55 साल के पंडित गिरीश चंद जोशी हाईस्कूल में सहायक शिक्षक हैं
पिथौरागढ़:
दिल्ली से करीब 525 किलोमीटर दूर पहाड़ में बसा शहर पिथौरागढ़. यहां एक ऐसे शख्स हैं जो कई सालों से बच्चों के लिए काम कर रहे हैं. 55 साल के पंडित गिरीश चंद जोशी जो जादरदेवल में रहते हैं. जूनियर हाईस्कूल नैनीपातल में सहायक शिक्षक हैं जो इंग्लिश, हिंदी और संस्कृत पढ़ाते हैं. 2005 से समाज सेवा ही अब इनका जीवन है. करीब दस हज़ार बच्चों की मदद कर चुके हैं जिसमें अपनी जिंदगी की सारी बचत भी लगा चुके हैं. GPF में दस लाख था वो भी खर्च हो चुका है. इस शहर में मौसम सर्द होता है इसलिए बच्चों के लिए गर्म कपड़ों का इंतज़ाम करते हैं. वक्त और जरूरत पर स्टेशनरी, जूते, छाता, यहां तक कि बच्चों के लिए फर्स्टएड बॉक्स का भी इंतज़ाम किया. पिछले पांच साल से गर्मी और सर्दी की छुट्टी भी बच्चों के नाम ही रहती है. इस दौरान बच्चों को अग्रेज़ी की शिक्षा मुफ्त में देते हैं और पर्यावरण को लेकर लोगों को जागरुक करते हैं.
पंडित जोशी अब तक कई जिलों के करीब 225 स्कूलों के करीब 10 हजार बच्चों की मदद कर चुके हैं, जिनमें अनाथ बच्चों को की गई मदद भी शामिल है. इतना ही नहीं, पहाड़ों के जंगल में हर साल आग लगती है, उसके लिए भी जागरुकता फैलाना हो या स्वास्थ्य और एड्स को लेकर, सभी के लिए काम करते हैं.
पंडित गिरीश चंद जोशी खासे मशहूर ज्योतिष हैं. अब तक करीब दस किताब भी लिख चुके हैं. इतना कुछ करने के बावजूद सरकार से उन्हें ना तो कोई सम्मान मिला न ही कोई सहयोग. यहां तक कि पंडित जोशी को ज़िला स्तर का भी कोई पुरस्कार नहीं दिया. बात करते वक्त उनका ये दर्द छलक पड़ा. ऐसे कई लोग हैं जो बिना किसी लालच या प्रचार से दूर समाज के लिए काम कर रहे हैं. इन्हें हम 'अन संग हीरोज' के तौर पर याद करते हैं.
पंडित जोशी अब तक कई जिलों के करीब 225 स्कूलों के करीब 10 हजार बच्चों की मदद कर चुके हैं, जिनमें अनाथ बच्चों को की गई मदद भी शामिल है. इतना ही नहीं, पहाड़ों के जंगल में हर साल आग लगती है, उसके लिए भी जागरुकता फैलाना हो या स्वास्थ्य और एड्स को लेकर, सभी के लिए काम करते हैं.
(पं जोशी के साथ शारिक रहमान खान)
पंडित गिरीश चंद जोशी खासे मशहूर ज्योतिष हैं. अब तक करीब दस किताब भी लिख चुके हैं. इतना कुछ करने के बावजूद सरकार से उन्हें ना तो कोई सम्मान मिला न ही कोई सहयोग. यहां तक कि पंडित जोशी को ज़िला स्तर का भी कोई पुरस्कार नहीं दिया. बात करते वक्त उनका ये दर्द छलक पड़ा. ऐसे कई लोग हैं जो बिना किसी लालच या प्रचार से दूर समाज के लिए काम कर रहे हैं. इन्हें हम 'अन संग हीरोज' के तौर पर याद करते हैं.
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