विज्ञापन

सीतामढ़ी: जातियों में बंटे भगवान, हर जातियों के अलग अलग मंदिर

अक्सर पॉलिटिक्स में नेता जातियों में बंटे दिखते हैं. लेकिन सीतामढ़ी में लोगों ने भगवान को ही जातियों में बांट दिया है. समाज के लोग भगवान को अपनी अपनी जातियों का आराध्यदेव मानकर उनकी मूर्तियां स्थापित की है और मंदिर का निर्माण किया है. पुजारी भी अलग अलग जातियों के हैं.

सीतामढ़ी: जातियों में बंटे भगवान, हर जातियों के अलग अलग मंदिर
  • सीतामढ़ी में मांझी-भुइयां समाज ने शबरी मंदिर का निर्माण किया, जिसका पूजारी भी उसी जाति के हैं
  • सीतामढ़ी में जातीय आधार पर 22 अलग-अलग मंदिर हैं, जिनमें प्रत्येक मंदिर किसी एक जाति का है
  • अधिकांश मंदिरों के पुजारी गैर ब्राह्मण जाति के हैं, केवल सीतामढ़ी गुफा मंदिर में ब्राह्मण पुजारी हैं
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही?
हमें बताएं।

सीतामढ़ी में शबरी मंदिर है. इसका निर्माण मांझी-भुइयां समाज के लोगों ने किया है. मुंद्रिका मांझी कहते कहते हैं कि माउंटेनमैन दशरथ मांझी ने इसकी नींव रखी थी, जिसे फिर उनकी जाति के लोगों ने निर्माण किया. उनकी जाति का कोई मंदिर नही था. इसलिए मांझी समाज के जरिए शबरी मंदिर का निर्माण कराया गया. अगहन पूर्णिमा में सीतामढ़ी मेला के अवसर पर प्रत्येक साल समाज के लोग जुटते हैं. पूजा पाठ करते हैं. सामाजिक बैठक करते हैं. मुंद्रिका मांझी कहते हैं कि शबरी उनकी जाति की थी. उनके समाज का आराध्य देव रही हैं. इसलिए उनका मंदिर बनाया गया. शबरी मंदिर का पूजारी भी मांझी जाति के हैं.

Latest and Breaking News on NDTV

सीतामढ़ी में जातीय आधार पर शबरी का मंदिर अकेला नहीं है. बिहार के नवादा जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर सीतामढ़ी में जातीय आधार पर 22 अलग अलग मंदिर हैं, जिसे लोगों ने निर्माण कराया है. शबरी मंदिर के समीप रविदास समाज का मंदिर है. यमुना दास कहते हैं कि रविदास समाज के जरिए रविदास मंदिर का निर्माण कराया गया है. पुजारी भी रविदास समाज के हैं. इस मंदिर में संत रैदास के अलावा डॉ भीम राव अंबेडकर समेत कई मूर्तियां स्थापित की गई है. जहां प्रत्येक साल नवादा और आसपास जिले के रविदास समाज के लोग जुटते हैं. बैठकें, शादियां और सामाजिक गतिविधयां होती है. यमुना दास कहते हैं कि समाज में छूआछूत का वातावरण रहा है. इसीलिए उनके पूर्वजों ने मंदिर का निर्माण कराया था. अब यह उनके समाज के आस्था का प्रमुख केंद्र बन गया है. 

Latest and Breaking News on NDTV

सीतामढ़ी में हर जातियों के अलग अलग भगवान

अक्सर पॉलिटिक्स में नेता जातियों में बंटे दिखते हैं. लेकिन सीतामढ़ी में लोगों ने भगवान को ही जातियों में बांट दिया है. समाज के लोग भगवान को अपनी अपनी जातियों का आराध्यदेव मानकर उनकी मूर्तियां स्थापित की है और मंदिर का निर्माण किया है. पुजारी भी अलग अलग जातियों के हैं. जिस जाति का मंदिर है, उसी जाति के पुजारी हैं. सीतामढ़ी में जरासंघ मंदिर है. इसका निर्माण श्रीचंद्रवंशी क्षत्रिय महापंचायत समिति कोलकाता के जरिए किया गया है. समिति के अध्यक्ष युगल किशोर सिंह कहते हैं कि जरासंध चंद्रवंशी समाज के आराध्यदेव हैं. इसलिए उनका मंदिर बनाया गया है. पूजारी भी चंद्रवंशी समाज के हैं.   

Latest and Breaking News on NDTV



यही नहीं, यादव समाज के मंदिर में राधा कृष्ण, स्वर्णकार समाज के मंदिर में राम, लक्ष्मण, जानकी और लक्ष्मी, कुशवाहा समाज के मंदिर में लवकुश की मूर्ति है. यही नहीं, राजवंशी समाज के मंदिर में बजरंगबली, चैहान समाज के मंदिर में राम जानकी, चैधरी समाज और रविदास समाज के मंदिर में भगवान शंकर और मांझी-भूइयां समाज राम और सबरी को अराध्यदेव मानकर मूर्ति स्थापित कर मंदिर का निर्माण किया है.

सीतामढ़ी में एक सर्वजाति मंदिर है. इसमें मां दूर्गा की प्रतिमा है. लोगों का तर्क है कि भगवान सबके हैं, लेकिन सामाजिक बुराइयों के कारण पूजापाठ में छुआछूत की भावना रही है. इसलिए लोग अपने अपने आराध्य देव के लिए मंदिर का निर्माण किया है. कहते हैं कि जात-पात पूछे न कोई, हरि को भजे सो हरि का होई. यानी भगवान के भजन में जात-पात नहीं देखी जाती.

नाई और पासी जाति का अलग अलग मंदिर

सीतामढ़ी में बाबा धर्मदास का मंदिर है. इस मंदिर का निर्माण नाई समाज के लोगों ने किया. पूजारी अनिल कुमार ठाकुर कहते हैं कि बाबा धर्मदास उनकी जाति के आराध्यदेव हैं. इसलिए बाबा धर्मदास की मूर्ति स्थापित की गई है और मंदिर का निर्माण किया गया है. नाई समाज के लोगों ने मिलकर मंदिर का निर्माण किया. अनिल ठाकुर कहते हैं कि उनके मंदिर में ब्राहम्णवाद नही है. पूजारी भी नाई जाति से हैं. यही नहीं, अखिल भारतीय पासी समाज की स्थानीय ईकाई ने शिवमंदिर का निर्माण कराया हैं. बीएल चौधरी कहते हैं ईश्वर की अराधना किसी जाति की थाती नहीं है. इसलिए चौधरी समाज ने भी अलग मंदिर का निर्माण किया है. पुजारी भी उनकी जाति के हैं.

राजवंशी समाज के आराध्यदेव हैं बजरंगबली

सीतामढ़ी में राजवंशी समाज का अलग मंदिर हैं. राजवंशी समाज बजरंगबली को अपना अराध्यदेव मानते हैं. राजवंशी समाज के नेता सुरेंद्र राजवंशी कहते हैं कि राजवंशी मंदिर का निर्माण उनकी जाति के लोगों ने किया है, जिसमें बजरंगबली की प्रतिमा स्थापित की गई है. पुजारी भी उनकी जाति के हैं. तर्क है कि राजवंशी जाति बजरंगबली कुल के रहे हैं. बजरंगबली पुरषोतम श्रीराम के सारथी रहे हैं. सीतामढ़ी सीता की निवार्सन स्थली रही है. सीता जी बजरंगबली को पुत्र के समान मानते थे. इसलिए यहां बजरंगबली मंदिर का निर्माण कराया गया है. उपेंद्र राजवंशी कहते हैं कि पूजा पाठ के अलावा यहां कई सामाजिक कार्य किए जाते हैं. उनकी जाति समाज में उपेक्षित रहा है, समाज के उत्थान के लिए सामूहिक प्रयास किया जाता है.

Latest and Breaking News on NDTV

चौहान समाज श्री राम को मानते हैं आराध्यदेव

चौहान समाज श्री राम को अपना आराध्य देव मानते हैं. चौहान समाज के संत कौशल दास कहते हैं कि उनके समाज का देश में छह मंदिर है. इनमें एक मंदिर सीतामढ़ी में है. सभी छह मंदिरों का निर्माण चौहान समाज के जरिए किया गया है. पूजारी भी चौहान समाज से रहते हैं. कौशल दास कहते हैं कि चौहान जाति सूर्यवंशी कुल के हैं. भगवान श्रीराम सूर्यवंशी है, इसलिए चौहान समाज भगवान श्रीराम की पूजा अर्चना करते हैं. मंदिर में भगवान राम जानकी की मूर्ति स्थापित है. 

Latest and Breaking News on NDTV

अकेला मंदिर जहां ब्राम्हण पुजारी

सीतामढ़ी में 22 मंदिर है. लेकिन अकेला प्राचीन मंदिर है, जहां ब्राम्हण पुजारी है. सीताराम पाठक कहते हैं कि सीतामढ़ी सीता की निर्वासन स्थली रही है. श्रीराम के परोक्ष आदेश से विश्वकर्मा ने सीतामढ़ी मंदिर का निर्माण कराया था. सीता की स्मृतियों से जुड़ी कई चीजें है जो यह दर्शाता है कि यह मां सीता से जुड़ा स्थल रहा है. धार्मिक मान्यता है कि सीता निर्वासन काल में सीतामढ़ी गुफा में रही थी. यहां लव-कुश का जन्म हुआ था. गुफा में सीता और लवकुश की पूजा की जाती है. मंदिर के आगे दो भागों में बंटे चट्टान के बारे में मान्यता है कि सीता यहीं पर धरती पर समा गई थीं. सीतामढ़ी गुफा मंदिर के पुजारी ब्राह्मण हैं. पुजारी सीताराम पाठक के मुताबिक, वर्षों से मेरे पूर्वज इस मंदिर के पुजारी रहे हैं. इस मंदिर में पूजा पाठ पर किसी जाति की पाबंदी नहीं है. 

Latest and Breaking News on NDTV

सीता की निर्वासन स्थल बन गया वंचितों का तीर्थस्थल

दरअसल, सीतामढ़ी का इलाका वीरान था. प्रत्येक साल अगहन पूर्णिमा के अवसर पर लगनेवाला मेला में लोग जुटते थे. लोग जातीय आधार पर बैठकें करने लगे.सामाजिक मुद्दे सुलझाने लगे. फिर मंदिर का निर्माण करने लगे. इन मंदिरों में सालाना सम्मेलन, पंचायती के अलावा शादी विवाह जैसे सामाजिक और धार्मिक कार्यक्रम किए जाने लगे.


शुरुआत में ज्यादातर उन जातियों के लोगों ने मंदिर का निर्माण किया, जो ग्रामीण क्षेत्रों में छूआछूत की भावना से ग्रसित थे. फिर देखा देखी कई अन्य जातियों ने भी मंदिर का निर्माण कराया. सीतामढ़ी में कुल 22 जातियों के मंदिर है. इसमें सिर्फ एक सीतामढ़ी गुफा मंदिर में ब्राह्मण पुजारी हैं. बाकी 21 मंदिरों के पुजारी गैर ब्राह्मण हैं, जो ओबीसी और एससी जातियों से आते हैं. देखें तो, सीतामढ़ी में मंदिर का निर्माण सदियों से चली आ रही छुआछूत की परंपरा से उपजी पीड़ा के प्रतीक है. सामाजिक टकराव से बचने के लिए लोगों ने यह राह अपनाई थी. लेकिन धीरे धीरे सामाजिक और धार्मिक बदलाव का केन्द्र बन गया. यह लोगों खासकर वंचितों का बड़ा तीर्थस्थल बन गया है.

पूर्व केंद्रीय मंत्री और नवादा के सासंद रहे डॉ संजय पासवान का मानना है कि हिन्दू धर्म की सर्वाधिक रक्षा वंचित समाज ने की, जो विधर्मियों से लड़कर भी अपने धर्म की रक्षा की है. डॉ संजय पासवान कहते हैं कि समाज में धर्म को जीवंत रखने में दलितों और वंचितों की भूमिका महत्वपूर्ण रही है. जिन्होंने अपना धर्मांतरण और मतान्तरण नही किया. देश, धर्म और धरती को दलित समाज ने सदैव से संजोने का काम किया है. सीतामढ़ी उसी क्रम का एक जीता जागता मिसाल है, जिसे सदियों से संजोकर रखा है.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com