अंग्रेजी भाषा पर विवेकानंद की पकड़ की दुनिया कायल थी, लेकिन परीक्षाओं में उन्हें अच्छे नंबर नहीं मिले थे
नई दिल्ली:
अंग्रेजी भाषा पर स्वामी विवेकानंद की पकड़ ने हजारों लोगों को उनका कायल बना दिया था, लेकिन विश्वविद्यालय की तीन परीक्षाओं में उन्हें मिले अंक कतई प्रभावित करने वाले नहीं थे. इस बात का खुलासा 19वीं सदी के इस दार्शनिक-साधु पर लिखी गई एक नई किताब में किया गया है. 'द मॉडर्न मॉन्क: व्हाट विवेकानंद मीन्स टू अस टूडे' भारत की आधुनिक कल्पना की सबसे अहम हस्तियों में से एक विवेकानंद के जीवन को एक नए नजरिए से देखती है.
लेखक हिंडल सेनगुप्ता का कहना है कि विवेकानंद की आधुनिकता ही है, जो हमें आज भी आकर्षित करती है. हम जिन भी साधुओं को जानते हैं, वह उन सबसे अलग हैं. न तो इतिहास उन्हें बांध पाया और न ही कोई कर्मकांड. वह अपने आसपास की हर चीज पर और खुद पर भी लगातार सवाल उठाते रहते थे.
पेंग्विन द्वारा प्रकाशित यह किताब कहती है, 'एक संपन्न वकील के परिवार में जन्मे होने के कारण वह अच्छी से अच्छी शिक्षा हासिल कर सके और कलकत्ता के प्रसिद्ध मेट्रोपोलिटन इंस्टीट्यूट स्कूल में पढ़ाई की. शायद इसीलिए वह ब्रितानी प्रवाह के साथ अंग्रेजी बोल और लिख सके.' हालांकि लेखक का कहना है कि विवेकानंद को मिले अंक उनके कौशल की बानगी पेश नहीं करते, खासतौर पर अंग्रेजी में.
लेखक के मुताबिक, 'जिस व्यक्ति की विद्वता और अंग्रेजी भाषा का कौशल धार्मिक संसद में सिर्फ अमेरिकियों को ही नहीं, बल्कि हजारों को अपना कायल बनाने के लिए काफी थे, उसे इस विषय में अंक बहुत कम मिले थे.' वह लिखते हैं, 'उन्होंने विश्वविद्यालय की तीन परीक्षाएं दीं- एंट्रेंस एग्जाम, फर्स्ट आर्ट्स स्टैंडर्ड और बैचलर ऑफ आर्ट्स. एंट्रेस एग्जाम में अंग्रेजी भाषा में उन्हें 47 प्रतिशत अंक मिले थे, एफए में 46 प्रतिशत और बीए में 56 प्रतिशत अंक मिले थे.' गणित और संस्कृत जैसे विषयों में भी उनके अंक औसत ही रहे.
विवेकानंद के लेखों, पत्रों और भाषणों जैसे विभिन्न स्रोतों को उद्धृत करते हुए सेनगुप्ता बताते हैं कि उन्हें फ्रांसीसी पाक कला की किताबों से बड़ा प्यार था. उन्होंने खिचड़ी बनाने का एक नया तरीका खोजा था. वह जहाज बनाने के पीछे की अभियांत्रिकी में रुचि रखते थे और गोला-बारूद बनाने की प्रौद्योगिकी में भी उनकी दिलचस्पी थी.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
लेखक हिंडल सेनगुप्ता का कहना है कि विवेकानंद की आधुनिकता ही है, जो हमें आज भी आकर्षित करती है. हम जिन भी साधुओं को जानते हैं, वह उन सबसे अलग हैं. न तो इतिहास उन्हें बांध पाया और न ही कोई कर्मकांड. वह अपने आसपास की हर चीज पर और खुद पर भी लगातार सवाल उठाते रहते थे.
पेंग्विन द्वारा प्रकाशित यह किताब कहती है, 'एक संपन्न वकील के परिवार में जन्मे होने के कारण वह अच्छी से अच्छी शिक्षा हासिल कर सके और कलकत्ता के प्रसिद्ध मेट्रोपोलिटन इंस्टीट्यूट स्कूल में पढ़ाई की. शायद इसीलिए वह ब्रितानी प्रवाह के साथ अंग्रेजी बोल और लिख सके.' हालांकि लेखक का कहना है कि विवेकानंद को मिले अंक उनके कौशल की बानगी पेश नहीं करते, खासतौर पर अंग्रेजी में.
लेखक के मुताबिक, 'जिस व्यक्ति की विद्वता और अंग्रेजी भाषा का कौशल धार्मिक संसद में सिर्फ अमेरिकियों को ही नहीं, बल्कि हजारों को अपना कायल बनाने के लिए काफी थे, उसे इस विषय में अंक बहुत कम मिले थे.' वह लिखते हैं, 'उन्होंने विश्वविद्यालय की तीन परीक्षाएं दीं- एंट्रेंस एग्जाम, फर्स्ट आर्ट्स स्टैंडर्ड और बैचलर ऑफ आर्ट्स. एंट्रेस एग्जाम में अंग्रेजी भाषा में उन्हें 47 प्रतिशत अंक मिले थे, एफए में 46 प्रतिशत और बीए में 56 प्रतिशत अंक मिले थे.' गणित और संस्कृत जैसे विषयों में भी उनके अंक औसत ही रहे.
विवेकानंद के लेखों, पत्रों और भाषणों जैसे विभिन्न स्रोतों को उद्धृत करते हुए सेनगुप्ता बताते हैं कि उन्हें फ्रांसीसी पाक कला की किताबों से बड़ा प्यार था. उन्होंने खिचड़ी बनाने का एक नया तरीका खोजा था. वह जहाज बनाने के पीछे की अभियांत्रिकी में रुचि रखते थे और गोला-बारूद बनाने की प्रौद्योगिकी में भी उनकी दिलचस्पी थी.
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