सिरोही:
राजस्थान के सिरोही जिले का एक परिवार तंगहाली के कारण मानसिक तौर पर विक्षिप्त अपनी बेटी का इलाज करा पाने में सक्षम नहीं है। सरकार भी परिवार की मदद की जहमत नहीं उठा रही। यह लड़की 17 साल से भी ज्यादा समय से जंजीरों में कैद जीवन गुजार रही है। जयपुर से 400 किलोमीटर दूर स्थित सिरोही जिले के मंडर गांव में रहने वाली 20 वर्षीय बसंती को बचपन में ही मानसिक बीमारी हो गई थी। दरअसल बचपन में उसने आकाश में बिजली चमकने की आवाज सुनी थी और वह नजारा देखा भी था, इससे उसे मानसिक आघात पहुंचा था। बसंती की मां शांति देवी ने बताया कि उस आघात के बाद वह महीनों तक कोमा जैसी अवस्था में रही और उससे बाहर आई तो उसने चिल्लाना और लोगों पर चीजें फेंकना शुरू कर दिया। शांति देवी कहती हैं, "वह कई रात सोई नहीं और उसने चिल्ला-चिल्लाकर हमें भी जगाना शुरू कर दिया। पड़ोसी उसकी शिकायत करते थे। इसलिए हमें उसे लोहे की जंजीरों में बांधकर रखना पड़ा।" इस परिवार के लिए असली परेशानी तब शुरू हुई जब ढाई साल पहले लम्बी बीमारी के बाद बसंती के पिता की मौत हो गई। शांति देवी कहती हैं, "हमारे पास जितना भी पैसा था वह उसके पिता किशनराम पर खर्च हो गया। अब हमारे पास बिल्कुल पैसा नहीं है। मुझे अपने 12 वर्षीय बेटे को काम के लिए पुणे भेजना पड़ा। उसे कक्षा छह के बाद स्कूली पढ़ाई छोड़नी पड़ी।" उन्होंने कहा, "पति के इलाज में पूरा पैसा खर्च हो जाने के बाद मैं बसंती के इलाज के विषय में सोच भी नहीं सकती। घरों में काम करके मैं जितना कमा पाती हूं उससे तो हमारा गुजारा हो पाना भी मुश्किल है तब इलाज की बात तो छोड़ ही दीजिए।" शांति देवी की चार बेटियां हैं, जिनमें बसंती सबसे छोटी है। तीन बड़ी बेटियों का विवाह हो चुका है लेकिन बसंती का कोई भविष्य नहीं है। शांति देवी कहती हैं कि उन्हें इस मामले में सरकार से अब तक कोई मदद नहीं मिली है। उन्होंने बताया, "मैंने कई प्रशासनिक अधिकारियों से सम्पर्क किया लेकिन अब तक मदद के लिए कोई भी आगे नहीं आया। मुझे सिर्फ आश्वासन मिला। मैंने एक विकलांगता प्रमाणपत्र की मांग की थी ताकी हमें आर्थिक मदद मिल सके लेकिन वह भी देने से इनकार कर दिया गया।"
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