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This Article is From Sep 08, 2014

कादम्बिनी शर्मा की कलम से : विदेश नीति के सौ दिन

Kadambini Sharma
  • Blogs,
  • Updated:
    नवंबर 19, 2014 15:56 pm IST
    • Published On सितंबर 08, 2014 22:29 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 19, 2014 15:56 pm IST

मोदी सरकार ने शुरुआत ही विदेश नीति की एक अलग पहल से की थी। उन्होंने अपने शपथ ग्रहण समारोह में सभी सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्षों को बुलाया। पाकिस्तान को भी निमंत्रण भेजा गया। सभी आए भी। इसे चुनावी भाषणबाज़ी से अलग एक व्यवहारिक और सकारात्मक पहल के तौर पर देखा गया। पिछले सौ दिनों में बात इससे कहीं आगे गई है, खासकर जहां तक पड़ोसियों का मामला है।

सोमवार को इन्हीं सौ दिनों का लेखा जोखा देने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज पहली बार मीडिया से मुखातिब हुईं। अभी तक के काम काज़ को फास्ट ट्रैक डिप्लोमेसी का नाम दिया गया है और सबसे पहले एक छोटी सी फिल्म दिखाई गई। लेकिन विदेश मंत्री ने यह कह कर अपनी सरकार का रुख बिल्कुल साफ कर दिया कि कूटनीति और विदेश नीति एक दूसरे का पर्याय नहीं। विदेश नीति अक्सर वही रहती है, लेकिन काम करने का तरीका बदलता है।

जैसा कि पिछले तीन महीनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री के दौरों से साफ है, पड़ोसी पहली प्राथमिकता हैं और लुक ईस्ट बेहद अहम। पीएम की पहली विदेश यात्रा के लिए भूटान को चुना जाना, उनका नेपाल जाना, जापान जाना, विदेश मंत्री का बांग्लादेश, म्यांमार, वियतनाम, सिंगापुर जाना, सब कुछ सुषमा स्वराज ने गिनाया।

लेकिन हमेशा की तरह पाकिस्तान पर फोकस था। वजह साफ है। शपथ ग्रहण के बादी मोदी और शरीफ की मुलाकात हुई थी। कह सकते हैं कि ये पहली द्विपक्षीय बातचीत थी। दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच साड़ी-शाल का आदान-प्रदान भी हुआ। लेकिन बात बनते बनते रह गई। 25 अगस्त को दोनों देशों के विदेश सचिवों की बातचीत होनी थी। ठीक उससे पहले दिल्ली में पाकिस्तान के हाई कमिश्नर अब्दुल बासित ने अलगाववादी हुर्रियत नेताओं से बातचीत की। भारत सरकार के इस चेतावनी के बावजूद कि या तो वह भारत सरकार से ही बात कर लें या अलगाववादियों से। नतीजतन भारत सरकार ने बातचीत रद्द कर दी। उसके बाद ऐसा लगा कि रिश्तों पर बर्फ सी जम गई है। लाइन ऑफ कंट्रोल पर गोली-बारी की घटनाएं बेतहाशा बढ़ गईं।

आज भी बातचीत रद्द होने की सारी ज़िम्मेदारी विदेश मंत्री ने पाकिस्तान पर डाला। कहा ना जाने अलगाववादियों को क्यों बुलाया, क्या सोच रहे थे। हम अपने आंतरिक मामलों में दखलंदाज़ी बर्दाश्त नहीं करेंगे। लेकिन ये भी कहा कि कूटनीति में कोई पूर्णविराम नहीं होता और अमेरिका में मोदी-शरीफ की मुलाकात तय तो नहीं पर स्थिति जैसी होगी देखा जाएगा।

इससे यही लगता है कि संदेश अब सरकार यही देना चाहती है कि पाकिस्तान की अंदरूनी राजनीति या खींचातानी से उसे कोई मतलब नहीं। कड़े मोलभाव की तैयारी है।

विदेश मंत्री का ये कहना कि चुनी हुई सरकारें चुनी हुई सरकारों से बात करती हैं और भारत सरकार पाकिस्तान सरकार से बात करेगी, सेना या आईएसआई से नहीं, इस स्टैंड को और साफ करता है।

वैसे जहां तक कड़ाई से बात करने का सवाल है, चीन को भी साफ संदेश देने में कोई कोर कसर नहीं रखा गया है। अगर वन चाइना हम कह रहे हैं तो वन इंडिया हम भी सुनना चाहते हैं। लकीरें खींच दी गई हैं, और अब इनके आस पास ही बात होगी।

पिछली सरकार और नई सरकार में फर्क क्या है? यह पूछने पर सुषमा कहती हैं, मज़बूत सरकार मज़बूती से बात करेगी। अभी तो तीन महीने ही हुए हैं, ये कड़ाई क्या रंग लाती है ये वक्त बताएगा और इतिहास नतीजों का लिखा जाएगा। हालांकि ये भी सच है कि देश की उम्र सरकारों की उम्र से कहीं ज्यादा होती है।

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