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This Article is From Aug 05, 2016

एक जगह जहां सांप को बेटों की तरह पाला जाता है, इनकी मौत पर देना पड़ता है सामूहिक भोज ..

एक जगह जहां सांप को बेटों की तरह पाला जाता है, इनकी मौत पर देना पड़ता है सामूहिक भोज ..
प्रतीकात्‍मक फोटो
महासमुंद.: छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में जोगीनगर के हर घर में जहरीला सांप पलते हैं. सांपों का लालन-पालन बेटों की तरह किया जाता है. पाले हुए सांप की किसी कारणवश पिटारे में ही मौत हो जाए तो पालक द्वारा पूरे सम्मान के साथ मृत सांप का अंतिम संस्कार किया जाता है. पालक अपनी मूंछ-दाढ़ी मुड़वाता है और पूरे कुनबे को भोज कराता है. महासमुंद नगर के उत्तर में 10 किमी की दूरी पर स्थित है जोगी नगर. नगर पंचायत तुमगांव की सीमा में आबाद यह बस्ती लगभग ढाई दशक पूर्व अमात्य गौड़ समुदाय में घुमंतू खानाबदोश सपेरों द्वारा बसाई गई है.

यहां के लोगों का मुख्य पेशा है, सांप पकड़ना और लोगों के बीच उसकी नुमाइश कर (दर्शन कराकर) आजीविका चलाना. इस काम में बच्चे भी पूरी निर्भीकता से बड़ों का साथ देते हैं. इसलिए हर घर में सांप पाला जाना स्वाभाविक है. खास बात यह है कि किसी भी सांप को सपेरा केवल दो माह तक ही अपने पास रखता है. फिर उसे कहीं दूर उचित जगह पर खुला छोड़ दिया जाता है. दिव्य औषधीय जड़ी-बूटी के जानकर जनजातीय सपेरे समय-समय पर सांप-बिच्छू से पीड़ित लोगों को  उपचार सुविधा भी उपलब्ध कराते हैं.

बहरहाल, सपेरों के सामने अपने पुश्तैनी कार्य को जारी रखने में अब दिक्कतें पेश आने लगी हैं. वन विभाग सांप पालने पर आपत्ति के साथ लगातार दबाव बना रहा है कि सांप को पकड़कर रखना बंद करें.

सात पुत्री और तीन पुत्रों सहित 10 बच्चों का बाप कृष्णा नेताम बताता है कि उनके सामाजिक ताने-बाने में खास दस्तूर यह है कि विवाह संस्कार के दौरान वधु पक्ष की ओर से वर पक्ष को दहेज स्वरूप 21  सांपों का उपहार देना अनिवार्य है. इसके बिना विवाह नहीं होता. अगर वधू पक्ष के यहां 21 सांप न हुए तो वह बस्ती के अन्य सपेरों से उनके पालतू सांप लेता है और उपहार (दहेज) की रस्म पूरी करता है.

कृष्णा के अनुसार, उन्हें अपनी संस्कृति और परंपरा को बचाए रखने की छूट मिलनी चाहिए. सपेरे का यह भी कहना है कि वे लोग सांप पकड़ने के लिए कभी जंगलों में नहीं जाते, बल्कि केवल उन्हीं सांपों को पकड़ते हैं, जो रिहाइशी क्षेत्रों में घुस आते हैं और जिनसे अनिष्ट की आशंका होती है. ऐसे में उन्हें सांप से दूर रहने के लिए कहना उचित नहीं हो सकता.

जोगीनगर के सपेरों का कहना है कि पीढ़ियों से चली आ रही परपंरा के विपरीत सांपों का सहारा लेकर यहां-वहां, दर-दर भटकना उन्हें भी नहीं भाता. वे भी कृषि और रोजगार से जुड़कर स्थिर जिंदगी जीना चाहते हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. सपेरों की बसाहट को ढाई दशक हो गए, पर आज तक न ही किसी को इंदिरा आवास योजना का लाभ मिल सका है, न ही एकल बत्ती बिजली कनेक्शन योजना के अंतर्गत आज तक कोई झोपड़ी ही रोशन हो सका है.

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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