
- बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए NDA ने जदयू और भाजपा को बराबर 101-101 सीटें आवंटित की हैं.
- चिराग पासवान की लोजपा को 29 सीटें मिली हैं जिससे उनकी राजनीतिक ताकत और महत्व बढ़ा है.
- जीतन राम मांझी की पार्टी हम को सिर्फ छह सीटें मिली हैं, जो पिछली बार से कम है.
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए NDA ने आखिरकार सीट बंटवारे का ऐलान कर दिया.
- जदयू 101
- भाजपा 101
- लोजपा(रामविलास) 29
- हम 6
- आरएलएम 6 सीटें
कुल मिलाकर 243 सीटों के इस समीकरण में नीतीश कुमार और BJP के बीच पहली बार “बराबरी का गणित” सामने आया है. यही बराबरी इस बंटवारे का सबसे बड़ा राजनीतिक संकेत है.
बिहार में अब तक बड़े भाई में भूमिका में रहते थे नीतीश
अब तक बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार हमेशा “बड़े भाई” की भूमिका में रहे हैं. 2020 के चुनाव में जदयू को BJP से अधिक सीटें मिली थीं, हालांकि नतीजों में BJP आगे निकल गई थी. लेकिन इस बार 101-101 का बंटवारा इस बात का प्रतीक है कि BJP ने अब JDU को बराबरी की साझेदार मान लिया है, न कि वरिष्ठ सहयोगी.
यह BJP की ओर से स्पष्ट संकेत है कि वह बिहार की राजनीति में नीतीश पर निर्भर नहीं रहना चाहती, बल्कि सत्ता संतुलन बनाए रखते हुए अगले चरण में नेतृत्व की स्थिति हासिल करने की तैयारी कर रही है.
चिराग की ताकत बढ़ी
वहीं बात चिराग पासवान की करें तो उनकी ताकत बढ़ी है. पिछले चुनाव में LJP (रामविलास) खेल बिगाड़ने की भूमिका में थे, जिस कारण JDU को काफी नुकसान हुआ था. इस बार 29 सीटें देकर NDA ने चिराग पासवान को बड़ा राजनीतिक संदेश दिया है.
भाजपा अब उन्हें दलित चेहरा और युवा ऊर्जा के रूप में प्रमोट करना चाहती है. इन सीटों की बढ़ोतरी से लोजपा का महत्व बढ़ा है और चिराग पासवान NDA के “तीसरे ध्रुव” के तौर पर उभरे हैं. यानी, भाजपा-JDU के बाद चिराग अब एक मुखर सहयोगी बन चुके हैं जिनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा भाजपा के लिए भविष्य का निवेश है.
जीतन राम मांझी एडजस्मेंट पॉलिटिक्स के शिकार
वहीं जीतन राम मांझी की सीटों में कटौती हुई है और वो ‘एडजस्टमेंट पॉलिटिक्स' के शिकार हो गए. जीतन राम मांझी की पार्टी हम को इस बार सिर्फ 6 सीटें दी गई हैं — जो पिछली बार से कम है.
राजनीतिक सूत्रों का कहना है कि चिराग पासवान को संतुष्ट करने के लिए ही मांझी की सीटें कम की गईं. यह संदेश भी स्पष्ट है कि अब NDA का फोकस दलित नेतृत्व को एक चेहरा देने पर है और वह चेहरा चिराग पासवान हैं, मांझी नहीं. मांझी भले NDA में बने रहें, पर उनका प्रभाव सीमित होता दिख रहा है.
सीट बंटवारे से निकले संकेत- नीतीश अब बराबरी के साथ, चिराग उदीयमान चेहरा
बिहार NDA का यह सीट बंटवारा सिर्फ चुनावी तालमेल नहीं, बल्कि शक्ति संतुलन का ऐलान है. जहां नीतीश अब “बराबर के साथी” हैं, वहीं चिराग पासवान नए “उदीयमान चेहरा” बनकर उभरे हैं. मांझी और छोटे सहयोगियों के हिस्से में एडजस्टमेंट की मजबूरी आई है, पर भाजपा का लक्ष्य साफ है-2025 का संतुलन बनाते-बनाते 2030 की नेतृत्व यात्रा शुरू करना.
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