
- बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण के पहले चरण में लगभग 65 लाख नाम हटाए गए हैं, जिससे राजनीतिक हलचल बढ़ी है.
- लालू यादव के गोपालगंज में हर 100 मतदाताओं में से 15के नाम हटाए गए हैं, जो राज्य में दूसरी सबसे बड़ी कटौती है.
- नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा में केवल 5.9% नाम हटे हैं, जो राज्य में तीसरा सबसे कम कटौती वाला क्षेत्र है.
बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) का पहला चरण पूरा हो चुका है और नई ड्राफ्ट वोटर लिस्ट ने सियासी गलियारों में हलचल बढ़ा दी है. राज्यभर में करीब 65 लाख नाम वोटर लिस्ट से हटाए गए हैं. चुनाव आयोग का दावा है कि मृत, डुप्लिकेट, पता बदलने और अन्य कारणों से ये नाम हटाए गए हैं. वहीं जिनके नाम गलती से हट गया है, उनके पास अभी समय है, वे नाम जुड़वा सकते हैं. सबसे ज्यादा नाम पटना, गोपालगंज, सारण, मुजफ्फरपुर और भागलपुर में कटे हैं. इस बीच राज्य की राजनीति के दो दिग्गज नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के जिलों पर भी चर्चा हो रही हे.
लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के गृह जिलों गोपालगंज और नालंदा से जुड़े आंकड़ों में भी सियासी संकेत ढूंढे जा रहे हैं. दूसरी ओर लालू प्रसाद के बेटे तेजस्वी यादव ने तो वोटर लिस्ट से उनका ही नाम काटे जाने का दावा कर दिया. इसकी बकायदा उन्होंने सार्वजनिक घोषणा भी कर डाली. बाद में बीजेपी नेता अमित मालवीय का पोस्ट सामने आया, जिसमें उन्होंने तेजस्वी के दावे का खंडन किया. बहरहाल, आइए जानते हैं, लालू और नीतीश के गृहजिलों में क्या हाल है.
सबसे ज्यादा नाम कटे लालू के गढ़ में
गोपालगंज, जो कभी लालू प्रसाद यादव की राजनीतिक यात्रा की शुरुआत का गवाह रहा है, वहां से चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं. यहां हर 100 में से 15 मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं. यानी कुल 20.55 लाख वोटरों में से अब केवल 17.45 लाख ही सूची में बचे हैं, करीब 3 लाख नाम बाहर कर दिए गए हैं. ये आंकड़ा इसे राज्य में दूसरे नंबर पर ला खड़ा करता है.
कम से कम कटौती नीतीश के जिले में
वहीं दूसरी ओर, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह जिला नालंदा अपेक्षाकृत "साफ" बचा है. यहां सिर्फ 5.9% मतदाताओं के नाम हटे हैं, जो शेखपुरा और अरवल के बाद राज्य में तीसरा सबसे कम है. शुरुआत में 23.16 लाख वोटर थे, अब 21.77 लाख बचे हैं, यानि 1.38 लाख नाम हटे हैं.
राजनीतिक विरासत और वर्तमान दबदबा
लालू यादव की राजनीति की नींव गोपालगंज से ही रखी गई थी, जो आगे चलकर पटना विश्वविद्यालय, जेपी आंदोलन और फिर बिहार की सत्ता तक पहुंची. वहीं नीतीश कुमार ने 2004 में नालंदा से आखिरी बार लोकसभा चुनाव लड़ा और जीता. इसके बाद से वे विधान परिषद के सदस्य हैं.
दिलचस्प बात यह है कि दोनों जिलों में आज भी एनडीए का दबदबा कायम है. गोपालगंज की 6 में से 4 और नालंदा की 7 में से 6 सीटें एनडीए के पास हैं. खास बात यह भी है कि नालंदा, जहां के आसपास महागठबंधन ने अच्छा प्रदर्शन किया था, वहां नीतीश की अगुवाई में एनडीए ने बड़ी जीत दर्ज की थी.

SIR के ये आंकड़े केवल प्रशासनिक बदलाव नहीं हैं, बल्कि यह भी संकेत हैं कि 2025 के विधानसभा चुनाव में जमीनी समीकरण कितने बदल सकते हैं.
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