इलाहाबाद:
विधानसभा चुनाव की दहलीज पर खड़े उत्तर प्रदेश में हाथियों की मूर्तियों को ढके जाने के चुनाव आयोग के आदेश को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका को बुधवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वापस लिया हुआ मानकर खारिज कर दिया।
इस सिलसिले में सोमवार को स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता धीरज सिंह ने एक जनहित याचिका दायर की थी। मुख्य न्यायाधीश एसआर आलम और न्यायमूर्ति राम विजय सिंह की खंडपीठ के समक्ष यह जनहित याचिका सुनवाई के लिए आई। उन्होंने कहा कि याचिका में तकनीकी खामी है।
अदालत ने इसपर नाराजगी जताई कि जनहित याचिका में ना तो याचिकाकर्ता की पहचान जाहिर नहीं की गई है ना ही चुनाव आयोग के संबद्ध आदेश की प्रति संलग्न की गई है।
याचिकाकर्ता के वकील अनिल सिंह बिसेन ने इसके बाद खामियों को दूर करने के लिए संशोधन दाखिल करने की इजाजत देने के लिए अदालत से अनुरोध किया।
बहरहाल, अदालत ने कहा कि याचिका को वापस लिया हुआ मान कर खारिज किया जाता है और याचिकाकर्ता को यह छूट दी जाती है कि वह नियमों के मुताबिक एक नयी जनहित याचिका दायर करे।
बिसेन ने दावा किया कि जल्द ही याचिका दायर कर दी जाएगी। उधर, बहुजन समाज पार्टी ने कथित तौर पर इस जनहित याचिका का विरोध करने का फैसला किया है।
पार्टी सूत्र इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं वहीं अदालत सूत्रों ने बताया कि बसपा की ओर से अदालत में पेश होने के लिए अधिकृत किए गए एक वरिष्ठ अधिवक्ता की ओर से एक वकालतनामा दाखिल किया गया।
बसपा ने अदालत कथित तौर पर अदालत से यह अनुरोध करने का फैसला किया है कि पार्टी व्यथित पक्ष है क्योंकि हाथी उसका चुनाव चिह्न है लेकिन उसने चुनाव आयोग के आदेश को चुनौती नहीं देने का फैसला किया था।
चुनाव आयोग ने पिछले हफ्ते यह आदेश जारी किया था, जिसमें मुख्यमंत्री एवं पार्टी प्रमुख मायावती की मूर्तियों को भी ढंकने के निर्देश दिए गए हैं।
इस सिलसिले में सोमवार को स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता धीरज सिंह ने एक जनहित याचिका दायर की थी। मुख्य न्यायाधीश एसआर आलम और न्यायमूर्ति राम विजय सिंह की खंडपीठ के समक्ष यह जनहित याचिका सुनवाई के लिए आई। उन्होंने कहा कि याचिका में तकनीकी खामी है।
अदालत ने इसपर नाराजगी जताई कि जनहित याचिका में ना तो याचिकाकर्ता की पहचान जाहिर नहीं की गई है ना ही चुनाव आयोग के संबद्ध आदेश की प्रति संलग्न की गई है।
याचिकाकर्ता के वकील अनिल सिंह बिसेन ने इसके बाद खामियों को दूर करने के लिए संशोधन दाखिल करने की इजाजत देने के लिए अदालत से अनुरोध किया।
बहरहाल, अदालत ने कहा कि याचिका को वापस लिया हुआ मान कर खारिज किया जाता है और याचिकाकर्ता को यह छूट दी जाती है कि वह नियमों के मुताबिक एक नयी जनहित याचिका दायर करे।
बिसेन ने दावा किया कि जल्द ही याचिका दायर कर दी जाएगी। उधर, बहुजन समाज पार्टी ने कथित तौर पर इस जनहित याचिका का विरोध करने का फैसला किया है।
पार्टी सूत्र इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं वहीं अदालत सूत्रों ने बताया कि बसपा की ओर से अदालत में पेश होने के लिए अधिकृत किए गए एक वरिष्ठ अधिवक्ता की ओर से एक वकालतनामा दाखिल किया गया।
बसपा ने अदालत कथित तौर पर अदालत से यह अनुरोध करने का फैसला किया है कि पार्टी व्यथित पक्ष है क्योंकि हाथी उसका चुनाव चिह्न है लेकिन उसने चुनाव आयोग के आदेश को चुनौती नहीं देने का फैसला किया था।
चुनाव आयोग ने पिछले हफ्ते यह आदेश जारी किया था, जिसमें मुख्यमंत्री एवं पार्टी प्रमुख मायावती की मूर्तियों को भी ढंकने के निर्देश दिए गए हैं।
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