मेघालय की एक गुफा के भीतर चूना-पत्थर के ढेर ने जलवायु परिवर्तन के अनसुलझे राज को जानने में मदद की है. वैज्ञानिकों का कहना है कि भारत में गुफा की छत के टपकाव से फर्श पर जमा हुए चूना-पत्थर के स्तंभ की तलछटी (स्टलैग्माइट) से देश में मानसून के पैटर्न, सूखे और बाढ़ के बारे में बेहतर अनुमान लगाया जा सकता है.
अमेरिका में वंडेरबिल्ट यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं ने पिछले 50 साल में मेघालय में माव्मलु गुफा के भीतर टपकने वाले चूना-पत्थर (स्ट्लैग्माइट) के बढ़ते ढेर का अध्ययन किया है. मेघालय को दुनिया में सबसे ज्यादा वर्षा वाले क्षेत्र के तौर पर माना जाता है.
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‘साइंटिफिक रिपोर्ट' में प्रकाशित अध्ययन में पूर्वोत्तर भारत में सर्दी की बारिश और प्रशांत महासागर में जलवायु की स्थिति में असमान्य संबंध पाया गया. माव्मलु गुफा और आस-पास के इलाके में चूना-पत्थर का ढेर घटनाओं की पुनरावृत्ति, पिछले कुछ हजार वर्षों में भारत में सूखे का संकेत देता है.
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भारत सहित मानसूनी क्षेत्रों में चूना-पत्थर का यह स्तंभ वैश्विक पर्यावरण तंत्र को समझने में मददगार हो सकता है और यह पर्यावरण में होने वाले परिवर्तन को भी रेखांकित करता है. वंडेरबिल्ट यूनिवर्सिटी में पीएचडी छात्र एली रॉने ने बताया कि गुफा के भीतर हवा और जल के प्रवाह से शुष्क मौसम में टपकने वाले चूने के ढेर को बढ़ने में मदद मिलती है इससे अंदर की परिस्थिति पर गहरा असर पड़ता है.
इनपुट - भाषा
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