झालरापाटन और टोंक, राजस्थान की 2 हाईप्रोफाइल सीटें, जानें- कौन सी पार्टी कहां पड़ रही है भारी

इस बार राजस्थान की सियासी लड़ाई (Rajasthan Assembly Elections 2018) में टोंक भी केंद्र में बना हुआ है.

झालरापाटन और टोंक, राजस्थान की 2 हाईप्रोफाइल सीटें, जानें- कौन सी पार्टी कहां पड़ रही है भारी

राजस्थान (Rajasthan) में 7 दिसंबर को विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होना है.

खास बातें

  • राजस्थान में चुनावी सरगर्मियां बढ़ीं
  • 7 दिसंबर को होना है विधानसभा चुनाव
  • टोंक और झालरापाटन सीट पर हैं सबकी निगाहें
नई दिल्ली :

राजस्थान में चुनावी सरगर्मियां बढ़ गई हैं. 7 दिसंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव (Rajasthan Assembly Elections 2018) से पहले सभी दल अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं. सत्तारूढ़ बीजेपी जहां दोबारा कुर्सी पाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है. तो दूसरी तरफ, राज्य की गद्दी पर बैठने के लिए कांग्रेस भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही है. दोनों प्रमुख दलों ने एक-दूसरे के खिलाफ बहुत सोच-समझकर गोटी फिट की है. खासकर, झालरापाटन और टोंक दो ऐसी सीटें हैं, जिन पर सभी की निगाहें टिकी हैं. झालरापाटन में जहां कांग्रेस ने सीएम वसुंधरा राजे के खिलाफ बीजेपी के कद्दावर नेता रहे जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह को मैदान में उतारा है. तो दूसरी तरफ, टोंक में बीजेपी ने 'तुरूप का इक्का' फेंकते हुए सचिन पायलट के खिलाफ युनूस खान को टिकट दिया है. 

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क्या झालरापाटन में होगा उलटफेर ?
राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे (Vasundhra Raje) साल 2003 से लगातार झालरापाटन से जीतकर विधानसभा में पहुंचती रही हैं, लेकिन इस बार कांग्रेस ने बीजेपी छोड़कर पार्टी में आए मानवेंद्र सिंह  (Manvendra Singh) को यहां से टिकट देकर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है. राजस्थान में राजपूत समुदाय का 200 में से करीब 50 सीटों पर दबदबा है और इन सीटों पर उनका वोट निर्णायक माना जाता है. झालरापाटन भी इन सीटों में से एक है. यूं तो राजपूत वसुंधरा के पारंपरिक वोटर माने जाते रहे हैं, लेकिन इस बार स्थिति थोड़ी अलग है. बताया जा रहा है 2014 में जसवंत सिंह को टिकट न मिलने से राजपूत मतदाताओं के एक हिस्से में नाराजगी थी और वह नाराजगी सीएम वसुंधरा को भारी पड़ सकती है. वर्तमान समीकरण को देखते हुए ही मानवेंद्र सिंह अपनी पारंपरिक सीट बाड़मेर छोड़कर झालरापाटन के रण में उतरे हैं. मानवेंद्र सिंह के साथ एक और प्लस प्वाइंट है, वह यह कि राजपूत मतदाताओं पर पकड़ रखने वाली करणी सेना भी उनके पक्ष में खड़ी नजर आ रही है. 

टोंक में कहीं बीजेपी को उल्टा न पड़ जाए अपना दांव ! 
इस बार राजस्थान की सियासी लड़ाई में टोंक भी केंद्र में बना हुआ है. कांग्रेस ने इस सीट से सचिन पायलट (Sachin Pilot) को मैदान में उतारकर सभी को चौंका दिया, लेकिन बीजेपी ने जब ऐन मौके पर इस सीट पर अपना प्रत्याशी बदला तो लोगों ने इस फैसले को 'नहले पर दहला' के तौर पर देखा गया. दरअसल, बीजेपी ने पहले इस सीट पर अजित सिंह मेहता को उम्मीदवार बनाने की घोषणा की थी, जो वर्तमान में विधायक भी हैं, लेकिन सचिन पायलट के आने के बाद पार्टी ने अपनी रणनीति बदल दी. टोंक में अच्छी-खासी संख्या में मुस्लिम मतदाता भी हैं और पार्टी ने इसी को ध्यान में रखते हुए अपने कद्दावर नेता युनूस खान  (Yunus Khan) को यहां से टिकट दिया है. बीजेपी ने जब वसुंधरा कैबिनेट में नंबर दो माने जाने वाले युनूस खान को टिकट दिया तो ध्रुवीकरण की भी चर्चा हुई, लेकिन टोंक सीट के इतिहास पर नजर डालें तो आंकड़े दूसरी कहानी कहते हैं. कांग्रेस इस सीट पर लगातार मुस्लिम उम्मीदवार उतारती रही है. 2008 में कांग्रेस की तरफ से जाकिया इस सीट से चुनाव जीती थीं, लेकिन 2013 के चुनावों में बीजेपी ने रणनीति बदलते हुए हिंदू चेहरे को मैदान में उतारा. बीजेपी के अजीत सिंह ने कांग्रेस के सउद सैदी को 30 हजार से ज्यादा वोटों से पराजित किया था. इस बार कांग्रेस ने जहां दो दशक बाद टोंक सीट पर पायलट के रूप में हिंदू चेहरे को उतारा है, तो बीजेपी ने कांग्रेस की रणनीति अपनाई है. 

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सचिन पायलट को नवाब का सहारा 
झालरापाटन में जहां मानवेंद्र सिंह (Manvendra Singh) के पक्ष में करणी सेना प्रचार कर रही है तो टोंक में सचिन पायलट  (Sachin Pilot) को 'नवाबों' का साथ मिला है. दरअसल, टोंक में नवाब खानदान का दबदबा माना जाता है और इस बार इस क्षेत्र के पूर्ववर्ती नवाब परिवार ने कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट को समर्थन देने की स्पष्ट घोषणा की है. नवाब परिवार के मुखिया आफताब अली खान ने इस बारे में नवाबी खानदान के लिए एक खुली घोषणा जारी की है. इसमें उन्होंने नवाब खानदान के मतदाताओं से पायलट के लिए मतदान करने को कहा है. टोंक का नवाब परिवार आमतौर पर राजनीति से दूर रहता है और एक दावे के अनुसार टोंक के नवाबी खानदान में लगभग 8,500 पंजीबद्ध सदस्य हैं. नवाब परिवार की घोषणा के बाद टोंक में पायलट का पलड़ा भारी नजर आ रहा है.  

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