South Asia News: आज हम बात कर रहे हैं दक्षिण एशिया के एक ऐसे 'जियोपॉलिटिकल हॉटस्पॉट' की, जहाँ दो पड़ोसी देशों के रिश्ते अब सिर्फ ख़राब नहीं, बल्कि 'खत्म' होने की कगार पर आ गए हैं. ये हैं पाकिस्तान और अफगानिस्तान. आपने अक्सर सुना होगा कि 'पड़ोसी धर्म' निभाना चाहिए, लेकिन यहाँ तो लग रहा है 'पड़ोसी अधर्म' हो रहा है!
हाल ही में, अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने पाकिस्तान की सेना और सरकार को जमकर धोया है! तालिबान का साफ-साफ कहना है कि पाकिस्तान में जो भी 'गड़बड़ी' हो रही है, उसके लिए बार-बार अफगानिस्तान पर उंगली उठाना अब बंद होना चाहिए.
तालिबान प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने एक इंटरव्यू में जो बातें कही हैं, वो पाकिस्तान के लिए एक सीधी चेतावनी जैसी हैं. उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी नेताओं को भड़काऊ बयानबाजी बंद करनी चाहिए और काबुल पर बिना वजह आरोप मढ़ना छोड़ देना चाहिए.
मुजाहिद ने तो यहां तक कह दिया कि पाकिस्तान में हो रहे हमलों के लिए उनके देश को जिम्मेदार ठहराना सरासर गलत है. अगर ऐसा ही चलता रहा, तो दोनों देशों के रिश्ते 'रफ़ू' नहीं हो पाएंगे, बल्कि 'टूट' जाएंगे, और इसके 'गंभीर नतीजे' हो सकते हैं.
आखिर तालिबान ने अचानक इतना सख्त रुख क्यों अपनाया?
दरअसल, ये सारी तकरार शुरू हुई है 'तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान' यानी TTP को लेकर. पिछले कुछ समय से पाकिस्तान की सेना और सरकार लगातार ये आरोप लगा रही है कि अफगानिस्तान TTP को पनाह दे रहा है. TTP वही संगठन है, जिसने हाल के महीनों में पाकिस्तानी आर्मी पर कई बड़े हमले किए हैं. पाकिस्तान का दावा है कि ये आतंकवादी अफगानिस्तान में बैठकर पाकिस्तान में हमले प्लान करते हैं और फिर हमला करके वापस वहीं भाग जाते हैं.
इसी बात पर दोनों देशों के बीच लगातार बयानबाजी चल रही है. पाकिस्तान कहता है कि अफगानिस्तान TTP को कंट्रोल करे, नहीं तो अंजाम बुरा होगा. और अब तालिबान ने पलटवार करते हुए कहा है कि 'हम क्यों कंट्रोल करें? ये तुम्हारी समस्या है.'
जबीउल्लाह मुजाहिद ने पाकिस्तान को चेतावनी दी कि अगर उसके नेता ऐसे ही धमकीभरी बयानबाजी करते रहे, तो TTP पर लगाम लगाना और भी मुश्किल हो जाएगा. उन्होंने साफ कहा कि "पाकिस्तानी अधिकारियों की युद्धोन्मादी भाषा से दोनों देशों के संबंध सिर्फ बिगड़ेंगे." मुजाहिद ने पाकिस्तानी नेताओं को सलाह दी कि मीडिया में बयानबाजी करके माहौल खराब करने या सैन्य कार्रवाई की बात करने की बजाय, उन्हें 'बातचीत' के जरिए समाधान निकालना चाहिए.
मुजाहिद ने यहां तक कहा कि "पाकिस्तान में उग्रवादियों और आतंकवादियों के हमले कोई नई बात नहीं हैं." यानी वो ये कहना चाह रहे थे कि ये तुम्हारी अपनी अंदरूनी समस्या है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को हमें दोष देने के बजाय, इन हमलों को रोकने के लिए खुद कदम उठाने चाहिए. साथ ही, इस्लामाबाद को काबुल के साथ जानकारी साझा करनी चाहिए, ताकि दोनों मिलकर इन खतरों का सामना कर सकें. उन्होंने आरोप लगाया कि हम तो शांति चाहते हैं, लेकिन पाकिस्तान इसमें दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है.
शहबाज शरीफ ने कुछ समय पहले कहा था कि अगर अफगान तालिबान TTP का समर्थन जारी रखेगा, तो पाकिस्तान काबुल से अपने संबंध तोड़ लेगा! उन्होंने तो यहाँ तक कहा था कि अफगान तालिबान को इस्लामाबाद और TTP में से किसी एक को चुनना होगा. ये एक 'अल्टीमेटम' था, और अब तालिबान ने उसका जवाब दे दिया है.
पाकिस्तान का डर अपनी जगह सही है. साल 2021 में जब से तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया है, तब से पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान प्रांतों में सुरक्षा व्यवस्था एक बड़ी चुनौती बन गई है. यहाँ TTP लगातार सुरक्षा बलों, बुनियादी ढांचे और यहाँ तक कि 'चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा' यानी CPEC प्रोजेक्ट को भी निशाना बना रहा है. पाकिस्तान की सरकार और सेना दोनों का मानना है कि TTP का असली बेस अफगानिस्तान में ही है.
क्या वाकई दोनों देशों के रिश्ते 'टूटने' की कगार पर?
अगर पाकिस्तान, तालिबान की बात को अनसुना करता है, और तालिबान भी अपनी जगह अड़ा रहता है, तो सबसे पहले दोनों देशों के बीच व्यापारिक और कूटनीतिक संबंध और खराब होंगे. सीमा पार से आने-जाने पर रोक लग सकती है, जिससे दोनों तरफ के लोगों और अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान होगा.
दूसरा और सबसे खतरनाक परिणाम ये हो सकता है कि सीमा पर तनाव और बढ़ जाए. अगर पाकिस्तान अपनी सैन्य कार्रवाई की धमकी को सच कर दिखाता है, तो हालात और भी बदतर हो सकते हैं. हालांकि, सैन्य टकराव शायद किसी के हित में नहीं होगा, लेकिन जिस तरह से बयानबाजी हो रही है, उससे लगता नहीं कि अभी शांति इतनी आसानी से आएगी.
(निशान्त मिश्रा NDTV में पत्रकार हैं.)
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.
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