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बिहार में शराबबंदी कानून: 9 साल की समीक्षा, फायदे-नुकसान के बीच क्या है राजनीतिक बहस

शराबबंदी लागू होने के बावजूद शराब की तस्करी, अवैध कारोबार और जहरीली शराब से मौतों के मामले लगातार सामने आ रहे हैं. वहीं, इस कानून के सामाजिक और पारिवारिक असर को लेकर भी गहरी बहस जारी है.

बिहार में शराबबंदी कानून: 9 साल की समीक्षा, फायदे-नुकसान के बीच क्या है राजनीतिक बहस
पटना:

बिहार में शराबबंदी कानून 5 अप्रैल 2016 से लागू है. जिस समय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस योजना को लागू किया था तो उस दौरान इसे महिलाओं की मांग और सामाजिक सुधार की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम बताया था. नौ साल बाद भी यह कानून राजनीति और समाज के केंद्र में है. शराबबंदी लागू होने के बावजूद शराब की तस्करी, अवैध कारोबार और जहरीली शराब से मौतों के मामले लगातार सामने आ रहे हैं. वहीं, इस कानून के सामाजिक और पारिवारिक असर को लेकर भी गहरी बहस जारी है.

जीतन राम मांझी के सवाल और राजनीतिक सियासत

पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी बार-बार शराबबंदी कानून पर सवाल उठाते रहे हैं. उनका तर्क है कि गरीब मजदूर जो कभी-कभी शराब पीकर पकड़े जाते हैं, उन्हें जेल भेजना न केवल अन्याय है बल्कि कानून का गलत इस्तेमाल भी है. मांझी का कहना है कि पुलिस बड़े माफियाओं को छोड़कर छोटे-छोटे पीने वालों को पकड़ती है.उन्होंने विधानसभा चुनाव से पहले ऐसे सभी लोगों को माफ करने की मांग की है, जिन पर केवल पीने का केस दर्ज हुआ है.मांझी का यह बयान सीधे गरीब और दलित वोट बैंक को साधने का प्रयास माना जा रहा है, क्योंकि शराबबंदी से सबसे ज़्यादा प्रभावित यही वर्ग हुआ है.

विपक्ष और सत्ताधारी दल की प्रतिक्रियाएं

बीजेपी प्रवक्ता कुंतल कृष्ण ने कहा कि मांझी सरकार के "अभिभावक" जैसे हैं और उनके सुझावों पर विचार जरूर होगा.राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने तंज कसा कि तेजस्वी यादव तो पहले से कह रहे थे कि शराबबंदी कानून केवल गरीबों को परेशान कर रहा है, जबकि माफियाओं की चांदी है.जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने प्रधानमंत्री मोदी का हवाला देते हुए कहा कि शराबबंदी पर पीएम ने भी नीतीश कुमार की सराहना की थी.वहीं, प्रशांत किशोर ने साफ कहा कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आई तो "एक घंटे के भीतर शराबबंदी खत्म कर देंगे". उनका आरोप है कि इस फैसले से बिहार को हर साल 20,000 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ और अवैध कारोबार बढ़ा.

शराबबंदी कानून के फायदे

1. सामाजिक और पारिवारिक सुधार

  • शराब पर खर्च रुकने से घरों की आय शिक्षा, इलाज और जरूरी कामों में लगने लगी.
  • घरेलू हिंसा और झगड़ों में कमी आई.

2. महिलाओं को राहत

  • महिलाएं सबसे अधिक शराबबंदी की समर्थक रही हैं.
  • पति की कमाई शराब में उड़ने की समस्या घटी और परिवारिक शांति बढ़ी.

3. स्वास्थ्य लाभ

  • लिवर की बीमारियों और शराब से जुड़ी दुर्घटनाओं में कमी आई.
  • अस्पतालों पर दबाव कम हुआ.

4. सामाजिक माहौल में सुधार

  • गांव और शहरों में शराब ठेकों के बंद होने से शांति बढ़ी.
  • सार्वजनिक जगहों पर शराबखोरी के मामले कम हुए.

शराबबंदी कानून के नुकसान

1. कानून का उल्लंघन और काला बाज़ार

  • प्रतिबंध के बाद भी शराब की तस्करी और बिक्री का नेटवर्क और मजबूत हुआ.
  • पुलिस-प्रशासन में भ्रष्टाचार बढ़ा.

2. नकली और जहरीली शराब का खतरा

  • अवैध और जहरीली शराब पीने से अब तक 190 लोगों की मौत हो चुकी है.
  • यह सरकार की बड़ी विफलता मानी जा रही है.

3. आर्थिक नुकसान

  • शराबबंदी से बिहार को हर साल हजारों करोड़ रुपये के उत्पाद शुल्क का घाटा हुआ.
  • विकास योजनाओं के लिए संसाधन कम पड़े.

4. पुलिस और जेल पर बोझ

2016 से अब तक 10,85,951 केस दर्ज हुए हैं.
लाखों लोग जेल गए, जिससे जेलों में भीड़ और पुलिस पर अतिरिक्त बोझ बढ़ा.

5. राजनीतिक विवाद

  • विपक्ष इसे अव्यवहारिक कहता है.
  • हर चुनाव में यह मुद्दा सत्ता और विपक्ष दोनों के लिए बड़ा हथियार बनता है.

आंकड़े क्या कहते हैं?

  • 10.85 लाख मामले दर्ज: 1 अप्रैल 2016 से 3 जुलाई 2025 तक.
  • धारा 30 के तहत 1,805 दोषी ठहराए गए:
  • 18 को आजीवन कारावास
  • 222 को 10 साल से अधिक की सज़ा
  • 935 को 2-10 साल के बीच
  • 621 को 2 साल से कम की सज़ा
  • 190 मौतें: जहरीली शराब पीने से (2016 के बाद से).

बिहार की शराबबंदी कानून ने समाज में कई सकारात्मक बदलाव भी किए, लेकिन इसकी खामियों ने इसे राजनीतिक बहस का स्थायी मुद्दा बना दिया.

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