बिहार चुनाव के नतीजों की तस्वीर साफ हो चुकी है. एनडीए ने महागठबंधन का सूपड़ा साफ कर दिया है. तय है कि पच्चीस से तीस (2025-2030), एक बार फिर नीतीश ही सूबे के सीएम होंगे. इस चुनाव में महागठबंधन न केवल एनडीए से हारा है, बल्कि इसमें शामिल दल एक-दूसरे से भी हारे हैं. फ्रेंडली फाइट के नाम पर दलों ने बचा खुचा बंटाधार भी कर ही डाला. राजद का स्कोर 30 के पार भी पहुंचना मुश्किल लग रहा है. यहां तक कि तेजस्वी यादव भी अपने माता-पिता लालू प्रसाद और राबड़ी देवी की सीट रहे राघोपुर में जूझते नजर आए.
इन तमाम विफलताओं के बीच एक आंकड़ा ऐसा है, जो तेजस्वी और उनकी पार्टी राजद के लिए संतोष देगा. वो आंकड़ा है, वोट शेयर का. चुनाव आयोग के शाम साढ़े चार बजे तक के आंकड़ों के अनुसार, राजद को 22.77 फीसदी वोट मिले हैं.
बीजेपी और जेडीयू से ज्यादा वोट शेयर
पार्टी वाइज देखा जाए तो राजद को मिला वोट शेयर (22.77 फीसदी), बीजेपी को मिले करीब 21 फीसदी वोट और जेडीयू को मिले करीब 19 फीसदी वोट शेयर से ज्यादा ही है. यानी पार्टी के तौर पर राजद का वोट शेयर सबसे ज्यादा है.

तेजस्वी की छवि को झटका
बिहार चुनाव 2025 में राजद नेता तेजस्वी यादव के नेतृत्व पर सबसे बड़ा दांव लगा था. उन्हें लालू यादव की विरासत संभालने, यादव वोट बैंक बनाए रखने और 'जंगल राज' की छवि से मुक्त होने जैसी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन वे असफल रहे.
यह हार उनके समर्थकों के लिए निराशाजनक है, क्योंकि 2024 लोकसभा चुनाव में भी उनके नेतृत्व में राजद को केवल चार सीटें मिली थीं. इस बार, उनकी राजनीति का एक बड़ा विरोधाभास सामने आया: जहाँ उन्होंने अपराध मुक्त राजनीति की बात की, वहीं 76% टिकट आपराधिक छवि वाले नेताओं को दिए. टिकट वितरण में धांधली के आरोपों और मोकामा जैसे सीटों पर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को टिकट देने से उनकी छवि को गहरा धक्का लगा है.
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