एक और बेटी की जान चली गई...

एक और बेटी की जान चली गई...

एक और नाम जुड़ गया मरनेवालों की उस लिस्ट में जिसकी आबरू को ठेस पंहुची थी. एक और परिवार जुड़ गया उस लिस्ट में जो न्याय के लिए बरसों इंतजार करेगा. एक और भाई जुड़ गया उस लिस्ट में जो अपनी बहन के न होने पर रोया करेगा. एक और लड़की जुड़ गई उस लिस्ट में जिसने दिल्ली को देश का सबसे असुरक्षित शहर बना दिया.

सीसीटीवी में दिखा कि बुराड़ी के संतनगर की एक सड़क पर एक लड़का एक लड़की पर झपटा, फिर उसे चाकूओं से बार बार गोदता रहा. किसी ने कहा 22 तो किसी ने 26. आसपास लोग चल रहे थे. किसी ने इस लड़की को बचाया नहीं. किसी ने लड़के का हाथ नहीं पकड़ा. चाकू ही तो था उसके हाथ में, बन्दूक तो नहीं थी.

क्या चार पांच लोग मिल कर उसे नहीं रोक सकते थे. क्या दौड़ती सुई से कुछ पल किसी की जान बचाने के लिए नहीं निकाले जा सकते थे. डर था अपनी जान का या फिर पुलिस की जांच का. या ये ख्याल कि लड़की ने कुछ ज़रूर किया होगा, तभी तो कोई पुरुष इतना बेरहम हो सकता है.

हल्ला भी तो मचाया जा सकता था, झूठ ही कहा जा सकता था कि पुलिस आ गई. कब हम दिल्लीवाले बे-दिल हो गये. 28 देशों में कानून है कि बचाव करना आप का फर्ज है, न करने पर सजा है. फ्रांस में 5 साल की जेल और एक लाख डॉलर जुर्माना है तो अर्जेंटीना में 2 से 6 साल की जेल.

रूस में एक साल की सजा तो जर्मनी में तब तक ड्राइविग लाइसेंस नहीं मिल सकता जब तक आपके पास फर्स्‍ट एड की जानकारी न हो और सीपीआर का सर्टिफिकेट.

करुणा एक स्कूल टीचर थी. कई महिनों से ये लड़का उसे परेशान कर रहा था. पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई थी. लेकिन पुलिस ने तो समझौता करा दिया था, उसकी फाइल से एक केस कम हो गया था.

चाकूओं से लगातार बीसियों बार गोदने पर भी रोहिणी का सुरेंद्र सिंह रुका नहीं था. करुणा के सिर पर लातें भी मारी थी, कुचला भी था. अस्पताल ले गये थे करुणा को, मर गई थी वो. सुरेंद्र की भी पिटाई की खबर आई थी. अब एक और प्रहार सही. निर्भया इंतजार में है तो एक और सही...

(निधि कुलपति एनडीटीवी इंडिया में सीनियर एडिटर हैं)

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