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This Article is From Jan 25, 2017

आरक्षण व्यवस्था का कुछ दुरुपयोग तो है लेकिन यह समय की जरूरत है : मनोहर पर्रिकर

आरक्षण व्यवस्था का कुछ दुरुपयोग तो है लेकिन यह समय की जरूरत है : मनोहर पर्रिकर
रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर (फाइल फोटो)
पणजी: आरक्षण को लेकर राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य ने हाल ही में देश में आरक्षण नीति की समीक्षा की बात कही है. अब रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने इसपर अपनी बात रखी है. उन्‍होंने कहा है कि वो मानते हैं कि वर्तमान आरक्षण व्‍यवस्‍था का कुछ दुरुपयोग तो होता है लेकिन समाज में पिछड़े तबकों के उत्‍थान के लिए इसकी जरूरत भी है.
पर्रिकर ने मंगलवार को कहा कि आरक्षण व्यवस्था दबे-कुचलों के उत्थान के लिए आवश्यक है. पर्रिकर ने चुनावी राज्य गोवा में भाजपा के युवा सम्मेलन को संबोधित करते हुए एक सवाल के जवाब में कहा, ‘यद्यपि गोवा में स्थिति भिन्न है, लेकिन समूचे देश में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों की सामाजिक स्थिति ठीक नहीं है... यह सुधर रही है.’

उन्होंने कहा, ‘मैं स्वीकार करता हूं कि आरक्षण का कुछ दुरुपयोग है. लेकिन मेरा मानना है कि हमें उन लोगों के उत्थान के लिए एक तंत्र पर काम करने की आवश्यकता है जो सामाजिक अवसंरचना में दबे-कुचले हैं.’ पर्रिकर ने कहा, ‘आारक्षण के पीछे का उदे्दश्य उन लोगों का उत्थान है. मुझे लगता है कि आरक्षण नीति की आवश्यकता है.’

आरएसएस के प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य ने शुक्रवार को आरक्षण नीति की समीक्षा संबंधी बात कही थी और यह भी कहा था कि बीआर अंबेडकर भी आरक्षण के लगातार जारी रहने के पक्ष में नहीं थे. उनकी टिप्पणी के बाद संघ ने स्पष्टीकरण में कहा था कि आरक्षण जारी रहना चाहिए तथा कोई अनावश्यक विवाद नहीं होना चाहिए. इस बीच, पर्रिकर ने कहा कि परिस्थितियों ने उन्हें राजनीति में आने को विवश कर दिया, लेकिन वह इस क्षेत्र में प्रवेश के पहले दिन अपनाए गए सिद्धांत का आज भी पालन करते हैं.

रक्षामंत्री ने कहा, ‘मुझे याद है, 1989 में मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरी किस्मत में राजनीति लिखी है. लेकिन कुछ परिस्थितियों की वजह से मैं राजनीति में आ गया. उन 10 वर्षों में मैंने कम से कम 12 मुख्यमंत्री देखे.’ उन्होंने कहा, ‘यदि आप गोवा का समग्र विकास चाहते हैं तो योजना पर काम किए जाने की आवश्यकता है. लेकिन उस समय (जब मैं राजनीति में आया) कोई योजना नहीं थी. पूरे 10 वर्ष मुख्यमंत्रियों के बदलने में ही निकल गए.’

पर्रिकर ने तटीय राज्य में अस्थिरता के दिनों को याद करते हुए कहा, ‘हर 10 साल बाद राजनीतिक अस्थिरता होती थी. विधायकों को एक शिविर में एकत्र कर दिया जाता था और नए राजनीतिक समीकरण पर काम करने के लिए वे आठ से 10 दिन तक दुनिया से कटे रहते थे.’ रक्षामंत्री ने कहा, ‘विधायकों पर नजर रखी जाती थी जिससे कि वे दूसरे खेमे में ना जा सकें. पूरी ताकत राजनीति पर खर्च कर दी जाती थी. गोवा के विकास को जबर्दस्त नुकसान पहुंचा. गोवा बिना यात्रा का जहाज बन चुका था.’ उन्होंने वर्ष 2000 में राज्य की कमान अपने हाथों में आने की याद दिलाई.

पर्रिकर ने कहा, ‘जिस दिन मैंने राजनीति में प्रवेश किया, मुझे पता चला कि रास्ते में अनेक कठिनाइयां हैं. नियंत्रण खोने की हर संभावना होती है.’ उन्होंने कहा कि वह अब भी उन सिद्धांतों का पालन करते हैं जो उन्होंने राजनीति में प्रवेश करते समय अपनाए थे. रक्षामंत्री ने कहा, ‘कोई भी निजी काम हो, उसे मैं अपने पैसे से करता हूं. यदि आप दिल्ली में मेरे बंगले में आएं तो आपको केवल वही चीजें देखने को मिलेंगी जो मुझे सरकार द्वारा औपचारिक रूप से दी जाती हैं. आपको कोई सैन्यकर्मी नहीं मिलेगा, सिवाय उनके जो आधिकारिक रूप से तैनात हैं.’

(इनपुट भाषा से...)

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