
बिहार में अपराध की घटनाएं बढ़ रही हैं, जिससे विपक्ष को सरकार पर हमला करने का मौका मिल रहा है. मुजफ्फरपुर में दलित लड़की के साथ बलात्कार और हत्या का मामला सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन गया है. विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे पर सरकार को घेर रही हैं और यह साबित करने की कोशिश कर रही हैं कि नीतीश सरकार दलित विरोधी है और महिलाओं की सुरक्षा करने में असमर्थ है.
विपक्ष सरकार पर हमलावार
मुजफ्फरपुर में हुई दलित लड़की के साथ बलात्कार और हत्या का मामला बिहार सरकार के लिए नासूर बनता जा रहा है. घटना से उठे बवंडर ने बिहार सरकार को पूरी तरह से बैकफुट पर डाल दिया है और विपक्ष को एक मौका दे दिया है. सरकार पर हमलावर होने का. पिछले तीन दिनों से इस मामले पे विपक्षी पार्टियां लगातार नीतीश सरकार को घेर रही है. सरकार पर जोरदार हमला कर रही है और लोगों की नजर में यह साबित करने की कोशिश कर रही है कि नीतीश की एनडीए सरकार ना केवल दलित विरोधी है, बल्कि महिलाओं की रक्षा भी नहीं कर सकती.
अब जिस तरीके से राजनीतिक दल इस पूरे मुद्दे को उठा रहे हैं. इससे यह साफ है कि आने वाले बिहार चुनाव में इसे पूरी तरह से एक मुद्दा बनाने की तैयारी है. मुद्दा महिला सुरक्षा को लेकर होगा. मुद्दा दलितों के ऊपर हो रहे अत्याचार को लेकर कर होगा और मुद्दा चरमरा रही कानून व्यवस्था और स्वास्थ्य व्यवस्था को ले कर भी होगा.
राहुल गांधी ने इस मुद्दे पर एक्स पोस्ट किया
जैसे ही ये जघन्य घटना घटी और बिहार में राजनीतिक दलों को यह भनक लगी की यह बच्ची दलित समाज से आती है. अचानक से सभी राजनीतिक दल सक्रिय हो गए. खासकर कांग्रेस, जिसने पहले दिन से इस मुद्दे को एक तरह से हथिया लिया. ना केवल कांग्रेस के आलाकमान राहुल गांधी ने इस मुद्दे पर एक्स पोस्ट करके इस मुद्दे को एक नया आयाम दे दिया, बल्कि बिहार कांग्रेस के सभी बड़े नेता एक साथ इस पर सक्रिय दिखे. एक के बाद एक, ताबड़तोड़ प्रेस कांफ्रेंस का दौर चलने लगा. पटना के सदाकत आश्रम में और तुरंत निर्णय लिया गया. आक्रोश मार्च निकला भी, पुलिस के साथ हाथापाई भी हुई. गिरफ्तारी भी हुई और ये सभी चीजें अखबारों और टेलीविजन की सुर्खियां बनीं, ठीक वैसे ही जैसा कांग्रेस चाहता था.
नेता प्रतिपक्ष और राजद के तेजस्वी यादव उस वक्त कलकत्ता में मौजूद थे. अपने बेटे के जन्म के अवसर पर. लेकिन जैसे ही वो पटना पहुंचे, सरकार पर जोरदार हमला बोल दिया. सरकार को महिला विरोधी और दलित विरोधी घोषित कर दिया और तुरंत ही रवाना हो गए मुजफ्फरपुर उस पीड़ित बच्ची के घर, उनके परिजनों से मिलने. यानी RJD भी अब इस मुद्दे को हाथ से जाने नहीं देना चाहती.
एम्बुलेंस में तड़पती रही नाबालिक बेटी
मुजफ्फरपुर के तुर्की थाना क्षेत्र के रहने वाली दलित समाज की इस नाबालिक बेटी के साथ हुई जघन्य घटना ने सबकी आंखें नम कर दी और इस पूरे सिस्टम पे एक जोरदार तमाचा सा पड़ा. एक छोटी बच्ची के साथ न केवल बलात्कार हुआ, बल्कि उसका गला भी रेत दिया. इस पूरे हादसे ने बिहार के स्वास्थ्य विभाग को भी सवालों के घेरे में डाल दिया. बच्ची को इलाज के लिए पहले मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच अस्पताल ले जाया गया तो वहां भी इसकी अनदेखी की गई और फिर जब इसे बेहतर इलाज के लिए पटना के पीएमसीएच भेजा गया तो वहां छह घंटे तक ये एम्बुलेंस में तड़पती रही. आखिरकार वो जिंदगी से अपनी जंग हार गई.
मामला एक दलित परिवार के बच्ची से जुड़ा हुआ है, इसीलिए सत्तारूढ़ दल के नेता भी इस मामले में पूरी तरह से बैकफुट पर दिख रहे हैं. वे इस बात को बखूबी समझ रहे हैं कि इस घटना से न केवल उनका स्वास्थ्य सिस्टम सवालों के घेरे में आ गया है, बल्कि इसका असर सीधे तौर पर उनको आने वाले चुनाव में झेलना पड़ सकता है. अगर कहीं यह संदेश लोगों के जेहन में उतर गया कि सरकार दलितों की सुरक्षा के लिए और उनके हितों की रक्षा के लिए सचेत नहीं है तो चुनाव में इसके दूरगामी प्रभाव पड़ेंगे और यही कारण है कि सरकार तत्काल आ गई है डैम कंट्रोल मोड में.
ताबड़तोड़ दिए गए निर्णय में एसकेएमसीएच के सुपरिटेंडेंट को सस्पेंड कर दिया. पटना मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल के कार्यकारी सुपरिटेंडेंट को उनके पद से हटा दिया गया और जांच के लिए तीन सदस्य कमेटी गठित कर दी गई.
कांग्रेस बिहार में पिछले कुछ दिनों से दलित मामले पे कुछ ज्यादा ही सक्रिय दिख रही है. पिछले सात महीनों में राहुल गांधी छह बार बिहार आ चुके हैं और हर बार वो दलितों से जुड़े हुए किसी मुद्दे या कार्यक्रम पर ही बिहार आ रहे हैं. ये साफ है कि बिहार में कांग्रेस इस बार दलित वोट में सेंध लगाने की कोशिश में है और उसकी पुरजोर कोशिश रहेगी कि वे अपने आप को दलितों के सबसे बड़े हिमायती के रूप में चुनाव मैदान में जाए.
अगर आप कांग्रेस की राजनीतिक स्थिति पर नजर डालेंगे तो कांग्रेस का बिहार में उसका जनाधिकार लगभग खिसका हुआ नजर आता है. उसकी राजनीतिक हैसियत महज राजद की बी टीम के रूप में है और कोई ऐसा जातिगत धड़ा या कुनबा ऐसा नहीं है जिसे कांग्रेस अपना कह सके या उस पर अपना दावा ठोक सके. कांग्रेस चुनाव से पूर्व बिहार में चल रहा है. उसे देखकर लगता है कि वो मुसलमानों और दलितों कि अपने पुराने वोट बैंक को वापस पाने की कवायद में जुटा है और यही कारण है की राजेश राम को बिहार कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया, जो कि एक दलित समुदाय से आते हैं. लेकिन कांग्रेस की कवायद से जिस दल को सबसे ज्यादा नुकसान होगा वह है उसकी सहयोगी पार्टी राजद क्योंकि अब तक राजद बिहार की राजनीति में मुसलमान वोट पर राजद सीधा काबिज था. अब जब कांग्रेस उनका भी दिल जीतने की कोशिश कर रही है तो वह कहीं ना कहीं राजद को असहज कर सकता है.
दलित वोट बैंक एक महत्वपूर्ण राजनीतिक समूह है, जिसमें कई दल अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश करते हैं. भाजपा, जदयू, राजद, जीतन राम मांझी और कांग्रेस जैसे दल दलित वोटों को आकर्षित करने के लिए प्रयासरत हैं. कांग्रेस अब इस वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए सक्रिय रूप से प्रयास कर रही है, और अगर वे इसमें कुछ हद तक सफल होते हैं, तो यह आगामी चुनावों में बड़ा बदलाव ला सकता है.
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