
साइकिल की सवारी से हवाई सावारी और कर्नाटक में बेल्लारी और भाजपा पर शासन करने वाले खनन बादशाह रेड्डी बंधुओं और उनके साथियों को एक कठोर सबक सीखने को मिला है कि पैसे और भीड़ हमेशा वोट में नहीं बदलते।
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बेंगलुरु:
साइकिल की सवारी से हवाई सावारी और कर्नाटक में बेल्लारी और भाजपा पर शासन करने वाले खनन बादशाह रेड्डी बंधुओं और उनके साथियों को एक कठोर सबक सीखने को मिला है कि पैसे और भीड़ हमेशा वोट में नहीं बदलते।
विधानसभा चुनाव के सिर पर सवार होने के बावजूद राजनीतिक गठबंधन के लिए कोई पूछ नहीं रहा है। मतदाताओं को आकर्षित करने में कमजोरी के कारण रेड्डी बंधुओं और उनके सहयोगी बी श्रीरामुलू इस कठोर सच्चाई का सामना कर रहे हैं। श्रीरामुलू कभी राज्य सरकार में मंत्री थे।
श्रीरामुलू ने नवंबर 2011 में भाजपा छोड़ दी थी क्योंकि डीवी सदानंद गौड़ा के नेतृत्व में बनी भाजपा की दूसरी सरकार में उन्हें जगह नहीं दी गई थी। पार्टी से अलग होने के बाद उन्होंने बीएसआर कांग्रेस नाम से पार्टी बनाई।
लौह अयस्क के अवैध खनन और निर्यात के आरोपों में प्रभारी संरक्षक के तौर पर जी जर्नादन रेड्डी हैदराबाद के चंचलगुडा जेल और पूर्वी बेंगलुरु के पाराप्पाना अग्राहारा स्थित केंद्रीय कारावास में समय गुजार रहे थे इसलिए श्रीरामुलू ने राज्य के कई हिस्सों में रैलियां आयोजित की और भीड़ जुटाने में कामयाब रहे।
उन्हें जर्नादन रेड्डी के दो भाइयों में से एक भाजपा विधायक जी सोमशेखर रेड्डी का समर्थन मिल रहा था।
दोनों भाजपा को यह साबित करने में जुटे रहे कि रेड्डी और उसके सहयोगियों के बगैर भाजपा राज्य में कोई ताकत नहीं है।
इस सपने पर तब पानी फिर गया जब 11 मार्च को विधानसभा चुनावों की घोषणा हुई। ठीक इसी समय नगर निकायों के चुनाव परिणाम आए।
श्रीरामुलू की पार्टी लौह अयस्क से प्रचुरता वाले क्षेत्र बेल्लारी जिले में एक भी सीट पाने में नाकामयाब रही, जबकि इस इलाके पर रेड्डी और श्रीरामुलू का 2004 से राज रहा था।
नगर निकायों के चुनाव में प्रदेश स्तर पर पार्टी का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा। 207 शहरी निकायों के लिए 4900 प्रतिनिधियों के लिए हुए चुनाव में पार्टी ने 1500 प्रत्याशी उतारे थे। इस चुनाव में पार्टी मात्र 86 सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी।
तब से सोमशेखर रेड्डी लोगों की नजरों से ओझल हो गए जबकि श्रीरामुलू गठबंधन के लिए अपना हाथ आगे लिए घूम रहे हैं।
विधानसभा चुनाव के सिर पर सवार होने के बावजूद राजनीतिक गठबंधन के लिए कोई पूछ नहीं रहा है। मतदाताओं को आकर्षित करने में कमजोरी के कारण रेड्डी बंधुओं और उनके सहयोगी बी श्रीरामुलू इस कठोर सच्चाई का सामना कर रहे हैं। श्रीरामुलू कभी राज्य सरकार में मंत्री थे।
श्रीरामुलू ने नवंबर 2011 में भाजपा छोड़ दी थी क्योंकि डीवी सदानंद गौड़ा के नेतृत्व में बनी भाजपा की दूसरी सरकार में उन्हें जगह नहीं दी गई थी। पार्टी से अलग होने के बाद उन्होंने बीएसआर कांग्रेस नाम से पार्टी बनाई।
लौह अयस्क के अवैध खनन और निर्यात के आरोपों में प्रभारी संरक्षक के तौर पर जी जर्नादन रेड्डी हैदराबाद के चंचलगुडा जेल और पूर्वी बेंगलुरु के पाराप्पाना अग्राहारा स्थित केंद्रीय कारावास में समय गुजार रहे थे इसलिए श्रीरामुलू ने राज्य के कई हिस्सों में रैलियां आयोजित की और भीड़ जुटाने में कामयाब रहे।
उन्हें जर्नादन रेड्डी के दो भाइयों में से एक भाजपा विधायक जी सोमशेखर रेड्डी का समर्थन मिल रहा था।
दोनों भाजपा को यह साबित करने में जुटे रहे कि रेड्डी और उसके सहयोगियों के बगैर भाजपा राज्य में कोई ताकत नहीं है।
इस सपने पर तब पानी फिर गया जब 11 मार्च को विधानसभा चुनावों की घोषणा हुई। ठीक इसी समय नगर निकायों के चुनाव परिणाम आए।
श्रीरामुलू की पार्टी लौह अयस्क से प्रचुरता वाले क्षेत्र बेल्लारी जिले में एक भी सीट पाने में नाकामयाब रही, जबकि इस इलाके पर रेड्डी और श्रीरामुलू का 2004 से राज रहा था।
नगर निकायों के चुनाव में प्रदेश स्तर पर पार्टी का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा। 207 शहरी निकायों के लिए 4900 प्रतिनिधियों के लिए हुए चुनाव में पार्टी ने 1500 प्रत्याशी उतारे थे। इस चुनाव में पार्टी मात्र 86 सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी।
तब से सोमशेखर रेड्डी लोगों की नजरों से ओझल हो गए जबकि श्रीरामुलू गठबंधन के लिए अपना हाथ आगे लिए घूम रहे हैं।
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