आमतौर पर महिलाओं को अधिक श्रृंगार करने के लिए जाना जाता है, लेकिन सच्चाई यह है कि नागा साधु महिलाओं से भी कहीं अधिक श्रृंगार करते हैं। महाकुम्भ के पहले शाही स्नान के दौरान नागा साधुओं के ये श्रृंगार वाकई में महिलाओं को भी मात देते नजर आए।
पहले शाही स्नान के दौरान विभिन्न अखाड़ों के नागा साधुओं के विभिन्न रूप देखने को मिले।
जूना अखाड़े से जुड़े नागा संत श्रवण ने बातीचत के दौरान कहा, "हम तो महिलाओं से भी अधिक श्रृंगार करते हैं। महिलाएं तो सोलह श्रृंगार ही करती हैं, हम 17 श्रृंगार करते हैं।"
अखाड़ों में नागा साधु भी अलग-अलग तरह के होते हैं। कुछ नरम दिल तो कुछ अक्खड़ स्वभाव के होते हैं। कुछ नागा संतों के तो रूप-रंग इतने डरावने हैं कि उनके पास जाने से ही डर लगता है।
बातचीत के दौरान नागा संत ने कहा कि शाही स्नान से पहले नागा साधु पूरी तरह सज-धज कर तैयार होते हैं और फिर अपने ईष्ट की प्रार्थना करते हैं।
नागाओं के सत्रह श्रृंगार के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि लंगोट, भभूत, चंदन, पैरों में लोहे या फिर चांदी का कड़ा, अंगूठी, पंचकेश, कमर में फूलों की माला, माथे पर रोली का लेप, कुंडल, हाथों में चिमटा, डमरू या कमंडल, गुथी हुई जटाएं और तिलक, काजल, हाथों में कड़ा, बदन में विभूति का लेप और बाहों पर रुद्राक्ष की माला, 17 श्रृंगार में शामिल होते हैं।
नागा संत बताते हैं कि लोग नित्य क्रिया करने के बाद खुद को शुद्ध करने के लिए गंगा स्नान करते हैं, लेकिन नागा सन्यासी शुद्धीकरण के बाद ही शाही स्नान के लिए निकलते हैं।
महाकुम्भ पहुंचे नागा सन्यासियों की एक खासियत यह भी है कि इनका मन बच्चों के समान निर्मल होता है। ये अपने अखाड़ों में हमेशा धमा-चौकड़ी मचाते रहते हैं। इनका मठ इनकी अठखेलियों से गूंजता रहता है।
अखाड़ों की बात करें तो महानिर्वाणी, जूना और निरंजनी अखाड़ों में सबसे अधिक नागा साधुओं की तादाद है।
महाकुम्भ में लाखों की संख्या में मौजूद नागा सन्यासियों के बीच एक बाल नागा अतुल गिरी श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। इनकी सुरक्षा की कमान जटाधारी नागाओं के ही हाथ में है, आम आदमी तो उनकी तरफ फटकने की हिम्मत भी नहीं कर सकता।
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