बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के ऐलान के बावजूद जनता को पेट्रोल और डीज़ल की बढ़ी कीमतों से कोई राहत नहीं मिली है. कर्नाटक चुनाव खत्म होने के बाद आज लगातार 11 वें दिन इनके दाम बढ़ा दिए गए. अब दिल्ली में पेट्रोल रिकॉर्ड 77 रुपए 47 पैसे प्रति लीटर और मुंबई में 85 रुपए 29 पैसे प्रति लीटर पहुंच गया है. वैसे कल कैबिनेट की बैठक के बाद कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि सरकार बढ़े दामों को लेकर चिंतित है और इसका दीर्घकालिक हल निकालेगी. लेकिन लगता नहीं है कि तेल कंपनियां सरकार की चिंता में शामिल हैं. यहां तक कि तेल कंपनियों की पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के साथ बैठक भी नहीं हुई है. जबकि इसका ऐलान खुद अमित शाह ने किया था.
दरअसल, बुधवार को कैबिनेट की बैठक के बाद प्रधान अपने गृह राज्य ओडिशा चले गए. वहां 26 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कटक में अपनी सरकार के चार साल पूरे होने पर रैली करेंगे. प्रधान रैली की तैयारियों में व्यस्त हैं. खबर है कि वित्त मंत्रालय यह कहकर कि वह बजट घाटे को बढ़ाना नहीं चाहता, पेट्रोलियम पदार्थों से एक्साइज़ ड्यूटी कम करने से इनकार कर चुका है. ले देकर ज़िम्मेदारी पेट्रोलियम मंत्रालय पर ही आ जाती है. बताया जा रहा है कि सरकार ओएनजीएसी जैसे तेल उत्पादकों पर एक विंडफॉल टैक्स लगाने पर विचार कर रही है. यह तेल कीमतों की बढ़ोत्तरी पर अंकुश लगाने के लिए उस स्थाई समाधान का हिस्सा हो सकता है जिसका जिक्र अमित शाह और रविशंकर प्रसाद ने किया है. इसके तहत, जैसे ही अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत 70 डॉलर प्रति बैरल पार करेगी, एक उपकर के तौर पर विंडफॉल टैक्स लगा दिया जाएगा और इससे मिला राजस्व तेल विक्रेताओं को दिया जाएगा ताकि वे बढ़ी कीमतों का बोझ उठा सकें.
दरअसल, घरेलू तेल कुओं से कच्चा तेल निकालने वाली कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय दाम मिलता है. इनमें सरकारी और निजी कंपनियां शामिल हैं. यह टैक्स लगाने का प्रस्ताव 2008 में भी आया था लेकिन तब निजी कंपनियों ने इसका विरोध किया था. अब देखना होगा कि उनके विरोध के बावजूद सरकार क्या यह कर पाएगी? या फिर सरकारी कंपनी ओएनजीसी पर ही इसका सारा बोझ डाल दिया जाएगा. वैसे बता दूं कि ब्रिटेन में 2011 से यह टैक्स लगता आ रहा है जहां कच्चे तेल की कीमतें 75 डॉलर से ऊपर जाते ही लग जाता है. चीन में 2012 में यह 55 डॉलर पार करते ही लग जाता है.
उधर, फिक्की के महासचिव दिलीप चिनॉय ने एनडीटीवी से कहा कि बढ़ी कीमतों का असर अर्थव्यवस्था और विकास दर पर पड़ सकता है. अगर कीमतें इसी तरह बढ़ती रहीं तो इसका बुरा असर चालू बजट घाटे, महंगाई दर और जरूरत की चीजों के दामों पर पड़ सकता है. उन्होंने कहा कि सरकार को तुरंत ही एक्साइज ड्यूटी घटानी चाहिए. उन्होंने कहा कि इसका दीर्घकालिक हल निकालना होगा. अंतरराराष्ट्रीय स्तर पर नए सिरे से बातचीत करनी होगी. उम्मीद है कि सरकार अगले एक से दो दिन में पहल करेगी.
ऐसे में जबकि मोदी सरकार चार साल पूरा करने के बाद चुनावी वर्ष में कदम रख रही है, तेल की बढ़ी कीमतें, लगातार गिरता रुपया और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें उसकी परेशानी बढ़ा रही है. वो चाहें केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी हों या फिर कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद, ये वरिष्ठ मंत्री कह चुके हैं कि सरकार को लोक कल्याण के कामों के लिए राजस्व चाहिए और इसलिए एक्साइज ड्यूटी में कटौती की बात नहीं हो सकती. सरकार चुनावी साल में गरीबों के कल्याण की योजनाओं पर ज्यादा खर्च करना चाहती है. मोदी केयर के लिए भी भारी-भरकम रकम चाहिए. चुनावी राज्य राजस्थान में बीजेपी सरकार किसानों के कर्ज माफ करने की बात कर रही है. पर उसके पास पैसे नहीं हैं. जाहिर है ऐसे में न तो केंद्र की और न ही राज्य की बीजेपी सरकारें एक हद से ज्यादा टैक्स में कटौती के लिए तैयार होंगी. न ही ये सरकारें पेट्रोल-डीजल को जीएसटी में लाने की हामी भरेंगी. ले देकर बोझ शायद तेल उत्पादक कंपनियों पर ही पड़े.
बताता चलूं कि नवंबर 2014 से जनवरी 2016 के बीच मोदी सरकार ने नौ बार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई. और सिर्फ एक बार दो रुपए कम की और वो भी गुजरात चुनाव से ठीक पहले. अभी पेट्रोल पर प्रति लीटर 19 रुपए 48 पैसे और डीजल पर 15 रुपए 33 पैसे एक्साइज ड्यूटी लगती है. विपक्षी पार्टियों के तेवर भी सरकार के लिए चिंता का सबब है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पीएम मोदी को कीमतें कम करने का चैलेंज दे रहे हैं. नहीं तो आंदोलन झेलने के लिए तैयार रहने की चेतावनी दे रहे हैं.
(अखिलेश शर्मा एनडीटीवी इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)
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This Article is From May 24, 2018
लगातार 11वें दिन भी बढ़े तेल के दाम, अमित शाह के कहने पर भी नहीं चेती सरकार
Akhilesh Sharma
- ब्लॉग,
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Updated:मई 24, 2018 20:06 pm IST
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Published On मई 24, 2018 19:52 pm IST
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Last Updated On मई 24, 2018 20:06 pm IST
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