
- बिहार चुनाव के लिए राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई हैं और प्रमुख दल अभी सीट-शेयरिंग पर विचार कर रहे हैं.
- AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने महागठबंधन से अलग होकर बिहार में थर्ड फ्रंट गठबंधन बनाने की घोषणा की है.
- AIMIM स्वामी प्रसाद मौर्य की पार्टी के साथ मिलकर 32 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी.
बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही राज्य में राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई हैं, जहां मुख्य दल अभी भी सीट-शेयरिंग पर मंथन कर रहे हैं. इस बीच, AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने महागठबंधन के साथ गठबंधन नहीं होने के बाद एक बड़ा दांव चला है. ओवैसी ने बिहार में थर्ड फ्रंट बनाने की घोषणा की है, जिसके तहत उनकी पार्टी स्वामी प्रसाद मौर्य की पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी. यह नया गठबंधन बिहार के चुनावी समीकरणों को प्रभावित कर सकता है, खासकर उन सीटों पर जहां मुस्लिम और ओबीसी वोटों का ध्रुवीकरण होता है.
AIMIM के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल इमाम ने इस गठबंधन की घोषणा करते हुए कहा कि इस बार उनकी पार्टी अपने पारंपरिक सीमांचल क्षेत्र से बाहर निकलकर राज्य की 32 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.
'परिणाम उन्हें चुनाव में भुगतना पड़ेगा...'
अख्तरुल इमाम ने महागठबंधन RJD-कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि राजद नेता तेजस्वी यादव ने AIMIM को गठबंधन में शामिल न करके बड़ी गलती की है. इमाम ने दावा किया कि उन्होंने सिर्फ 6 सीटें मांगी थीं, लेकिन उन्हें शामिल नहीं किया गया, जिसका परिणाम उन्हें चुनाव में भुगतना पड़ेगा.
अख्तरुल इमाम ने आरोप लगाया कि तेजस्वी यादव 'कहीं से गाइड' हो रहे हैं, जिसके चलते वह हमेशा विपक्ष में ही रहेंगे. उन्होंने कहा कि 'MY' (मुस्लिम-यादव) की बात करने वाली राजद अब 'M' (मुस्लिम) को भूल गई है और मुसलमानों को थर्ड फ्रंट चुनने के लिए 'मजबूर' कर दिया गया है.
ओवैसी ने बीजेपी पर साधा निशाना
सीमांचल ज़िंदाबाद! खोदा पहाड़ और निकला क्या? सीमांचल के ग़ैय्यूर अवाम को बार-बार भाजपाई ‘घुसपैठिया' वग़ैरह कहते रहे, लेकिन @ECISVEEP के आंकड़ों के मुताबिक सिर्फ चार ऐसे मुसलमान मिले जिनकी नागरिकता साबित नहीं हो पाई. @AmitShah कहते थे कि मुसलमानों की आबादी घुसपैठ की वजह से बढ़ी है, अब किसी गणित के टीचर से उन्हें ये आंकड़े समझने पड़ेंगे. NRC और SIR जैसी प्रक्रियाएं गरीबों को पीसती हैं, लेकिन तथाकथित घुसपैठ को साबित करने में नाकाम हो जाती हैं.

लंबे समय से अल्पसंख्यक मतदाता महागठबंधन, विशेषकर कांग्रेस और राजद के लिए एक मजबूत आधार माना जाता रहा है. आरजेडी का एम-वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण दशकों तक चुनावी जीत का आधार बना रहा. लेकिन अब समीकरण बदलते नजर आ रहे हैं. नए राजनीतिक चेहरे और क्षेत्रीय ताकतें इस वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रही हैं.
ओवैसी की सीमांचल पर नजर
सीमांचल क्षेत्र मुस्लिम बहुल इलाका है, जहां 2020 विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी को अप्रत्याशित सफलता मिली थी. उस वक्त एआईएमआईएम ने पांच सीटें जीतकर राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी थी. हालांकि, बाद में चार विधायक अलग हो गए. लेकिन इस सफलता ने यह साबित कर दिया कि ओवैसी यहां प्रभाव बना सकते हैं.
अब दोबारा सीमांचल में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए ओवैसी सक्रिय हो रहे हैं. उनकी रणनीति साफ है स्थानीय मुद्दों और अल्पसंख्यक अस्मिता को लेकर माहौल बनाना. लेकिन उनके सामने चुनौती भी कम नहीं है, क्योंकि महागठबंधन और एनडीए दोनों ही इस इलाके में अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहे हैं.
बिहार की राजनीति में यह कोई नई बात नहीं है कि अल्पसंख्यक वोट बैंक निर्णायक भूमिका निभाता है. सीमांचल, कोसी और मिथिलांचल जैसे इलाकों में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अधिक है. कई विधानसभा सीटों पर उनकी भागीदारी नतीजों को पलटने की क्षमता रखती है. यही वजह है कि हर चुनाव में यह वोट बैंक चर्चा का केंद्र बन जाता है.
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