अनुपम मिश्र स्मार्टफोन और इंटरनेट के इस दौर में चिट्ठी-पत्री और पुराने टेलीफोन के आदमी थे. लेकिन वे ठहरे या पीछे छूटे हुए नहीं थे. वे बड़ी तेजी से हो रहे बदलावों के भीतर जमे ठहरावों को हमसे बेहतर जानते थे.
जब भी उनका फोन आता, मुझे लगता कि मैं अपने किसी अभिभावक से बात कर रहा हूं जिसे इस बात की सफाई देना जरूरी है कि मैंने वक्त रहते यह काम या वह काम क्यों नहीं किया है. तिस पर उनकी सहजता और विनम्रता बिल्कुल कलेजा निकाल लेती. उनको देखकर समझ में आता था कि कमी वक्त की नहीं हमारी है जो हम बहे जा रहे हैं.
वे मौजूदा सामाजिक पर्यावरण में ओजोन परत जैसे थे. उनसे ऑक्सीजन मिलती थी, यह भरोसा मिलता था कि तापमान कभी इतना नहीं बढ़ेगा कि दुनिया जीने लायक न रह जाए.
लेकिन मौत पिछले कई दिनों से कैंसर की शक्ल में उन्हें कुतर रही थी. हम तमाम लोग इस अपरिहार्य अघटित से आंख नहीं मिला पा रहे थे. यह वाक्य अंतत: लिखना पड़ रहा है कि अनुपम मिश्र नहीं रहे. बस, प्रणाम.
(एनडीटीवी इंडिया में सीनियर एडिटर प्रियदर्शन के फेसबुक वॉल से साभार)
This Article is From Dec 19, 2016
अनुपम मिश्र मौजूदा सामाजिक पर्यावरण में ओजोन परत सरीखे
Priyadarshan
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Updated:दिसंबर 20, 2016 18:00 pm IST
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Published On दिसंबर 19, 2016 10:42 am IST
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Last Updated On दिसंबर 20, 2016 18:00 pm IST
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