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This Article is From Jan 11, 2017

हाथ-पैर हैं लकवे का शिकार, लेकिन जज़्बा पहाड़ से ऊंचा : तीन साल तक खुदाई कर बना डाली सड़क

हाथ-पैर हैं लकवे का शिकार, लेकिन जज़्बा पहाड़ से ऊंचा : तीन साल तक खुदाई कर बना डाली सड़क
आंशिक रूप से लकवाग्रस्त शशि जी पिछले तीन साल से सड़क के लिए खुदाई कर रहा है
तिरुअनंतपुरम: शशि जी. पिछले तीन साल से हर रोज़ अपने घर के बाहर सड़क बनाने के लिए खुदाई का काम कर रहा है... केरल में रहने वाले इस शख्स के लिए यह काम उतना आसान नहीं है, क्योंकि पेड़ों पर चढ़कर नारियल तोड़ने वाला 59-वर्षीय शशि आंशिक रूप से लकवाग्रस्त है.

18 साल पहले तिरुअनंतपुरम में नारियल के एक पेड़ से गिरने के बाद वह बिस्तर पर पड़े रहने के लिए मजबूर हो गया था. धीरे-धीरे वह बिस्तर से तो उठ गया, लेकिन उसका दायां बाजू और पांव लकवे का शिकार रह गए, और उसके बाद वह बहुत धीरे-धीरे ही चल पाता था.

इसके बाद जीवनयापन करने के लिए शशि ने ग्राम पंचायत से तिपहिया दिलवाने की गुहार की, ताकि वह कोई काम शुरू कर सके... तब उसे याद दिलाया गया कि उसका घर शहर से सटे जिस ग्रामीण इलाके में है, वहां कोई सड़क ही नहीं है, सिर्फ एक संकरी पगडंडी है... फिर सड़क बनाने के लिए दी गई उसकी अर्ज़ियों पर लोग या तो उसका मज़ाक उड़ाते थे, या घूरने लगते थे...

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शशि ने बताया, "पंचायत ने मुझसे कहा कि तुम्हें कोई वाहन देने की कोई तुक नहीं है, क्योंकि तुम लकवे का शिकार हो... उन्होंने सड़क बनवाने का आश्वासन दिया, लेकिन वह कभी बन नहीं पाई..."

सो, शशि ने खुद खुदाई शुरू कर दी, और फिर रुका ही नहीं...

वह हर रोज़ छह-छह घंटे अपनी कुदाली लेकर उस पठार को तोड़ने में जुटा रहता, जिस पर से चढ़कर लोगों को जाना पड़ता था... उसकी इस अविश्वसनीय इच्छाशक्ति का परिणाम यह रहा कि अब वहां 200-मीटर की एक कच्ची सड़क है, जो इतनी चौड़ी है कि छोटे वाहन आराम से वहां से गुज़र सकते हैं...

शशि ने NDTV से कहा, "मैं बस खोदता चला गया, क्योंकि लोगों ने सोचा मैं नहीं कर पाऊंगा... मैंने सोचा, अगर मैं खोदता रहूंगा, तो न सिर्फ सड़क बन जाएगी, बल्कि मेरी फिज़ियोथैरेपी भी हो जाएगी..."

शशि का कहना है, "अगर पंचायत मुझे कोई वोहन नहीं भी देती है, तो भविष्य में कम से कम लोगों के पास आने-जाने के लिए सड़क तो होगी..."

शशि के पड़ोस में रहने वाली 52-वर्षीय सुधा सड़क कके लिए शशि की शुक्रगुज़ार है... वह कहती है, "अब आना-जाना बहुत आसान हो गया है... अब हमें उस ऊंचे पठार पर चढ़ना नहीं पड़ता... मैं उसे घंटों तक खुदाई करते देखकर चिंता करती थी, लेकिन अब मैं विस्मित हूं..."

अपनी कहानी सुनाते-सुनाते एक वक्त ऐसा भी आया, जब शशि की आंखें भर आईं... उसकी पत्नी ने भी अपने और पति के भविष्य के बारे में सोचकर रोना शुरू कर दिया... वह बताती है, "मैं इनके सामने गिड़गिड़ाती थी कि इस तरह खुदाई न करें... अगर इन्हें फिर कुछ हो जाता, तो हमारे पास इलाक करवाने के लिए पैसे भी नहीं थे... हम भारी कर्ज़े में डूबे हुए हैं... अब सभी लोग बन रही सड़क के बारे में बात करते हैं, लेकिन हमारे बारे में क्या...?"

खैर, खुद को संयत करते हुए शशि मुस्कुराकर कहता है, "बस, अब इस सड़क का काम खत्म करने में मुझे सिर्फ एक महीना लगेगा... लेकिन पंचायत ने अभी तक मुझे मेरा तिपहिया नहीं दिया है..."

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