यह ख़बर 27 फ़रवरी, 2011 को प्रकाशित हुई थी

मास्टरों को ठीक करेगी मानक आचार संहिता

खास बातें

  • स्कूलों में छात्रों के अप्रत्याशित आचरण, शिक्षकों की प्रतिक्रिया, शारीरिक दंड, यौन दुर्व्यवहार आदि के कारण उत्पन्न विषम परिस्थितियों को देखते हुए राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) ने शिक्षकों के लिए मानक आचार संहिता पेश की है।
New Delhi:

स्कूलों में छात्रों के अप्रत्याशित आचरण, शिक्षकों की प्रतिक्रिया, शारीरिक दंड, यौन दुर्व्यवहार आदि के कारण उत्पन्न विषम परिस्थितियों को देखते हुए राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) ने शिक्षकों के लिए मानक आचार संहिता पेश की है। शिक्षक आचार संहिता में बच्चों की भावनात्मक संवेदना का खास ध्यान रखा गया है। शिक्षकों को बच्चों को डराने-धमकाने, परेशान करने, शारीरिक दंड देने, यौन उत्पीड़न की सख्त मनाही की गई है, जिससे छात्रों को मानसिक एवं भावनात्मक परेशानी से संरक्षण मिल सके। संहिता के अनुसार, शारीरिक दंड, जहां प्रकट रूप से दिखते हैं, वहीं भावनात्मक एवं यौन दुर्व्यवहार के घाव बाल मन को लम्बे समय तक पीड़ित करते हैं। इसकी गंभीरता को समझते हुए छात्रों के भावनात्मक एवं मानसिक संरक्षण पर कक्षा से जुड़े एनसीपीसीआर के नए दिशा-निर्देशों को शिक्षकों के व्यवहार का मार्गदर्शक सिद्धांत बताया गया है। एनसीटीई के अध्यक्ष प्रो मोहम्मद अख्तर सिद्दिकी ने कहा, इस आचार संहिता पर शिक्षविदों, सामाजिक संगठनों एवं शिक्षा के घटकों से राय आमंत्रित की गई है। उन्होंने कहा कि गुरु-शिष्य परंपरा के सुनहरे अतीत को सहेजने की कवायद के तहत तैयार एनसीटीई की शिक्षक आचार संहिता को तैयार करने में विश्व बैंक, अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ और राज्य सरकार से सलाह ली गई है। आचार संहिता में शिक्षकों को नैतिकता का ध्वजवाहक बताया गया है। उनके लिए यौन उत्पीड़न से जुड़े मामलों को शर्मनाक बताया गया है। शिक्षकों से उच्चतम न्यायालय और एनसीपीसीआर की ओर से तैयार उन दिशा-निर्देशों का सख्ती से पालन करने को कहा गया है, जो स्कूलों एवं कार्यस्थल से जुड़े यौन उत्पीड़न के बारे में हैं। एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक प्रो एके शर्मा की अध्यक्षता में गठित समिति ने इस आचार संहिता को तैयार किया है। आचार संहिता में सभी शिक्षकों को छात्रों से स्नेह रखने तथा भेदभावरहित एवं खुशनुमा माहौल में पठन-पाठन का कार्य करने की सलाह दी गई है, ताकि शिक्षा का स्तर और बच्चों का प्रदर्शन बेहतर हो। शिक्षकों को छात्रों के आध्यात्मिक, शारीरिक, सामाजिक, बौद्धिक, भावनात्मक और नैतिक विकास में सहायक बनने और स्कूली जीवन में बच्चों के आत्मसम्मान का आदर करने की सलाह दी गई है। शिक्षकों से बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र उद्घोषणा का अध्ययन करने को कहा गया है, जिस पर भारत ने हस्ताक्षर किए हैं। इसके अलावा बच्चों के अधिकारों एवं उनकी चिंताओं के बारे में बेहतर समझ बनाने के लिए राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की रिपोर्ट को भी पढ़ने की सलाह दी गई है। आचार संहिता में स्कूलों से अनुशासन बनाने रखने के लिए नियम बनाने का समर्थन करते हुए उनसे यह सुनिश्चित करने को कहा गया है, जिससे बच्चों के आत्मसम्मान का हनन नहीं हो। शिक्षकों से ऐसे योजनाबद्ध एवं सुनियोजित प्रयास करने को कहा गया है, जिससे बच्चों की वास्तविक क्षमता और प्रतिभा को सामने लाया जा सके। पुस्तक में दर्ज बातों को पढ़ाते हुए संविधान में कही गई बातों एवं मूल्यों का पालन करने की सलाह दी गई है। शिक्षकों को बच्चों से जुड़ी जानकारियों का प्रचार प्रसार नहीं करने और केवल वैध एवं जिम्मेदार व्यक्तियों को इसकी सूचना देने को कहा गया है, ताकि छात्रों एवं शिक्षकों में विश्वास के माहौल को सुदृढ़ बनाया जा सके। शिक्षकों से अभिभावकों, समुदाय और समाज के साथ सौहार्द्रपूर्ण संबंध बनाने को कहा गया है। अभिभावकों एवं शिक्षकों में उपयुक्त संवाद को छात्रों के लिए महत्वपूर्ण बताया गया है। ऐसी भावनाओं को फैलाने से भी बचने को कहा गया है, जिससे धर्म एवं भाषा के आधार पर भावनाएं आहत होती हों।


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