कॉल सेंटर की युवतियां उन वोटरों की पहचान करती हैं, जो अखिलेश यादव के खिलाफ जा सकते हैं
लखनऊ:
लखनऊ में एक फोन पर एक युवती कह रही है, "हैलो सर... मैं दिल्ली स्थित एक मीडिया हाउस से बोल रही हूं..." लखनऊ की एक बस्ती में बनी बिल्कुल साधारण-सी तीन-मंज़िला इमारत में इसी युवती जैसी 70 अन्य लड़कियां भी मौजूद हैं, जो बिल्कुल इसी तरह की बातचीत कर रही हैं. फोन लाइन की दूसरी तरफ हैं वोटर, या ग्रामीण मतदाताओं को प्रभावित कर सकने वाले लोग, जिनसे कॉल करने वालों को उम्मीद है कि वे उनके क्लायंट अखिलेश यादव के पक्ष में समर्थन जुटा सकेंगे. लेकिन इन कॉलरों से कहा गया है कि वे किसी को भी खुद का परिचय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के नुमायंदे के तौर पर न दें.
इसके बजाय वे सभी कह रही हैं कि वे दिल्ली स्थित एक मीडिया हाउस की प्रतिनिधि हैं, और एक चुनावी सर्वे कर रही हैं... लेकिन उनके सवालों और बातचीत में यह जानने की कोशिश की जा रही है किसी गांव या बूथ के इलाके में कोई खास जाति या समुदाय अखिलेश यादव के पक्ष में या खिलाफ तो नहीं है.
'मुसीबत पैदा करने वाली' सूचनाओं की जानकारी ज़मीनी तौर पर काम कर रहे 700 लोगों के ग्रुप को दे दी जाती है, जिनका काम उन इलाकों का दौरा कर लोगों का झुकाव अखिलेश यादव की ओर करने की कोशिश करना है, और हां, इन लोगों को भी साफ-साफ कह दिया गया है कि वे किसी को न बताएं कि वे किसके लिए काम कर रहे हैं.
यह रणनीति - ढके-छिपे तरीके से मान-मनौव्वल की नीति - अखिलेश यादव के लिए हज़ारों मील दूर बैठे स्टीव जार्डिंग ने तैयार की है, जो हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के केनेडी स्कूल ऑफ गवर्नेंस में लेक्चरर हैं.
स्टीव जार्डिंग के एक शिष्य अद्वैत विक्रम सिंह ने ही उनका परिचय अगस्त में अखिलेश यादव से करवाया था, और तभी से यह अमेरिकी विद्वान मुख्यमंत्री के लिए रणनीति तैयार करने में मदद कर रहे हैं, जिसमें अखिलेश की उनके पिता मुलायम सिंह यादव से हुई ज़ोरदार जंग भी शामिल है. कुछ लोग यह मानते हैं कि उत्तर प्रदेश के चुनावी अभियान के दौरान अखिलेश यादव ने खुद को जाति की सीमाओं को लांघने वाले विकास के पक्षधर नेता के रूप में पेश करने का फैसला प्रोफेसर जार्डिंग की सलाह पर ही लिया था. अद्वैत विक्रम सिंह ने NDTV को बताया, "यह स्टीव का व्यक्तिगत आकलन था कि अखिलेश यादव का नाम ही संदेश बन जाना चाहिए..."
हालांकि इसी दौरान इसी इमारत में किन्हीं अन्य कमरों में, जिनमें से कुछ में हमें भी ले जाया गया, जाति समीकरणों को बारीकी से संभालने का काम भी जारी है, क्योंकि यह वह काम है, जो इस क्षेत्र में होने वाले किसी भी चुनाव में बेहद अहम भूमिका निभाता है, और जिसे चुनाव से अलग नहीं किया जा सकता है.
उत्तर प्रदेश में मौजूद बेशुमार पिछड़ी जातियों में से एक के बारे में बात करते हुए इसी तरह के एक कॉल सेंटर में बैठी युवती पम्मी पूछती है, "सर... आपके गांव में कोरी लोग सबसे ज़्यादा किसे पसंद कर रहे हैं...?"
जाति समीकरणों और फोन नंबरों का पूरा डाटा बैंक इन युवा कॉलरों के पास अवनीश कुमार राय की ओर से आ रहा है, जो अद्वैत विक्रम सिंह के ही साथी है, और जिन्होंने हमें बताया कि वह कैम्पेन मैनेजमेंट के धंधे में लगभग तीन दशक से हैं. 45-46 साल की उम्र के दिख रहे अवनीश कुमार राय ने बताया, "मैं जानना चाहता हूं कि कोई गुट हमारे खिलाफ क्यों है... हमारे पास समाजवादी पार्टी में अलग-अलग जातियों से बहुत-से नेता हैं... एक बार हमें वजह पता चल जाए, तो हम उन्हें कहेंगे कि वे अपनी जाति के लोगों को समझाएं..."
हमने अद्वैत विक्रम सिंह तथा अवनीश कुमार राय से पूछा कि क्या चुनावी माइक्रो-मैनेजमेंट का यह तरीका उन्होंने बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह की तर्ज पर चलाया है, जो इसी मॉडल को वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान बेहद कामयाबी से इस्तेमाल कर चुके हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में यूपी में बीजेपी की सूपड़ा साफ करती हुई जीत का श्रेय कुछ हद तक अमित शाह के प्रयासों और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (जो अब कांग्रेस के लिए काम करते हैं) के कॉरपोरेट-स्टाइल अभियान को दिया जाता है.
लेकिन अवनीश कुमार राय ने कहा, "हमें उन्हें (अमित शाह को) बराने की ज़रूरत नहीं है... बीजेपी खुद ही हार जाएगी... हमारे सर्वे के मुताबिक 287 सीटों पर (कुल 403 विधानसभा क्षेत्रों में से) बीजेपी के लिए संघर्ष बेहद मुश्किल हो चुका है..."
इसके बजाय वे सभी कह रही हैं कि वे दिल्ली स्थित एक मीडिया हाउस की प्रतिनिधि हैं, और एक चुनावी सर्वे कर रही हैं... लेकिन उनके सवालों और बातचीत में यह जानने की कोशिश की जा रही है किसी गांव या बूथ के इलाके में कोई खास जाति या समुदाय अखिलेश यादव के पक्ष में या खिलाफ तो नहीं है.
'मुसीबत पैदा करने वाली' सूचनाओं की जानकारी ज़मीनी तौर पर काम कर रहे 700 लोगों के ग्रुप को दे दी जाती है, जिनका काम उन इलाकों का दौरा कर लोगों का झुकाव अखिलेश यादव की ओर करने की कोशिश करना है, और हां, इन लोगों को भी साफ-साफ कह दिया गया है कि वे किसी को न बताएं कि वे किसके लिए काम कर रहे हैं.
यह रणनीति - ढके-छिपे तरीके से मान-मनौव्वल की नीति - अखिलेश यादव के लिए हज़ारों मील दूर बैठे स्टीव जार्डिंग ने तैयार की है, जो हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के केनेडी स्कूल ऑफ गवर्नेंस में लेक्चरर हैं.
स्टीव जार्डिंग के एक शिष्य अद्वैत विक्रम सिंह ने ही उनका परिचय अगस्त में अखिलेश यादव से करवाया था, और तभी से यह अमेरिकी विद्वान मुख्यमंत्री के लिए रणनीति तैयार करने में मदद कर रहे हैं, जिसमें अखिलेश की उनके पिता मुलायम सिंह यादव से हुई ज़ोरदार जंग भी शामिल है. कुछ लोग यह मानते हैं कि उत्तर प्रदेश के चुनावी अभियान के दौरान अखिलेश यादव ने खुद को जाति की सीमाओं को लांघने वाले विकास के पक्षधर नेता के रूप में पेश करने का फैसला प्रोफेसर जार्डिंग की सलाह पर ही लिया था. अद्वैत विक्रम सिंह ने NDTV को बताया, "यह स्टीव का व्यक्तिगत आकलन था कि अखिलेश यादव का नाम ही संदेश बन जाना चाहिए..."
हालांकि इसी दौरान इसी इमारत में किन्हीं अन्य कमरों में, जिनमें से कुछ में हमें भी ले जाया गया, जाति समीकरणों को बारीकी से संभालने का काम भी जारी है, क्योंकि यह वह काम है, जो इस क्षेत्र में होने वाले किसी भी चुनाव में बेहद अहम भूमिका निभाता है, और जिसे चुनाव से अलग नहीं किया जा सकता है.
उत्तर प्रदेश में मौजूद बेशुमार पिछड़ी जातियों में से एक के बारे में बात करते हुए इसी तरह के एक कॉल सेंटर में बैठी युवती पम्मी पूछती है, "सर... आपके गांव में कोरी लोग सबसे ज़्यादा किसे पसंद कर रहे हैं...?"
जाति समीकरणों और फोन नंबरों का पूरा डाटा बैंक इन युवा कॉलरों के पास अवनीश कुमार राय की ओर से आ रहा है, जो अद्वैत विक्रम सिंह के ही साथी है, और जिन्होंने हमें बताया कि वह कैम्पेन मैनेजमेंट के धंधे में लगभग तीन दशक से हैं. 45-46 साल की उम्र के दिख रहे अवनीश कुमार राय ने बताया, "मैं जानना चाहता हूं कि कोई गुट हमारे खिलाफ क्यों है... हमारे पास समाजवादी पार्टी में अलग-अलग जातियों से बहुत-से नेता हैं... एक बार हमें वजह पता चल जाए, तो हम उन्हें कहेंगे कि वे अपनी जाति के लोगों को समझाएं..."
हमने अद्वैत विक्रम सिंह तथा अवनीश कुमार राय से पूछा कि क्या चुनावी माइक्रो-मैनेजमेंट का यह तरीका उन्होंने बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह की तर्ज पर चलाया है, जो इसी मॉडल को वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान बेहद कामयाबी से इस्तेमाल कर चुके हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में यूपी में बीजेपी की सूपड़ा साफ करती हुई जीत का श्रेय कुछ हद तक अमित शाह के प्रयासों और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (जो अब कांग्रेस के लिए काम करते हैं) के कॉरपोरेट-स्टाइल अभियान को दिया जाता है.
लेकिन अवनीश कुमार राय ने कहा, "हमें उन्हें (अमित शाह को) बराने की ज़रूरत नहीं है... बीजेपी खुद ही हार जाएगी... हमारे सर्वे के मुताबिक 287 सीटों पर (कुल 403 विधानसभा क्षेत्रों में से) बीजेपी के लिए संघर्ष बेहद मुश्किल हो चुका है..."
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