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This Article is From Dec 29, 2015

सुदर्शन पटनायक - जिसने रेत को दी नई जान, बनाई अनूठी पहचान

सुदर्शन पटनायक - जिसने रेत को दी नई जान, बनाई अनूठी पहचान
नई दिल्ली: मौजूदा दौर में अगर रेत-कलाकारी की बात होती है तो सुदर्शन पटनायक का नाम सबसे पहले लिया जाता है। सुदर्शन पटनायक भारत के महान रेत-कलाकारों में से एक हैं, जिन्होंने पूरी दुनिया में रेत-कलाकारी में नाम रोशन किया है। सुदर्शन ने रेत के ऊपर कई ऐसी कलाकृतियां पेश कीं, जिनकी जितनी भी तारीफ की जाए, कम है। बचपन में जब सुदर्शन के दोस्त पेन और पेंसिल का इस्तेमाल करते हुए चित्रकला करते थे, तब सुदर्शन पुरी के समंदर किनारे के रेत के ऊपर अपने दिल में भरा हुए दुख को कला के जरिये पेश करने की कोशिश करते थे।
 

जब पिता ने किया किनारा तो दादी बनी सहारा
सुदर्शन का जन्म 15 अप्रैल, 1977 को ओडिशा के पुरी जिले में हुआ। उनका बचपन काफी संघर्षपूर्ण रहा। जब वह चार साल के थे, तभी उनके पिता उनको छोड़कर चले गए। घर में खाने के लिए राशन नहीं होता था। सुदर्शन की दादी ने बड़ी कठिन परिस्थितियों में उन्हें पाला-पोसा और बड़ा किया। सुदर्शन की दादी मुक्ता देइ को 200 रुपये पेंशन मिलती थी। उसी पेंशन से वह सुदर्शन के साथ उनके और तीन भाइओं का भी पालन-पोषण करती थीं।
 

गरीबी के चलते छोड़नी पड़ी पढ़ाई
आर्थिक तंगी की वजह से सुदर्शन ज्यादा पढ़ नहीं पाए। छठी क्लास में स्कूल छूट गया। घर की हालत इतनी खराब थी कि सुदर्शन को आठ साल के उम्र में दूसरों के घर में काम करना पड़ा। सुदर्शन एक बड़े चित्रकार बनना चाहते थे,  लेकिन गरीबी के कारण चित्रकला में इस्तेमाल होने वाले सामान खरीदना उनके वश में नहीं था। लेकिन चित्रकला के प्रति अगाध प्रेम उन्हें पुरी के समंदर के किनारे खींच ले जाता था। काम खत्म करने के बाद सुदर्शन समंदर किनारे पहुंच जाते थे और रेत पर अपने अंदर छुपी हुई प्रतिभा को पेश करने की कोशिश करते।
 

देश से ज्यादा विदेश में मिली पहचान
सुदर्शन पटनायक की कला की देश से ज्यादा विदेश में सराहना हुई। 1995 में पहली बार रेत चित्रकला प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए उन्हें अमेरिका से न्योता आया, लेकिन वीजा न मिलने की वजह से वह वहां नहीं जा पाए। हाथ से एक मौका चला गया, लेकिन सुदर्शन हार मानने वाले नहीं थे। अपने काम में लगे रहे। धीरे-धीर दूसरे देशों से निमंत्रण आने लगा।
 

जीत चुके हैं कई अवार्ड्स
सुदर्शन को कई अवार्ड्स मिल चुके हैं। 2014 में उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया। 2008  में ओडिशा सरकार के द्वारा दिया जाने वाला 'सारला' अवार्ड से भी उनको नवाज़ा गया। कुछ दिन पहले सुदर्शन ने पुरी के समंदर के किनारे सबसे बड़ा रेत सांता क्लॉज बनाया और उसे लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स में जगह मिली है। सुदर्शन रेत-कलाकारी में 9 बार लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्ड्स में अपना नाम दर्ज करा चुके हैं। विदेश में सुदर्शन 50 से भी ज्यादा प्राइज जीत चुके हैं।
 

जागरूकता फैलाने के लिए किया रेत-कला का इस्तेमाल
सुदर्शन पटनायक रेत-कला के माध्यम से समाज में जागरूकता फैलाना की कोशिश कर रहे हैं। दुनिया में शांति के को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने अपनी कला का इस्तेमाल किया। ग्लोबल वार्मिंग, आतंकवाद ,एड्स, धूम्रपान जैसे मुद्दों पर भी वह जागरूकता लाने की कोशिश में जुटे रहे। सुदर्शन ने पुरी में 'सुदर्शन सैंड आर्ट इंस्टिट्यूट' नाम से एक संस्था चलाते हैं, जहां पूरी दुनिया से बच्चे रेत-कला सीखने आते हैं। वह ओडिशा अंतरराष्ट्रीय रेत-कला उत्सव के ब्रांड  एम्बैसेडर भी हैं।

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