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This Article is From Nov 02, 2023

आखिर कौन है इज़रायल को चुनौती देना वाला हिज़्बुल्लाह...?

Samarjeet Singh
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 02, 2023 08:16 am IST
    • Published On नवंबर 02, 2023 07:49 am IST
    • Last Updated On नवंबर 02, 2023 08:16 am IST

इज़रायल और हमास के बीच बीते 13 दिन से जंग जारी है, और अब वक्त के साथ-साथ जंग के समूचे मध्य-पूर्व एशिया में फैलने की आशंका बढ़ रही है. फिलहाल इज़रायल और हमास के बीच ही सिमटी दिख रही इस जंग में जल्द ही हिज़्बुल्लाह की एन्ट्री के आसार नज़र आने लगे हैं.

हिज़्बुल्लाह, यानी लेबनान का ऐसा संगठन, जो मज़बूत सैन्य क्षमता रखता है, और इज़रायल को लगातार चुनौती भी दे रहा है. ऐसे में, जानकारों का मानना है कि अगर इज़रायली फ़ौज ग़ाज़ा में घुसी, तो उसे लेबनान की सरहद से हिज़्बुल्लाह के हमलों का सामना भी करना पड़ सकता है. हाल ही में दी गई हिज़्बुल्लाह की चुनौती के बाद इज़रायल ने लेबनान में मौजूद हिज़्बुल्लाह के ठिकानों पर भी मिसाइलें दागी हैं.

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अब ऐसे में यह जानना ज़रूरी हो जाता है कि आखिर कौन है हिज़्बुल्लाह, सो आइए, कुछ तफ़्सील से जानते हैं हिज़्बुल्लाह के बारे में. हिज़्बुल्लाह का मतलब है - 'Party of God', यानी अल्लाह का गुट. हिज़्बुल्लाह लेबनान का एक 'शिया मुस्लिम' राजनीतिक दल होने के साथ-साथ अर्द्धसैनिक संगठन भी है, हालांकि लेबनान में यह सिर्फ़ राजनैतिक दल के तौर पर काम करता है.

कैसे हुई थी हिज़्बुल्लाह की शुरुआत...?

हिज़्बुल्लाह की शुरुआत को जानने के लिए ज़रा पीछे मुड़कर माज़ी को टटोलना होगा. यह जानकारी ज़रूरी है कि साल 1943 तक लेबनान में फ्रांस की हुकूमत थी और जब उनका असर ख़त्म हुआ, तो एक समझौते के तहत लेबनान की सत्ता देश के ही कई धार्मिक गुटों में बंट गई. 1943 के समझौते के तहत कुछ शर्तें रखी गई थीं, जो कुछ इस तरह थीं...

  • सुन्नी मुसलमान ही देश का प्रधानमंत्री, यानी वज़ीर-ए-आज़म बनेगा...
  • ईसाई शख़्स को ही राष्ट्रपति, यानी सदर-ए-मुल्क बनाया जाएगा...
  • संसद का स्पीकर हमेशा शिया मुसलमान होगा...

इसके बाद लेबनान में शुरू हो गया गृहयुद्ध

इज़रायल और फ़िलस्तीन के बीच 1948 में झड़पें शुरू हो गईं, जिनके चलते बहुत-से फ़िलस्तीनी शरणार्थी लेबनान पहुंच गए, लेकिन इस वजह से सुन्नी मुसलमानों की आबादी बढ़ गई, और शिया अल्पसंख्यक हो गए. उस वक्त सत्ता ईसाइयों के हाथ में थी, सो, शिया मुसलमानों को हाशिये पर खिसक जाने का डर परेशान करने लगा, और गृहयुद्ध शुरू हो गया.

लेबनान में कई दशक तक जारी रही अंदरूनी जंग के दौरान साल 1978 और 1982 में इज़रायली फ़ौज ने फ़िलस्तीन के गुरिल्ला लड़ाकों को खदेड़ने के लिए दक्षिणी लेबनान पर हमला बोल दिया, और कई इलाकों पर कब्ज़ा भी कर लिया. ये वही इलाके थे, जिनका इस्तेमाल फ़िलस्तीनी लड़ाके इज़रायल के ख़िलाफ़ हमलों के लिए कर रहे थे.

ऐसे में हुई थी हिज़्बुल्लाह की स्थापना...

साल 1979 में ईरान में सरकार बदली और नई सरकार को मध्य-पूर्व में दबदबा बढ़ाने के लिए वही सही वक्त लगने लगा. ईरान ने लेबनान और इज़रायल के बीच मौजूद तनातनी का भी फ़ायदा उठाना चाहा और शिया मुसलमानों पर असर डालना शुरू कर दिया. बस, इसी माहौल में साल 1982 में हिज़्बुल्लाह नाम से शिया संगठन बन गया.

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स ने अपनी इस्लामी क्रांति को बढ़ाने और लेबनान पर हमले करने वाली इज़रायली फ़ौज से लड़ने के लिए हिज़्बुल्लाह बनाया था.

तेहरान की शिया इस्लामवादी विचारधारा को साझा करते हुए हिज़्बुल्लाह ने संगठन में लेबनान के शिया मुसलमानों को भी भर्ती किया. फिर ईरान ने हिज़्बुल्लाह को माली इमदाद, यानी वित्तीय सहायता देना भी शुरू कर दिया और जल्द ही हिज़्बुल्लाह ने खुद को प्रतिरोधी आंदोलन के तौर पर खड़ा कर लिया.

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दहशतगर्द गुट है हिज़्बुल्लाह...

संयुक्त राज्य अमेरिका, यानी USA समेत बहुत-से मगरिबी मुल्कों, यानी पश्चिमी देशों ने हिज़्बुल्लाह को दहशतगर्द गुट, यानी आतंकवादी संगठन घोषित किया है. अमेरिका के साथ-साथ सऊदी अरब समेत खाड़ी के सहयोगी अरब मुल्क भी ऐसा ही कहते हैं. यूरोपीय संघ ने हिज़्बुल्लाह की सैन्य शाखा को आतंकवादी समूह कहा है, लेकिन हिज़्बुल्लाह की सियासी जमात को नहीं.

समरजीत सिंह NDTV में डिप्टी न्यूज एडिटर हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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