- बिहार चुनाव 2025 में निर्दलीय उम्मीदवारों ने कई सीटों पर एनडीए और महागठबंधन की स्थिति चुनौतीपूर्ण बना दी है
- मधेपुरा में यादव, मुसहर और महादलित वोटों का बंटवारा राजद, जदयू और निर्दलीय उम्मीदवारों के बीच निर्णायक रहेगा
- मुजफ्फरपुर में बीजेपी के अजय निषाद को उनके नेता शंभू पटेल के निर्दलीय चुनाव लड़ने से वोट बैंक नुकसान का खतरा
बिहार विधानसभा चुनाव में जैसे-जैसे वोटिंग की तारीख नजदीक आ रही है, समीकरण उतने ही उलझते जा रहे हैं. जहां एक ओर एनडीए और महागठबंधन ने अपने उम्मीदवारों की पूरी फौज उतार दी है, वहीं निर्दलीय उम्मीदवारों ने कई सीटों पर दोनों गठबंधनों की नींद उड़ाई हुई है. कई बाग़ी, पूर्व विधायक, स्थानीय नेता और जातीय आधार पर मजबूत चेहरे इस बार बिना पार्टी चिह्न के मैदान में हैं.
मधेपुराः दो निर्दलीयों के कूदने से बढ़ा रोमांच
मधेपुरा में राजद के चंद्रशेखर यादव और जदयू के उमेश मंडल के बीच परंपरागत मुकाबले में निर्दलीय प्रणव प्रकाश और अजय रंजन ने मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है. प्रणव प्रकाश शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा नाम हैं. खुद IT कंपनी में बड़े ओहदे पे काम कर चुके हैं. वही अजय रंजन पूर्व सांसद शरद यादव के करीबी माने जाते हैं. पप्पू यादव गुट का समर्थन मिलने से उनका जनाधार मजबूत हुआ है. मधेपुरा में यादव-मुसहर-महादलित वोटों का बंटवारा तय है.
मुजफ्फरपुर: बीजेपी और कांग्रेस के बागी मैदान में
मुजफ्फरपुर सीट पर बीजेपी के अजय निषाद को इस बार बगावत का सामना करना पड़ रहा है. उनके करीबी माने जाने वाले नेता शंभू पटेल ने टिकट न मिलने के बाद निर्दलीय रूप से चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. पटेल का प्रभाव निषाद और कुर्मी समुदाय में गहरा है. एनडीए को डर है कि उनके वोट कटने से विपक्ष को बढ़त मिल सकती है. कांग्रेस से टिकट न मिलने के बाद डॉ. अमरेश चौधरी निर्दलीय मैदान में हैं. वे लंबे समय से पार्टी के जिला अध्यक्ष रह चुके हैं और इलाके में शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक कामों के लिए लोकप्रिय हैं. यहां एनडीए और राजद दोनों को उनके वोट बैंक में सेंध लगने का डर है.
वैशाली: निर्दलीय विजय किसकी हार तय करेंगे?
वैशाली में राजद और कांग्रेस दोनों गठबंधन के उम्मीदवारों की मौजूदगी से पहले ही उलझन है, अब निर्दलीय विजय मंडल मैदान में हैं. उन्हें जन अधिकार पार्टी (पप्पू यादव) का अप्रत्यक्ष समर्थन मिल रहा है. विजय मंडल यादव और अतिपिछड़ा वोट बैंक पर पकड़ रखते हैं.
नवादा: बागी रवि ने उड़ाई एनडीए की नींद
नवादा में निर्दलीय रवि सिंह ने एनडीए के समीकरणों को हिला दिया है. वे पहले जदयू से जुड़े थे, लेकिन टिकट कटने के बाद बागी हो गए. उनका प्रभाव हिसुआ, कोइलवर और वारसलीगंज इलाकों में माना जाता है. स्थानीय वोटरों का कहना है, “रवि सिंह अगर मैदान में हैं, तो मुकाबला सीधा नहीं रहेगा.”
जहानाबाद: यहां RJD के लिए टेंशन
जहानाबाद में राजद से टिकट न मिलने के बाद मनोज यादव ने निर्दलीय रूप से चुनाव लड़ने की घोषणा की. वे दो बार पार्टी के ब्लॉक अध्यक्ष रह चुके हैं और यादव समाज में गहरी पकड़ रखते हैं. राजद के लिए यह वोट बैंक का बड़ा नुकसान साबित हो सकता है.
औरंगाबाद: सुशील बढ़ा रहे BJP का बीपी
औरंगाबाद में रिटायर्ड कर्नल सुशील कुमार सिंह निर्दलीय के रूप में प्रचार में “साफ छवि और राष्ट्रवाद” के मुद्दे उठा रहे हैं. युवा वोटरों में उन्हें अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है. यह सीट बीजेपी की मानी जा रही थी, पर अब मुश्किलें बढ़ी हैं.
सासाराम: जेडीयू के बागी से बीजेपी बेचैन
सासाराम सीट पर निर्दलीय चंद्रभूषण तिवारी ने माहौल बना दिया है. वे पूर्व में जदयू के जिला महासचिव रह चुके हैं और स्थानीय व्यापारिक वर्ग में गहरी पैठ रखते हैं. उनके उतरने से बीजेपी उम्मीदवार का वोट बैंक खिसकने की संभावना जताई जा रही है.
बक्सरः निर्दलीय संदीप कांटेगे BJP के वोट?
बक्सर में निर्दलीय संदीप सिंह, जो कभी ABVP के छात्र नेता थे, इस बार “युवा रोजगार और शिक्षा” के मुद्दे पर लड़ रहे हैं. उनका प्रचार सोशल मीडिया पर काफी ट्रेंड कर रहा है. कहा जा रहा है कि वे भाजपा के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगा सकते हैं.
कटिहारः निर्दलीय रहीम खान मुस्लिम वोटों में लगाएंगे सेंध?
कटिहार में निर्दलीय रहीम खान का उतरना महागठबंधन के लिए परेशानी बना हुआ है. वे AIMIM से पहले जुड़े थे और अब मुसलमान व यादव वोटों में सीधे सेंध लगा सकते हैं. यह सीट पहले ही त्रिकोणीय मुकाबले में फंसी हुई थी.
सीवान में BJP और RJD, दोनों को टेंशन
सीवान सीट पर निर्दलीय सतीश सिंह, जो पूर्व सांसद ओमप्रकाश यादव के समर्थक माने जाते हैं, मैदान में हैं. उनकी भूमिहार समुदाय में गहरी जड़ें हैं. यहां राजद और भाजपा दोनों को नुकसान की संभावना है.
पटना: BJP की राह मुश्किल करेंगे राजकुमार?
पटना सिटी सीट पर निर्दलीय राजकुमार गुप्ता, जो व्यापारी संघ के अध्यक्ष हैं, चुनाव में हैं. वे GST और छोटे व्यापारियों के मुद्दे उठा रहे हैं. भाजपा के लिए यह सीट अब उतनी आसान नहीं दिख रही.
लगभग सभी दलों में टिकट बंटवारे को लेकर असंतोष बढ़ा है. स्थानीय स्तर पर व्यक्ति की छवि अब पार्टी से बड़ी हो चुकी है. सोशल मीडिया के जरिए निर्दलीय उम्मीदवार भी अब बड़े पैमाने पर प्रचार कर पा रहे हैं. इस बार के चुनाव में करीब 30 से अधिक सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार खेल बिगाड़ने की भूमिका में हैं।.कई जगहों पर यह तय है कि इन बागियों के कारण मुख्य उम्मीदवारों का खेल बिगड़ सकता है. अगर बहुमत का गेम फंसा तो यही निर्दलीय किंगमेकर भी बन सकते हैं.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं