मुलायम सिंह ने बेटे अखिलेश को कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन करने को लेकर चेताया था (फाइल फोटो)
यूपी में अपनी सियासी जमीन को मजबूत बनाने और अपने पिता के स्टेंड से अलग जाने का अखिलेश यादव का बड़ा फैसला उन पर उलटा पड़ा है. देश के सबसे महत्वपूर्ण राज्य में बीजेपी की अब तक की सबसे बड़ी जीत में 44 वर्षीय अखिलेश यादव दरकिनार होकर रह गए. राज्य की 403 सीटों में से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी ने 300 से अधिक पर जीत दर्ज की. दूसरी ओर, अखिलेश केवल 48 सीटों पर सिमटकर रह गए जबकि उनकी जूनियर पार्टनर गठबंधन के खाते में महज सात सीटें ही जोड़ पाई.
चुनाव हार के बाद अपने निवास पर आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में अखिलेश ने रिलेक्स मूड में मीडिया से बात की हालांकि उनाका लहजा व्यंग्य भरा था. उन्होंने कहा, 'मुझे लगता है कि नई सरकार लोगों को बेहतर एक्सप्रेसवे मुहैया कराएगी. शायद लोगों को हमारे बनाए रास्ते पसंद नहीं आए और अब यूपी में बुलेट ट्रेन लाई जाएगी. ' चुनाव नतीजों में तीसरे स्थान पर खिसकीं, बसपा सुप्रीमो मायावती यह आरोप लगाने से नहीं चूकीं कि वोटिंग मशीनों के जरिये धांधली की गई. उन्होंने कहा कि इस तरह की शिकायत उठाई गई है तो सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए. ' हालांकि अखिलेश इसका आकलन करने को तैयार नहीं हैं कि कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए जाना उनकी बेजा गलती (unforced error)थी. अखिलेश ने हाल ही में कहा था कि गठबंधन ऐसे समय किया गया जब वे समाजवादी पार्टी पर नियंत्रण को लेकर पिता मुलायम सिंह यादव के साथ सार्वजनिक रूप से हुई नोकझोंक के बाद खुद को कमजोर महसूस कर रहे थे. मुलायम सिंह का साफ मानना था कि कांग्रेस सहित किसी भी पार्टी के साथ गठजोड़ स्वीकार्य नहीं है, लेकिन अखिलेश की राय इससे अलग थी. ऐसे समय जब पार्टी पारिवारिक कलह का सामना कर रही थी, उनका मानना था कि अहम मुस्लिम वोट के बढ़ाने में कांग्रेस मददगार साबित हो सकती है. राज्य में मुस्लिमों की आबादी जनसंख्या की करीब 18 फीसदी है और पीएम मोदी की ओर से बनाए जा रहे माहौल में यह आबादी बड़ी बाधा साबित हो सकती है. बहरहाल, कांग्रेस अपना वजूद बढ़ाने में तो नाकाम रही ही, यह समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों के लिए 'भारी' पड़ी. इन प्रत्याशियों के अनुसार, कांग्रेस के वोट उनकी ओर ट्रांसफर नहीं हुए. अखिलेश यादव का कांग्रेस के साथ गठजोड़ उन राहुल गांधी के साथ दोस्ती पर आधारित था
पिता के विरोध के परे, अखिलेश यादव का कांग्रेस के साथ गठजोड़ उन राहुल गांधी के साथ दोस्ती पर आधारित था जो उम्र में उनसे तीन साल बड़े हैं और राष्ट्रीय स्तर पर नंबर-2 पार्टी, कांग्रेस की प्रमुख सोनिया गांधी ने उन्हें (राहुल को ) और उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को चुनावी फैसलों की जिम्मेदारी दे रखी है. बहरहाल, सपा-कांग्रेस गठजोड़ से वोटरों के दिमाग में यह संदेश गया कि इसका ध्यान केवल मुस्लिमों और यादवों पर है और इससे हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण बीजेपी को ओर हो गया. सितंबर की एक माह लंबी किसान यात्रा के जरिये राहुल ने पूरे राज्य की दूरी नापी. इसके बाद उन्होंने ओपन टॉप मर्सिडीज SUV पर अखिलेश के साथ रोड शो भी किए लेकिन वे लोगों के साथ खुद को जोड़ नहीं पाए और न ही कांग्रेस के लिए लोगों का समर्थन जुटा पाए. इसके बावजूद उनकी पार्टी में मौजूद चापलूसी की परंपरा शनिवार को भी देखने को मिली जब वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा, 'राहुल गांधी का पद से हटना संभव नहीं है. कांग्रेस के लिए गांधी-नेहरू परिवार लोगों को जोड़कर रखने का सबसे बड़ा कारक है.' विश्वस्तरीय हाईवे और युवाओं की शिक्षा पर ध्यान देने के लिए अखिलेश को काफी प्रशंसा मिली (फाइल फोटो)
शनिवार सुबह, मतगणना प्रारंभ होने के पहले समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने जीत की कामना करते हुए हवन किया. तब तक अखिलेश यादव के साथ लगाया गया राहुल गांधी का आदमकद कटआउट रातोंरात हटा दिया गया था. या तो कार्यकर्ताओं के बीच कांग्रेस को लेकर नाराजगी थी या वे बुरी तकदीर के पहलू को ध्यान में रखते हुए कोई चांस नहीं लेना चाह रहे थे. बहरहाल, यह कदम भी मुख्यमंत्री के लिए अच्छा साबित नहीं हो पाया. कांग्रेस के साथ 'बेकाम के गठबंधन' के अलावा अखिलेश को चुनाव के कुछ ही समय पहले अपने पिता को सहायक की भूमिका में भेजने के फैसले पर सोचना होगा. चुनाव के बाद उन्होंने पार्टी अध्यक्ष के उस पद को पिता मुलायम सिंह को लौटाने की बात कही थीं जो उन्होंने हजारों पार्टी कार्यकर्ताओं की समर्थन से हथिया लिया था. वैसे, पिता के साथ अपने विवाद के दौरान अखिलेश की पहचान साफसुथरी छवि वाले ऐसे युवा राजनेता के रूप में बनी जो अपराधिक छवि वाले लोगों, माफिया डॉन से दूरी बनाकर रखता है. अपनी पार्टी के चुनाव चिह्न के बारे में मजाक करते हुए अखिलेश ने कहा, 'हमारी साइकिल ट्यूबलेस थी. ,ऐसे में हमारे लिए यह लगभग असंभव था कि हम इसके पहियों में हवा भर पाते.'
हालांकि वे, गैंगरेप सहित कई आपराधिक मामलों के आरोपी गायत्री प्रजापति जैसे दागदार उम्मीदवार का प्रचार करने से खुद को दूर नहीं रख पाए, लेकिन ज्यादातर समय अखिलेश की लोगों के बीच अच्छी छवि रही. विश्व स्तरीय हाईवे को विकसित करने और युवाओं की शिक्षा पर ध्यान देने के लिए उन्हें काफी प्रशंसा हासिल हुई. हालांकि बदलाव और विकास के मसीहा के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि के आगे वे टिक नहीं पाए. उनकी साइकिल डगमगाकर गिर गई. उनके पिता के पास के अब यह बताने का मौका है कि ट्रेनिंग व्हील्स को बहुत जल्दी हटाने का क्या परिणाम होता है.
चुनाव हार के बाद अपने निवास पर आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में अखिलेश ने रिलेक्स मूड में मीडिया से बात की हालांकि उनाका लहजा व्यंग्य भरा था. उन्होंने कहा, 'मुझे लगता है कि नई सरकार लोगों को बेहतर एक्सप्रेसवे मुहैया कराएगी. शायद लोगों को हमारे बनाए रास्ते पसंद नहीं आए और अब यूपी में बुलेट ट्रेन लाई जाएगी. ' चुनाव नतीजों में तीसरे स्थान पर खिसकीं, बसपा सुप्रीमो मायावती यह आरोप लगाने से नहीं चूकीं कि वोटिंग मशीनों के जरिये धांधली की गई. उन्होंने कहा कि इस तरह की शिकायत उठाई गई है तो सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए. ' हालांकि अखिलेश इसका आकलन करने को तैयार नहीं हैं कि कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए जाना उनकी बेजा गलती (unforced error)थी. अखिलेश ने हाल ही में कहा था कि गठबंधन ऐसे समय किया गया जब वे समाजवादी पार्टी पर नियंत्रण को लेकर पिता मुलायम सिंह यादव के साथ सार्वजनिक रूप से हुई नोकझोंक के बाद खुद को कमजोर महसूस कर रहे थे. मुलायम सिंह का साफ मानना था कि कांग्रेस सहित किसी भी पार्टी के साथ गठजोड़ स्वीकार्य नहीं है, लेकिन अखिलेश की राय इससे अलग थी. ऐसे समय जब पार्टी पारिवारिक कलह का सामना कर रही थी, उनका मानना था कि अहम मुस्लिम वोट के बढ़ाने में कांग्रेस मददगार साबित हो सकती है. राज्य में मुस्लिमों की आबादी जनसंख्या की करीब 18 फीसदी है और पीएम मोदी की ओर से बनाए जा रहे माहौल में यह आबादी बड़ी बाधा साबित हो सकती है. बहरहाल, कांग्रेस अपना वजूद बढ़ाने में तो नाकाम रही ही, यह समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों के लिए 'भारी' पड़ी. इन प्रत्याशियों के अनुसार, कांग्रेस के वोट उनकी ओर ट्रांसफर नहीं हुए.
पिता के विरोध के परे, अखिलेश यादव का कांग्रेस के साथ गठजोड़ उन राहुल गांधी के साथ दोस्ती पर आधारित था जो उम्र में उनसे तीन साल बड़े हैं और राष्ट्रीय स्तर पर नंबर-2 पार्टी, कांग्रेस की प्रमुख सोनिया गांधी ने उन्हें (राहुल को ) और उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को चुनावी फैसलों की जिम्मेदारी दे रखी है. बहरहाल, सपा-कांग्रेस गठजोड़ से वोटरों के दिमाग में यह संदेश गया कि इसका ध्यान केवल मुस्लिमों और यादवों पर है और इससे हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण बीजेपी को ओर हो गया. सितंबर की एक माह लंबी किसान यात्रा के जरिये राहुल ने पूरे राज्य की दूरी नापी. इसके बाद उन्होंने ओपन टॉप मर्सिडीज SUV पर अखिलेश के साथ रोड शो भी किए लेकिन वे लोगों के साथ खुद को जोड़ नहीं पाए और न ही कांग्रेस के लिए लोगों का समर्थन जुटा पाए. इसके बावजूद उनकी पार्टी में मौजूद चापलूसी की परंपरा शनिवार को भी देखने को मिली जब वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा, 'राहुल गांधी का पद से हटना संभव नहीं है. कांग्रेस के लिए गांधी-नेहरू परिवार लोगों को जोड़कर रखने का सबसे बड़ा कारक है.'
शनिवार सुबह, मतगणना प्रारंभ होने के पहले समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने जीत की कामना करते हुए हवन किया. तब तक अखिलेश यादव के साथ लगाया गया राहुल गांधी का आदमकद कटआउट रातोंरात हटा दिया गया था. या तो कार्यकर्ताओं के बीच कांग्रेस को लेकर नाराजगी थी या वे बुरी तकदीर के पहलू को ध्यान में रखते हुए कोई चांस नहीं लेना चाह रहे थे. बहरहाल, यह कदम भी मुख्यमंत्री के लिए अच्छा साबित नहीं हो पाया. कांग्रेस के साथ 'बेकाम के गठबंधन' के अलावा अखिलेश को चुनाव के कुछ ही समय पहले अपने पिता को सहायक की भूमिका में भेजने के फैसले पर सोचना होगा. चुनाव के बाद उन्होंने पार्टी अध्यक्ष के उस पद को पिता मुलायम सिंह को लौटाने की बात कही थीं जो उन्होंने हजारों पार्टी कार्यकर्ताओं की समर्थन से हथिया लिया था. वैसे, पिता के साथ अपने विवाद के दौरान अखिलेश की पहचान साफसुथरी छवि वाले ऐसे युवा राजनेता के रूप में बनी जो अपराधिक छवि वाले लोगों, माफिया डॉन से दूरी बनाकर रखता है. अपनी पार्टी के चुनाव चिह्न के बारे में मजाक करते हुए अखिलेश ने कहा, 'हमारी साइकिल ट्यूबलेस थी. ,ऐसे में हमारे लिए यह लगभग असंभव था कि हम इसके पहियों में हवा भर पाते.'
हालांकि वे, गैंगरेप सहित कई आपराधिक मामलों के आरोपी गायत्री प्रजापति जैसे दागदार उम्मीदवार का प्रचार करने से खुद को दूर नहीं रख पाए, लेकिन ज्यादातर समय अखिलेश की लोगों के बीच अच्छी छवि रही. विश्व स्तरीय हाईवे को विकसित करने और युवाओं की शिक्षा पर ध्यान देने के लिए उन्हें काफी प्रशंसा हासिल हुई. हालांकि बदलाव और विकास के मसीहा के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि के आगे वे टिक नहीं पाए. उनकी साइकिल डगमगाकर गिर गई. उनके पिता के पास के अब यह बताने का मौका है कि ट्रेनिंग व्हील्स को बहुत जल्दी हटाने का क्या परिणाम होता है.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
विधानसभा चुनाव 2017, उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव परिणाम, Khabar Assembly Polls 2017, UP Assembly Poll 2017, Assembly Poll 2017, UP Assembly Poll Result, अखिलेश यादव, राहुल गांधी, सपा-कांग्रेस गठबंधन, पीएम नरेंद्र मोदी, Akhilesh Yadav, Rahul Gandhi, SP-Congress Alliance, PM Narendra Modi