भारतीय क्रिकेट टीम में कई ऐसे खिलाड़ी हैं जो ड्रेसिंग रूम में जमकर मस्ती करते हैं. कई ऐसे किस्से हैं जो ड्रेसिंग रूम में होते हैं और फैन्स सुन नहीं पाते. खेल पत्रकार शिवेंद्र कुमार सिंह की नई किताब 'क्रिकेट के अनसुने किस्से' में कई ऐसे किस्से हैं जो फैन्स ने नहीं सुने होंगे. इस बुक में भारतीय क्रिकेट टीम के हल्के फुल्के चटपटे किस्सों को शामिल किया है. इस किताब में ऐसा ही एक किस्सा है जिसमें बताया गया है कि एक रसगुल्ले के चक्कर में दो भारतीय क्रिकेटर भिड़ गए थे. आइए जानते हैं आखिर हुआ क्या था...
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साल 1993 की बात है. भारतीय टीम अजहरूद्दीन की कप्तानी में श्रीलंका के दौरे पर गई थी. तीन टेस्ट मैचों की सीरीज खेली जानी थी. उन दिनों खिलाड़ियों को होटल में ठहरने के लिए अलग अलग कमरे नहीं मिलते थे. नवजोत सिंह सिद्धू और मनोज प्रभाकर रूम पार्टनर थे. दोनों लगभग एक ही उम्र के थे. दोनों का करियर भी लगभग साथ ही शुरू हुआ था. हुआ यूं कि एक रोज रात को होटल के कमरे में ही फिल्म देखी जा रही थी.
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कप्तान अजहरूद्दीन के कमरे में कपिल देव, नवजोत सिंह सिद्धू और मनोज प्रभाकर कोई फिल्म देख रहे थे. नवजोत सिंह सिद्धू वो फिल्म पहले भी देख चुके थे. उन्होंने कपिल देव से कहा कि वो दूसरी फिल्म की डीवीडी लेकर अपने कमरे में जा रहे हैं, जहां वो टीम के दूसरे खिलाडियों के साथ उस फिल्म को देखेंगे. उनकी इस बात में किसी को कोई आपत्ति नहीं थी. नवजोत सिंह सिद्धू उठे और डीवीडी उठाने के लिए आगे बढ़े. इतनी देर में कमरे में एक तेज आवाज गूंजी- डीवीडी मत छूना शेरी. ये आवाज मनोज प्रभाकर की थी. सिद्धू को समझ ही नहीं आया कि प्रभाकर डीवीडी लेने से क्यों मना कर रहे हैं लेकिन वो चुपचाप बैठ गए. सिद्धू ने उसी फिल्म को दोबारा देखना शुरू कर दिया.
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थोड़ी देर में सिद्धू की नजर कमरे में रखे रसगुल्लों पर गई. सिद्धू अपनी जगह से उठे और उन्होंने रसगुल्ले की तरफ हाथ बढ़ाया. कमरे में दोबारा एक आवाज बड़ी तेजी से गूंजी- 'रसगुल्ले मत छूना शेरी.' शेरी सिद्धू का प्यार से बुलाया जाने वाला नाम है. इस बार सिद्धू को गुस्सा आ गया. उन्होंने आव देखा ना ताव मनोज प्रभाकर पर चढ़ाई कर दी. सिद्धू ने प्रभाकर को एक चपाट लगा भी थी. प्रभाकर बचने की कोशिश में अपनी जगह से भागे. इसी कोशिश में कमरे में रखी गई दो बेड के बीच की जगह में वो गिर भी गए. सिद्धू ने इसके बाद भी प्रभाकर को नहीं छोड़ा. उन्हें खींचकर बाहर निकाला. बाद में बाकी खिलाड़ियों के बीच बचाव पर ये लड़ाई शांत हुई.
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सिद्धू का कहना था कि वो खुद सभी खिलाडियों के लिए रसगुल्ले लाए थे, मनोज प्रभाकर उन्हें रोकने वाला कौन होता है. जबकि प्रभाकर का कहना था रसगुल्ले सिद्धू नहीं लाए बल्कि टीम के बाहर का कोई व्यक्ति लेकर आया था. प्रभाकर का कहना था कि उन्हें रसगुल्ले के खाने से परेशानी नहीं थी. वो तो सिद्धू को सिर्फ इतना कह रहे थे कि वो रसगुल्ले के डिब्बे में हाथ ना लगाएं बल्कि थोड़ा सब्र करें क्योंकि रूम सर्विस वालों को कह दिया गया है कि वो कमरे में कुछ प्लेट्स और चम्मच पहुंचा दें. गुस्से में प्रभाकर यहां तक कह गए थे कि अगर सिद्धू ने रसगुल्लों को हाथ से छुआ तो पूरा डब्बा बाहर फेंक देंगे. अब जब एक को गुस्सा आया तो दूसरे को भी आ गया. खैर किसी तरह मामला शांत हुआ और दोनों चुप हुए. उस रात मनोज प्रभाकर और नवजोत सिंह सिद्धू रूके तो एक ही कमरे में लेकिन दोनों के बीच बात नहीं हुई.
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अगले दिन नेट प्रैक्टिस होनी थी। मनोज प्रभाकर के हाथ में नई गेंद थी. उनकी गेंद में रफ्तार तो थी ही उन्होंने तय किया कि वो नेट्स में सिद्धू को परेशान किए बिना नहीं छोड़ेगे. सिद्धू मनोज प्रभाकर के इरादों को भांप चुके थे. उन्हें पता था कि उस रोज अगर वो प्रभाकर के सामने आ गए तो प्रभाकर उनके पैरों को निशाना बनाएंगे. मनोज प्रभाकर बताते हैं कि नेट्स में बल्लेबाजी की बारी आने के बाद भी उस रोज सिद्धू बल्लेबाजी करने ही नहीं आए. हालांकि सच ये भी है कि मनोज प्रभाकर और नवजोत सिंह सिद्धू अच्छे दोस्त भी थे.
दोनों खिलाड़ियों ने लंबे समय तक टेस्ट क्रिकेट में भारतीय पारी की शुरूआत साथ में ही की थी. मैदान में दोनों ही खिलाडियों की आपसी समझ भी अच्छी थी. यहां तक कि उस दौरे में तीन में जो एक टेस्ट मैच भारत ने जीता था उसमें इन्हीं दोनों खिलाडियों का भी रोल अहम था. सिद्धू ने पहली पारी में 82 और दूसरी पारी में 104 रन बनाए थे. मनोज प्रभाकर ने पहली पारी में तो सिर्फ 4 रन बनाए थे लेकिन दूसरी पारी में उन्होंने 95 रन बनाए थे. इसके अलावा मनोज प्रभाकर ने उस मैच में 6 विकेट भी लिए थे. उस मैच में ‘मैन ऑफ द मैच' का अवॉर्ड भी मनोज प्रभाकर को ही मिला था.
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साल 1993 की बात है. भारतीय टीम अजहरूद्दीन की कप्तानी में श्रीलंका के दौरे पर गई थी. तीन टेस्ट मैचों की सीरीज खेली जानी थी. उन दिनों खिलाड़ियों को होटल में ठहरने के लिए अलग अलग कमरे नहीं मिलते थे. नवजोत सिंह सिद्धू और मनोज प्रभाकर रूम पार्टनर थे. दोनों लगभग एक ही उम्र के थे. दोनों का करियर भी लगभग साथ ही शुरू हुआ था. हुआ यूं कि एक रोज रात को होटल के कमरे में ही फिल्म देखी जा रही थी.
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कप्तान अजहरूद्दीन के कमरे में कपिल देव, नवजोत सिंह सिद्धू और मनोज प्रभाकर कोई फिल्म देख रहे थे. नवजोत सिंह सिद्धू वो फिल्म पहले भी देख चुके थे. उन्होंने कपिल देव से कहा कि वो दूसरी फिल्म की डीवीडी लेकर अपने कमरे में जा रहे हैं, जहां वो टीम के दूसरे खिलाडियों के साथ उस फिल्म को देखेंगे. उनकी इस बात में किसी को कोई आपत्ति नहीं थी. नवजोत सिंह सिद्धू उठे और डीवीडी उठाने के लिए आगे बढ़े. इतनी देर में कमरे में एक तेज आवाज गूंजी- डीवीडी मत छूना शेरी. ये आवाज मनोज प्रभाकर की थी. सिद्धू को समझ ही नहीं आया कि प्रभाकर डीवीडी लेने से क्यों मना कर रहे हैं लेकिन वो चुपचाप बैठ गए. सिद्धू ने उसी फिल्म को दोबारा देखना शुरू कर दिया.
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थोड़ी देर में सिद्धू की नजर कमरे में रखे रसगुल्लों पर गई. सिद्धू अपनी जगह से उठे और उन्होंने रसगुल्ले की तरफ हाथ बढ़ाया. कमरे में दोबारा एक आवाज बड़ी तेजी से गूंजी- 'रसगुल्ले मत छूना शेरी.' शेरी सिद्धू का प्यार से बुलाया जाने वाला नाम है. इस बार सिद्धू को गुस्सा आ गया. उन्होंने आव देखा ना ताव मनोज प्रभाकर पर चढ़ाई कर दी. सिद्धू ने प्रभाकर को एक चपाट लगा भी थी. प्रभाकर बचने की कोशिश में अपनी जगह से भागे. इसी कोशिश में कमरे में रखी गई दो बेड के बीच की जगह में वो गिर भी गए. सिद्धू ने इसके बाद भी प्रभाकर को नहीं छोड़ा. उन्हें खींचकर बाहर निकाला. बाद में बाकी खिलाड़ियों के बीच बचाव पर ये लड़ाई शांत हुई.
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सिद्धू का कहना था कि वो खुद सभी खिलाडियों के लिए रसगुल्ले लाए थे, मनोज प्रभाकर उन्हें रोकने वाला कौन होता है. जबकि प्रभाकर का कहना था रसगुल्ले सिद्धू नहीं लाए बल्कि टीम के बाहर का कोई व्यक्ति लेकर आया था. प्रभाकर का कहना था कि उन्हें रसगुल्ले के खाने से परेशानी नहीं थी. वो तो सिद्धू को सिर्फ इतना कह रहे थे कि वो रसगुल्ले के डिब्बे में हाथ ना लगाएं बल्कि थोड़ा सब्र करें क्योंकि रूम सर्विस वालों को कह दिया गया है कि वो कमरे में कुछ प्लेट्स और चम्मच पहुंचा दें. गुस्से में प्रभाकर यहां तक कह गए थे कि अगर सिद्धू ने रसगुल्लों को हाथ से छुआ तो पूरा डब्बा बाहर फेंक देंगे. अब जब एक को गुस्सा आया तो दूसरे को भी आ गया. खैर किसी तरह मामला शांत हुआ और दोनों चुप हुए. उस रात मनोज प्रभाकर और नवजोत सिंह सिद्धू रूके तो एक ही कमरे में लेकिन दोनों के बीच बात नहीं हुई.
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अगले दिन नेट प्रैक्टिस होनी थी। मनोज प्रभाकर के हाथ में नई गेंद थी. उनकी गेंद में रफ्तार तो थी ही उन्होंने तय किया कि वो नेट्स में सिद्धू को परेशान किए बिना नहीं छोड़ेगे. सिद्धू मनोज प्रभाकर के इरादों को भांप चुके थे. उन्हें पता था कि उस रोज अगर वो प्रभाकर के सामने आ गए तो प्रभाकर उनके पैरों को निशाना बनाएंगे. मनोज प्रभाकर बताते हैं कि नेट्स में बल्लेबाजी की बारी आने के बाद भी उस रोज सिद्धू बल्लेबाजी करने ही नहीं आए. हालांकि सच ये भी है कि मनोज प्रभाकर और नवजोत सिंह सिद्धू अच्छे दोस्त भी थे.
दोनों खिलाड़ियों ने लंबे समय तक टेस्ट क्रिकेट में भारतीय पारी की शुरूआत साथ में ही की थी. मैदान में दोनों ही खिलाडियों की आपसी समझ भी अच्छी थी. यहां तक कि उस दौरे में तीन में जो एक टेस्ट मैच भारत ने जीता था उसमें इन्हीं दोनों खिलाडियों का भी रोल अहम था. सिद्धू ने पहली पारी में 82 और दूसरी पारी में 104 रन बनाए थे. मनोज प्रभाकर ने पहली पारी में तो सिर्फ 4 रन बनाए थे लेकिन दूसरी पारी में उन्होंने 95 रन बनाए थे. इसके अलावा मनोज प्रभाकर ने उस मैच में 6 विकेट भी लिए थे. उस मैच में ‘मैन ऑफ द मैच' का अवॉर्ड भी मनोज प्रभाकर को ही मिला था.
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