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समस्तीपुर विधानसभा क्षेत्र : बदलती राजनीति और परंपरागत समीकरण के बीच होगी चुनावी फाइट

समस्तीपुर में शहरी इलाकों में जलजमाव, बेरोज़गारी और गंदगी के मुद्दे हावी हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्र खेती, सिंचाई और सड़क की बदहाली से परेशान हैं. राजद को परंपरागत यादव-मुस्लिम वोट का लाभ मिलता है, जबकि भाजपा को शहरी और अगड़ी जातियों का समर्थन हासिल रहता है.

समस्तीपुर विधानसभा क्षेत्र : बदलती राजनीति और परंपरागत समीकरण के बीच होगी चुनावी फाइट
प्रतीकात्मक फोटो

मैथिली अंचल का प्रमुख राजनीतिक केंद्र समस्तीपुर जातीय और विकास आधारित राजनीति का संगम है. यहां यादव, कुर्मी, भूमिहार और मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं. करीब 2.7 लाख मतदाताओं में यादव और मुसलमान मिलकर लगभग 40% हैं, जिससे यह सीट अक्सर राजद और जदयू के बीच मुकाबले का केंद्र रही है. 2020 में भाजपा ने भी यहां मजबूत प्रदर्शन कर त्रिकोणीय मुकाबला बना दिया. शहरी इलाकों में जलजमाव, बेरोज़गारी और गंदगी के मुद्दे हावी हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्र खेती, सिंचाई और सड़क की बदहाली से परेशान हैं. राजद को परंपरागत यादव-मुस्लिम वोट का लाभ मिलता है, जबकि भाजपा को शहरी और अगड़ी जातियों का समर्थन हासिल रहता है. इस बार महागठबंधन और एनडीए के बीच सीधी टक्कर है, लेकिन जन सुराज तीसरे मोर्चे की संभावनाएं बढ़ा रहा है.

बता दें कि समस्तीपुर विधानसभा एक ऐसा सियासी अखाड़ा है, जहां हर चुनाव में कांटे की टक्कर देखने को मिलती है. फिलहाल यहां आरजेडी का कब्जा है. समस्तीपुर सीट की पहचान महान समाजवादी नेता जननायक कर्पूरी ठाकुर से जुड़ी है. उन्होंने 1980 से 1985 तक इस सीट का प्रतिनिधित्व किया. 2020 के विधानसभा चुनाव में राजद के उम्मीदवार मो. अख्तरुल इस्लाम शाहिन ने एक बार फिर यह सीट जीती. यह उनकी लगातार तीसरी जीत थी. उन्होंने जदयू की उम्मीदवार अश्वमेध देवी को हराया, लेकिन जीत का अंतर बहुत कम था. शाहिन 2010 से ही इस सीट पर विधायक हैं. 2015 में भी उन्होंने भाजपा की रेणु कुमारी को बड़े अंतर से मात दी थी हालांकि, 2000 से 2010 तक सीट का प्रतिनिधित्व कर्पूरी ठाकुर के पुत्र रामनाथ ठाकुर (जदयू) ने किया था. 1957 में अस्तित्व में आई इस सीट पर अब तक 16 बार चुनाव हुए हैं, जिसमें कांग्रेस ने तीन बार जीत हासिल की, लेकिन असली दबदबा हमेशा समाजवादी पार्टियों का रहा है.

समस्तीपुर विधानसभा का चुनावी गणित जातिगत समीकरणों पर भी निर्भर करता है. इस सीट पर मुस्लिम और यादव वोटरों की संख्या सबसे अधिक है, जो राजद का मुख्य आधार माना जाता है. इसके अलावा, ब्राह्मण और राजपूत मतदाताओं की संख्या भी अच्छी है, जो चुनाव परिणामों को प्रभावित करते हैं. पिछले दो चुनावों में राजद की जीत का अंतर लगातार घट रहा है. 2015 में शाहिन की जीत का अंतर 31,000 वोटों से अधिक था, जो 2020 में घटकर मात्र 4,714 वोटों पर आ गया. यह साफ दिखाता है कि सीट पर मुकाबला कितना कड़ा होता जा रहा है. समस्तीपुर जिला भौगोलिक रूप से उत्तर में बागमती नदी, पश्चिम में वैशाली और मुजफ्फरपुर, दक्षिण में गंगा और पूर्व में बेगूसराय व खगड़िया से घिरा है. यह पूर्वी मध्य रेलवे का मंडल मुख्यालय है और पटना, कोलकाता, दिल्ली जैसे औद्योगिक शहरों से रेल द्वारा सीधा जुड़ा हुआ है. यहां की मुख्य भाषाएं हिंदी और मैथिली हैं. महान कवि और शिवभक्त विद्यापति ने अपने जीवन का अंतिम समय इसी जिले के विद्यापतिनगर में बिताया.

2 जनवरी 1975 को समस्तीपुर ने एक दुखद घटना देखी. तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र की हत्या स्थानीय रेलवे स्टेशन पर बम विस्फोट में हुई थी. 39 साल तक चले लंबे मुकदमे के बाद चार लोगों को दोषी ठहराया गया. यह घटना आज भी भारत की सबसे रहस्यमय राजनीतिक हत्याओं में से एक मानी जाती है. समस्तीपुर आज भी अपनी राजनीतिक विरासत, कवियों की गाथाओं और रेलवे की धड़कन के साथ बिहार के मानचित्र पर एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। 2025 के विधानसभा चुनाव के लिए यह सीट एक बार फिर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन चुकी है.

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