल से घटाकर छह साल करने जा रही है.
2. नागरिकता अधिनियम, 1955 में सभी धर्मों के लोगों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान था, लेकिन नए विधेयक में सिर्फ हिन्दू, बौद्ध, सिख, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के उन लोगों को ही नागरिकता देने का प्रावधान है, जो अफगानिस्तान, पाकिस्तान या बांग्लादेश से आए हों.
3. इस कानून के अंतर्गत सिर्फ वही लोग भारतीय नागरिकता के योग्य होंगे, जो 31 दिसंबर, 2014 के पहले से भारत में रह रहे हैं.
विधेयक के विरोध में प्रमुख बातें...
1. विरोध करने वालों का कहना है कि यह विधेयक भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, जिसमें समानता के अधिकार की बात की गई है, की मूल भावना के खिलाफ है.
2. पूर्वात्तर प्रदेशों में इस बिल का सबसे ज़्यादा विरोध हो रहा है. इसका कारण है, उनकी संस्कृति और सभ्यता पर पड़ने वाला प्रभाव.
3. असम में यह विधेयक असम करार, 1985 और NRC के खिलाफ है, क्योंकि असम करार, 1985 के मुताबिक जो भी व्यक्ति 1971 के बाद प्रदेश में रहने आए, फिर चाहे वे किसी भी धर्म के हों, उन्हें असम में नागरिकता नहीं दी जा सकती. इस कारण असम में NRC और CAB (नागरिकता संशोधन विधेयक) लेकर लोगों में भ्रम की स्थिति है.
वहीं इस विधेयक के माध्यम से भारत सरकार अपने पड़ोसी देशों को भी बताना चाहती है कि उसके दरवाजे गैर-मुस्लिम समुदायों के लिए खुले हैं. सरकार के पास इस विधेयक को लोकसभा में पास कराने के लिए पर्याप्त संख्या है, लेकिन राज्यसभा में उसके लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है, क्योंकि यहां सरकार की सहयोगी JDU ही इस मुद्दे पर उससे सहमत नहीं है. वहीं शिवसेना का BJP से गठबंधन टूटने के बाद राज्यसभा में सरकार के पास संख्या और कम हो गई है. हालांकि BJP के लिए अच्छी बात यह है कि इस बिल पर उसे BJD और YSRCP ने समर्थन देने की घोषणा कर दी है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में इस विधेयक को सहमति मिल जाने के बाद सरकार ने सोमवार (9 दिसंबर, 2019) को विधेयक को लोकसभा में पारित करवा लिया. कई समाजिक संगठन विधेयक के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन पूर्वोत्तर में भारी विरोध के बाद सरकार ने विधेयक में परिवर्तन कर कहा है कि जिन इलाकों में इनर लाइन परमिट (ILP) लागू है, तथा पूर्वोत्तर के चार राज्यों में छह अनुसूचित जनजातीय क्षेत्रों को नागरिकता (संशोधन) विधेयक में शामिल नहीं किया जाएगा.
अश्विन कुमार सिंह NDTV में एग्ज़ीक्यूटिव इलेक्शन रिसर्चर हैं...
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