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अमेरिकी दंपति का बिहार से था अनोखा लगाव, गंगा नदी में अस्थियां विसर्जित करने भारत आया परिवार

अमेरिका से बिहार अस्थियां विसर्जित करने आए वॉल्टर हाउजर के बेटे माइकल हाउजर ने कहा कि मेरे पिता पक्के बिहारी थे. उनका बिहार से, भारत से बेहद लगाव था. उन्होंने अमेरिका में अपने घर का नाम भी नीलगिरी रखा था.

अमेरिकी दंपति का बिहार से था अनोखा लगाव, गंगा नदी में अस्थियां विसर्जित करने भारत आया परिवार
वॉल्टर हाउजर 1957 में पहली बार भारत आए थे.
  • अमेरिकी दंपति की अस्थियां गंगा में विसर्जित की गईं.
  • उनके बेटे और बेटी अमेरिका से अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए पटना आए थे.
  • वॉल्टर हाउजर 1957 में भारत आए और स्वामी सहजानंद पर शोध किया था.
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पटना:

बिहार के पटना के जनार्दन घाट पर अमेरिकी दंपति की अस्थियां गंगा में विसर्जित की गई हैं. अमेरिकी प्रोफेसर वॉल्टर हाउजर और उनकी पत्नी रोज मेरी हाउजर की अंतिम इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाज से हो और अस्थियां गंगा में बहाई जाएं. उनकी अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए उनके बेटे माइकल हाउजर और बेटी शीला हाउजर अमेरिका से पटना आए.  इस दौरान भारी संख्या में लोगों की मौजूदगी में दंपति की अस्थियां गंगा में प्रवाहित की गईं. 

वॉल्टर हाउजर 1957 में आए थे भारत

वॉल्टर हाउजर 1957 में पहली बार भारत आए थे. उन्होंने स्वामी सहजानंद, किसान सभा के गठन और क्षेत्र की आर्थिक सामाजिक पृष्ठभूमि पर शोध किया था. वे स्वामी सहजानंद से बेहद प्रभावित थे. इसलिए अपने 6 विद्यार्थियों को उन्होंने बिहार के अलग-अलग इलाकों में शोध के लिए भेजा था. उन्होंने स्वामी सहजानंद के कई पत्र और दस्तावेज सम्भाल कर रखे थे. इन सभी को बाद में उन्होंने सीताराम आश्रम को दान की. जहां आज एक संग्रहालय बना हुआ है. 

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'मैं खुश हूं पिता की अंतिम इच्छा पूरी की'

अस्थियां विसर्जित करने आए उनके बेटे माइकल हाउजर ने कहा कि मेरे पिता पक्के बिहारी थे. उनका बिहार से, भारत से बेहद लगाव था. उन्होंने अमेरिका में अपने घर का नाम भी नीलगिरी रखा था. यह मेरे लिए बेहद भावनात्मक क्षण है. मैं खुश हूं कि उनकी अंतिम इच्छा पूरी कर पाया.

स्वामी सहजानंद की स्मृति में बिहटा में बड़ी सभा का आयोजन होना है. वॉल्टर हाउजर का पूरा परिवार उस आयोजन में भी शामिल होगा. सीताराम आश्रम ट्रस्ट इसका आयोजन कर रहा है. ट्रस्ट के सचिव डॉ सत्यजीत सिंह ने कहा कि वॉल्टर हाउज़र स्वयं भी किसान थे, इसलिए वे किसानों से जुड़े मुद्दे पर शोध करना चाहते थे. उन्हें किसी ने स्वामी जी के बारे में बताया तो वे यहां आए और यहीं के होकर रह गए.

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