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This Article is From Jun 16, 2021

क्या चिराग़ भाजपा और नीतीश के संयुक्त मिशन के शिकार हुए?

Chirag Paswan vs Pasupati Kumar Paras: आने वाले दिनों में लोक जनशक्ति पार्टी में उठापटक का केंद्र राजधानी पटना होगा. जहां लोकसभा में नवनियुक्त संसदीय दल के नेता पशुपति कुमार पारस बुधवार को पहुंचेंगे और असल लोक जनशक्ति होने का दावा करेंगे.

क्या चिराग़ भाजपा और नीतीश के संयुक्त मिशन के शिकार हुए?
Chirag Paswan vs Pasupati Kumar Paras: अब पटना में होगी चाचा-भतीजे की सियासी जंग
पटना:

Chirag Paswan vs Pasupati Kumar Paras:आने वाले दिनों में लोक जनशक्ति पार्टी में उठापटक (LJP) का केंद्र राजधानी पटना होगा. जहां लोकसभा में नवनियुक्त संसदीय दल के नेता पशुपति कुमार पारस (Pasupati Paras) बुधवार को पहुंचेंगे और असल लोक जनशक्ति होने का दावा करेंगे. मंगलवार को उनके घर पर चिराग़ समर्थकों के हमले के बाद घर की सुरक्षा बढ़ा दी गयी है. अब तक पिछले तीन दिन के घटनाक्रम से साफ़ है कि चिराग़ पासवान (Chirag Paswan) को राजनीतिक रूप से हाशिये पर लाने के इस मिशन में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की भूमिका सबसे अधिक रही, जिसका प्रमाण था कि सब कुछ उनके पार्टी के वरिष्ठ नेता महेश्वर हज़ारी के घर पर तय हुआ, दिल्ली में इस तोड़ फ़ोड की कमान लोक सभा में संसदीय दल के नेता ललन सिंह ने सम्भालीं हुई थी और उनका साथ देने के लिए विधान परिषद के संजय सिंह भी पटना से कैंप कर रहे थे. वहीं इन लोगों को भाजपा का भी पूरा साथ मिला, जिसका सबूत हैं रविवार को लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला का इस गुट से मिलना और बाद में बिना चिराग़ पासवान का पक्ष सुने इस गुट को मान्यता दे देना. 

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हालांकि मंगलवार को पारस गुट ने जब उन्हें इस बात का ख़बर मिला कि चिराग़ उन्हें पार्टी से निलम्बित करने की घोषणा करने वाले हैं तो आनन फ़ानन में चिराग़ को एक व्यक्ति और एक पद के सिद्धांत पर निकालने की घोषणा की लेकिन उनके घर हुई बैठक में कौन कौन शामिल था उसका ना फ़ोटो और न ही विजुअल जारी किया गया. वहीं चिराग़ ने वर्चुअल बैठक का फ़ोटो जारी किया और उसके बाद विधिवत रूप से निलंबन का ऐलान किया. जानकार मानते हैं कि काग़ज़ी रूप से चिराग़ मज़बूत हैं लेकिन सरकार का समर्थन दिल्ली से पटना तक पारस गुट को हैं इसलिए वो जो चाहेंगे वैसा होगा. लेकिन चिराग़ को परेशानी उनके लिए कोरामीन का काम करेगा क्योंकि पासवान वोटर में 'नेता चिराग हैं या पारस' उसको लेकर कोई कन्फ़्यूज़न नहीं है. अगर आप पासवान जाति के किसी भी व्यक्ति से बात करेंगे तो उसका यही कहना है कि जब रामविलास पासवान ने इस मुद्दे को सेटल कर दिया और चिराग़ को उतराधिकारी मान लिया तो अब सवाल क्यों पूछा जा रहा है. 

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चिराग़ के पक्ष में ज़मीन पर एक और बात बहुत अधिक हवा बनाने का काम कर रही है. जैसे-जैसे ये बात खुल रही हैं कि सब कुछ नीतीश के इशारे पर हुआ और पारस उनकी सार्वजनिक रूप से तारीफ़ करते हैं. वैसे-वैसे उनको यह विश्वास होता जा रहा है कि नीतीश अब रामविलास के बाद चिराग़ को राजनीतिक रूप से हाशिए पर लाना चाहते हैं. इस समुदाय के अधिकांश लोग अभी भी आपको नीतीश कुमार की वो बाइट दिखाने लगते हैं कि कैसे उन्होंने जब रामविलास अस्पताल में भर्ती थे तब उसकी जानकारी होने से इंकार किया था. यहां तक मंत्रालय के स्तर पर दोनो नेताओं में चिट्ठी के माध्यम से एक दूसरे पर खूब आरोप-प्रत्यारोप होता था. 

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इसके अलावा चार दिन के लिए पारस ने जैसे सूरजभान सिंह को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया उससे उनके ख़िलाफ़ पासवान जाति के वोटर में नाराज़गी बढ़ी कि कैसे एक ऊंची जाति के बाहुबली नेता को कमान दे दिया गया जिसकी स्थापना रामविलास पासवान ने की थी. वहीं बिहार भाजपा के अधिकांश वरिष्ठ नेताओं का मानना हैं कि इस पूरे खेल का लाभ आख़िरकार चिराग़ को मिलेगा क्योंकि वोटर उन्हें छोड़ने वाला नहीं. और दलित समुदाय में शराबबंदी के बाद पुलिस की धरपकड़ के कारण काफ़ी आक्रोश रहता है. जिसका ख़ामियाज़ा उन्होंने पिछले चुनाव में उतना नहीं झेला लेकिन जो फार्मूला चिराग़ ने नीतीश के ख़िलाफ़ लगाया वो अगर भाजपा के उम्मीदवारों के ख़िलाफ़ भी लगाया तो पार्टी को काफ़ी नुक़सान हो सकता हैं. 

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