
- जीविका योजना, महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक सशक्तिकरण के लिए 38 जिलों के 534 प्रखंडों में चलाई जा रही योजना है.
- 10-12 महिलाओं का सेल्फ हेल्फ ग्रुप बनाया जाता है. इसे लीड करने वाली महिला को कम्युनिटी मोबिलाइजर कहा जाता है.
- विश्व बैंक की आर्थिक सहायता से 2006 में शुरू की गई इस योजना से राज्य की करीब डेढ़ करोड़ महिलाएं जुड़ चुकी हैं.
बिहार की वर्तमान सरकार बीते दो दशकों से राज्य में महिला सशक्तिकरण के लिए जीविका योजना चला रही है. अभी चुनाव के तारीखों के एलान से पहले ही राज्य की नीतीश सरकार ने पहले प्रत्येक परिवार की एक महिला को उनकी पसंद का रोजगार करने के लिए 10 हजार रुपये के आर्थिक सहायता की घोषणा की. जिसे बाद में अधिकतम 2 लाख रुपये किया जा सकता है. अब तेजस्वी यादव ने जीविका दीदियों (कम्युनिटी मोबिलाइजर्स) को नियमित सरकारी नौकरी और कम से कम 30 हजार रुपये सैलरी देने का चुनावी वादा किया है. साथ ही जीविका दीदियों के ऋण को माफ करने की बात भी कही है. इतना ही नहीं उन्होंने जीविका दीदियों का 5 लाख रुपये का बीमा करवाने का वादा भी किया है. हालांकि बीमा अब भी इन दीदियों का होता है पर उसके लिए उन्हें भुगतान करना पड़ता है.

क्या है जीविका योजना?
जीविका योजना, बिहार सरकार की महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण के लिए चलाई जा रही योजना है. जो मूल रूप से ग्रामीण गरीब महिलाओं के लिए शुरू की गई थी. ग्रामीण विकास विभाग के बिहार ग्रामीण आजीविका संवर्धन सोसाइटी के माध्यम से इसे बिहार के सभी 38 जिलों के 534 ब्लॉक में चलाया जा रहा है. इसे बिहार ग्रामीण आजीविका परियोजना या जीविका के नाम से जाना जाता है. इसे विश्व बैंक की सहायता भी प्राप्त है. 'जीविका' बिहार की उन महिलाओं के लिए मददगार है जिनके पास आय का कोई साधन नहीं है.

कौन हैं कम्युनिटी मोबिलाइजर जीविका दीदियां?
जीविका के तहत ऐसी 10, 12 महिलाओं का समूह बनाया जाता है जिनके पास आय के कोई साधन नहीं हैं. इसे सेल्फ हेल्प ग्रुप भी कहते हैं. बिहार में इस समय 11 लाख से अधिक सेल्फ हेल्प ग्रुप बनाए गए हैं. इन सेल्फ हेल्फ ग्रुप को लीड करने वाली महिलाएं ही कम्युनिटी मोबिलाइजर होती हैं. इन कम्युनिटी मोबिलाइजर दीदियों का काम इस ग्रुप में अन्य महिलाओं को जोड़ना, उन्हें बिजनेस करने के तरीके सिखाना और स्वास्थ्य, वित्त जैसे मुद्दों पर जागरूक करना है.

हर एक समूह का एक बैंक खाता खुलवाया जाता है. इसमें सरकार अपनी तरफ से 30 हजार रुपये जमा करती है. सेल्फ हेल्प ग्रुप की कोई भी महिला इस खाते से ऋण लेकर अपना काम शुरू कर सकती हैं. और कमाई होने के साथ-साथ पैसे वापस यहां जमा करने होते हैं. जिस सेल्फ हेल्प ग्रुप की महिलाएं इस बैंक खाते से कर्ज लिए पैसे को सफलतापूर्वक चुका देती हैं, वैसे समूह को बैंक डेढ़ लाख रुपये तक के लोन दे सकता है.

11 लाख सेल्फ हेल्प ग्रुप, डेढ़ करोड़ महिलाएं
इस ऋण से महिलाएं गांवों में कम लागत वाले बिजनेस शुरू करती हैं. इनमें छोटे स्तर पर सब्जी की खेती, पापड़-अचार, सिलाई-कढ़ाई, मुर्गी-बकरी पालन, चूड़ी निर्माण, शहद उत्पादन आदि ग्रामोद्योग होते हैं. बिहार ग्रामीण आजीविका परियोजना (बीआरएलएम) के मुताबिक अब तक बिहार सरकार की इस जीविका परियोजना से करीब डेढ़ करोड़ महिलाएं जुड़ चुकी हैं. अब तक इनके करीब साढ़े दस लाख सेविंग बैंक अकाउंट और डेढ़ लाख लोन अकाउंट खोले जा चुके हैं.
चुनाव के मैदान में नीतीश कुमार की लगातार सफलता के पीछे इन महिलाओं का अहम योगदान माना जाता है और वो इनकी कोर वोटर मानी जाती हैं.

जीविका दीदियों को आने वाली समस्याएं
हालांकि जीविका को लेकर कुछ समस्याएं भी आती रही हैं. सबसे बड़ी कमी इसकी अनुदान राशि को लेकर है जो कि केवल 30000 रुपये है. सेल्फ हेल्प समूह की जिस सदस्य को इससे अधिक पैसों की जरूरत होती है वो माइक्रो फाइनैंस कंपनियों की ओर मुड़ जाती हैं. ऊंची दरों पर इन कंपनियों से कर्ज लेना बाद में उस महिला और उसके परिवार के लिए समस्या बन जाती है. जीविका समूह की सदस्य बैंक खाते से कर्ज की राशि को लाख रुपये से ऊपर करने की मांग उठाती रही हैं.

तेजस्वी यादव ने पिछली बार (2020 के) चुनाव प्रचार के दौरान भी जीविका दीदी के मुद्दों को उठाया था. अब उन्होंने जीविका दीदियों को नौकरी देने का वादा किया है पर सत्ता पक्ष उनके इस वादे की खिल्ली उड़ा रहा है. उनका कहना है कि नौकरी के वादे पूरे करने के लिए तेजस्वी पैसा कहां से लाएंगे. जीविका दीदियों को सरकारी नौकरी और कर्ज माफी वाली तेजस्वी की बात या 10 हजार रुपये कर्ज लेकर रोजगार शुरू करने नीतीश सरकार की बात में से क्या पसंद आएगी, ये तो बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजे ही बताएंगे क्योंकि महिला वोटर्स के इस बार भी निर्णायक रहने की उम्मीद है.
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