- लालगंज विधानसभा सीट पर भाजपा के संजय कुमार सिंह ने आरजेडी की शिवानी शुक्ला को भारी मतों के अंतर से हराया
- लालगंज क्षेत्र में 69.62 प्रतिशत मतदान हुआ, जहां कांग्रेस के आदित्य कुमार राजा ने नामांकन वापस ले लिया था
- लालगंज विधानसभा सीट का सामाजिक और राजनीतिक इतिहास बाहुबल, अपराध और विकास के मुद्दों से जुड़ा हुआ है
लालगंज विधानसभा सीट यहां से बीजेपी के मौजूद विधायक संजय कुमार सिंह ने फिर एक बार अपने नाम कर ली है. यहां उनका मुकाबला आरजेडी उम्मीदवार बाहुबली मुन्ना शुक्ला की बेटी शिवानी शुक्ला के साथ था. संजय कुमार सिंह ने शिवानी शुक्ला को 32,167 वोटों के अंतर से हराया है. संजय कुमार सिंह को 127650 और शिवानी शुक्ला को कुल 95483 वोट मिले. तीसरे स्थान पर यहां निर्दलीय उम्मीदवार धीरेंद्र कुमार महतो रहे. बिहार के वैशाली जिले की लालगंज सीट को लेकर कांग्रेस और आरजेडी में खूब खींचतान हुई. इस खींचतान के बीच यहां 69.62% वोटिंग हुई है. कांग्रेस ने यहां से आदित्य कुमार राजा को टिकट दिया था, तो आरजेडी ने बाहुबली मुन्ना शुक्ला की बेटी शिवानी शुक्ला को चुनाव मैदान में उतारा दिया. लेकिन कांग्रेस के आदित्य राजा ने अपना नामांकन वापस ले लिया था.
| उम्मीदवार | कितने वोट मिले | कौन जीता |
| संजय कुमार सिंह (बीजेपी) | 127650 | जीते |
| शिवानी शुक्लात्र (आरजेडी) | 95483 | - |
| धीरेंद्र कुमार महतो (निर्दलीय) | 4441 | - |
ये है वोटों का जातीय समीकरण, माहौल क्या है?
जातीय समीकरण की बात करें तो लालगंज मुख्यतः ग्रामीण इलाका है. 2025 का विधानसभा चुनाव लालगंज के लिए निर्णायक हो सकता है. भाजपा अपनी पहली जीत को दोहराने की कोशिश में होगी, जबकि आरजेडी ने बाहुबली की बेटी को मैदान में उतारकर अलग रणनीति बनाई है. बाहुबल और जातीय समीकरण के साथ-साथ अब विकास भी यहां का अहम चुनावी मुद्दा बन चुका है. 2024 में चुनाव आयोग की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, यहां की जनसंख्या 573916 है, जिसमें 302571 मेल और 271345 फीमेल हैं. वहीं 350651 कुल वोटर हैं, जिसमें से 183303 मेल, 167330 फीमेल और 18 थर्ड जेंडर हैं.
लालगंज सीट का इतिहास
बिहार के वैशाली जिले की लालगंज विधानसभा सीट प्रदेश की बदलती सामाजिक-राजनीतिक तस्वीर का प्रतीक है. शहरीकरण और बढ़ती व्यापारिक गतिविधियों के कारण लालगंज राज्य के सबसे उभरते क्षेत्रों में गिना जाने लगा है. ऐतिहासिक रूप से भी इस क्षेत्र का विशेष महत्व रहा है. ब्रिटिश शासनकाल में लालगंज प्रशासनिक दृष्टि से एक प्रमुख इलाका था और 1969 में इसे नगर परिषद (नगर बोर्ड) का दर्जा मिला. लालगंज की भौगोलिक स्थिति इसे आर्थिक रूप से संपन्न बनाती है. गंडक नदी के किनारे बसे इस क्षेत्र में सिंचाई की उत्तम व्यवस्था है, जिससे धान, गेहूं, मक्का, दालें, सब्जियां और तंबाकू जैसी फसलें खूब होती हैं. हाल के वर्षों में किसानों ने केला, लीची, आम की बागवानी और डेयरी फार्मिंग की ओर भी रुख किया है. यहां से जिला मुख्यालय हाजीपुर 20 किमी, मुजफ्फरपुर 37 किमी और पटना मात्र 39 किमी की दूरी पर है.
बाहुबल और अपराध से भी जुड़ी पहचान
लालगंज की पहचान सिर्फ विकास या कृषि से नहीं, बल्कि बाहुबल और अपराध से भी जुड़ी रही है. इस क्षेत्र की राजनीति लंबे समय तक बाहुबलियों के प्रभाव में रही, जिनमें सबसे चर्चित नाम है विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला. वे तीन बार विधायक रह चुके हैं और कुख्यात अपराधी छोटन शुक्ला के छोटे भाई हैं. तत्कालीन मंत्री बृज बिहारी प्रसाद हत्याकांड में निचली अदालत ने मुन्ना शुक्ला को आजीवन कारावास की सजा दी, लेकिन पटना हाईकोर्ट से बरी होने के बाद वे राजनीति में लौटे और 2000 में निर्दलीय, फरवरी 2005 में एलजेपी और अक्टूबर 2005 में जेडीयू के टिकट पर विधानसभा चुनाव जीते. उनकी पत्नी अन्नू शुक्ला ने 2010 में जेडीयू से जीत दर्ज की. हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए मुन्ना शुक्ला को फिर से आजीवन कारावास की सजा सुना दी. साल 1951 में स्थापित लालगंज विधानसभा सीट हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र के छह विधानसभा क्षेत्रों में से एक है. शुरुआती वर्षों में इसे लालगंज उत्तर और दक्षिण के रूप में विभाजित किया गया था. कांग्रेस ने शुरुआती दौर में यहां मजबूत पकड़ बनाई थी.
कांग्रेस का रहा दबदबा... जानें कब कौन जीता?
लालगंज दक्षिण से तीन और लालगंज उत्तर से एक निर्दलीय उम्मीदवार विजयी हुए. 1967 में परिसीमन के बाद इसे एकीकृत सीट बना दिया गया. तब से अब तक यहां 14 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. कांग्रेस ने चार बार, जबकि जनता दल, जेडीयू और एलजेपी ने दो-दो बार जीत दर्ज की है. इसके अलावा लोकतांत्रिक कांग्रेस, जनता पार्टी, एक निर्दलीय और भाजपा ने भी एक-एक बार जीत हासिल की. 2020 के विधानसभा चुनाव में पहली बार भाजपा ने यह सीट जीती. संजय कुमार सिंह ने बहुकोणीय मुकाबले में जीत दर्ज की थी. उस समय मुन्ना शुक्ला को जेडीयू से टिकट नहीं मिला था और उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा था.
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