भाजपा उम्मीदवार रामकृपाल यादव ने दानापुर से राजद के रीतलाल यादव को हरा दिया है. भाजपा नेता रामकृपाल यादव ने इस जीत को दानापुर की जनता की जीत बताते हुए कहा कि दानापुर की जनता को प्रणाम. उन्होंने दानापुर की जनता का आभार जताते हुए कहा कि यहां बाहुबली वाली कोई बात नहीं है, जनबल के सामने कोई बल नहीं है. उन्होंने कहा कि दानापुर की जनता ने हमेशा हमें प्यार दिया है, इस बार भी आशीर्वाद दिया है.
आपको बता दें कि इस सीट पर खुद लालू यादव ने प्रचार किया था. रीतलाल यादव को बिहार के बाहुबलियों में गिना जाता है.
| पार्टी | प्रत्याशी | नतीजे |
| RJD | रीतलाल यादव | हारे |
| BJP | रामकृपाल सिंह | जीते |
1957 में स्थापित, दानापुर विधानसभा क्षेत्र अब तक 18 बार चुनावी जंग का गवाह बन चुका है और यहां का इतिहास बेहद रोचक रहा है. इस सीट पर कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का दबदबा लगभग बराबर रहा है, दोनों ने पांच-पांच बार जीत दर्ज की है. वहीं, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और जनता दल (जनता परिवार) ने भी मिलकर पांच बार जीत हासिल की है. यहां तक कि 1985 में एक निर्दलीय उम्मीदवार भी यहां से जीतकर विधानसभा पहुंचा था.
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2020 का चुनाव
राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव खुद 1995 और 2000 में यहां से चुनाव लड़े और जीते, लेकिन दोनों बार सीट छोड़ दी. उनके सीट छोड़ने के कारण हुए उप-चुनावों में भाजपा के विजय सिंह यादव (1996) और राजद के रामानंद यादव (2002) को जीत दिलाई. साल 2005 से 2015 तक, भाजपा की आशा सिन्हा ने लगातार तीन बार जीत दर्ज करके इस सीट पर अपनी मजबूत पकड़ बना ली थी. लेकिन 2020 के चुनाव में राजद के रीतलाल यादव ने उन्हें बड़े अंतर से हरा दिया.
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दानापुर की पहचान
दानापुर की पहचान इसकी ख़ास भौगोलिक संरचना से होती है. यह इकलौता क्षेत्र है जहां शहरी चमक-दमक है, उपजाऊ ग्रामीण इलाका है और नदियों के बीच स्थित दियारा क्षेत्र की अपनी अलग संस्कृति भी है. विकास के नाम पर मेट्रो और एलिवेटेड रोड जैसी बड़ी परियोजनाएं चल रही हैं, लेकिन दानापुर के लोगों की बुनियादी जरूरतें अब भी पूरी नहीं हुई हैं. जल निकासी की गंभीर समस्या, हर साल आने वाली बाढ़ का खतरा और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी आज भी यहां के गंभीर मुद्दे बने हुए हैं, जिन पर चुनावी जीत का दारोमदार टिका है.
दानापुर का इतिहास
दानापुर का इतिहास सिर्फ राजनीति तक सीमित नहीं है. यह नगर अपनी सैन्य और सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है. इसे देश की दूसरी सबसे पुरानी छावनी होने का गौरव प्राप्त है, जिसकी स्थापना ब्रिटिश शासन काल में 1765 में हुई थी. इस ऐतिहासिक छावनी का स्वतंत्रता संग्राम में भी खास योगदान रहा है. 25 जुलाई 1857 को यहीं के सिपाहियों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका था. आज, यहां बिहार रेजिमेंट का रेजिमेंटल सेंटर स्थित है, जिसकी स्थापना 1949 में हुई थी. साल में एक बार, जून से जुलाई के बीच, यह छावनी क्षेत्र एक अनूठा प्राकृतिक पक्षी अभयारण्य बन जाता है. यहां बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी आते हैं, जिन्हें 'ओपन बिल स्टॉर्क' कहा जाता है.
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