पटना:
सारण जिले में मशरक प्रखंड के एक सरकारी विद्यालय में मध्याह्न भोजन के कारण बीमार हुए कई बच्चों का इलाज पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल (पीएमसीएच) में चल रहा है। यहां भर्ती बच्चों द्वारा बुधवार को सुनाई गई आपबीती से साफ हो जाता है कि सरकारी योजनाएं और इंतजामात कितने असरकारी हैं।
बिहार के सारण जिले के मशरक प्रखंड के नवसृजित प्राथमिक विद्यालय धरमसती, डंडामन में मंगलवार को मध्याह्न भोजन खाने के बाद बीमार हुए बच्चों में से अबतक 21 की मौत हो चुकी है।
पीएमसीएच में जिंदगी और मौत से जूझ रही इसी विद्यालय की चौथे वर्ग की छात्रा कांति कुमारी रुधे गले से कहती है कि उसे कुछ मालूम नहीं कि उसे यहां कैसे लाया गया। कांति बड़े मासूमियत से कहती है, "उसे मंगलवार को दोपहर में स्कूल में खाना दिया गया था, परंतु अन्य दिनों की तरह खाने में स्वाद नहीं था। इस कारण मेरे साथ कई बच्चों ने खाना छोड़ दिया था। परंतु शिक्षिका के डांटने के बाद डर के कारण पूरा खाना खाया।"
कांति ने आगे कहा, "खाना खाने के बाद पेट में दर्द होने लगा, तब शिक्षिका ने घर जाने को कहा दिया। अभी विद्यालय के बाहर निकली ही थी कि बेहोश हो गई।" इसके बाद उसे कुछ पता नहीं।
यह स्थिति केवल कांति की ही नहीं है। कांति के अलावा पीएमसीएच में भर्ती कई बच्चों की कहानी एक जैसी है।
विद्यालय में महिला रसोइया मंजू देवी के दो बेटे आदित्य और अभिषेक का भी पीएमसीएच में इलाज चल रहा है। मंजू देवी भी बीमार स्थिति में पीएमसीएच में भर्ती हैं। पीड़ित बच्चों का कहना है कि उन्हें नहीं मालूम कि उनके खाने में क्या मिला था और क्या गड़बड़ था? अन्य दिनों की भांति ही दोपहर के समय उन्हें खाना मिला था।
पीएमसीएच में इलाजरत करीब सात वर्षीय खुशी कहती है कि उन्हें जोर की भूख लगी थी, इसलिए उसने अन्य दिनों की तरह खाना खाया था। अपने कई मित्रों के बीमार होने की खबर बताए जाने पर वह कहती है, "सभी का इलाज चल रहा है, मेरे सभी दोस्त ठीक हो जाएंगे।" परंतु वह यह भी कहती है कि "अब स्कूल का खाना नहीं खाएंगे, वर्ना फिर सुई (इंजेक्शन) लगेगा।"
पुलिस सूत्रों के मुताबिक मंगलवार को नवसृजित प्राथमिक विद्यालय धरमसती, डंडामन में दोपहर के भोजन में भात और आलू तथा सोयाबीन की सब्जी बच्चों को दी गई थी।
शिक्षा विभाग के एक अधिकारी के अनुसार इस घटना ने मध्याह्न भोजन योजना की प्रभावी निगरानी और स्थानीय स्तर पर कुव्यवस्था की पोल खोल दी है। राज्य में आए दिन मध्याह्न भोजन को लेकर बच्चों और अभिभावकों द्वारा शिकायतें दर्ज कराई जाती रही हैं, लेकिन शिक्षा विभाग ने इसे गंभीरता से नहीं लिया था।
गौरतलब है कि मध्याह्न भोजन निदेशालय द्वारा 26 मार्च, 2012 को निर्देश जारी किया गया था कि बच्चों को भोजन देने के पूर्व विद्यालय के शिक्षक, प्रधानाध्यापक और रसोइए द्वारा खाने का स्वाद चखने के बाद ही बच्चों को खाना दिया जाएगा, परंतु अधिकांश विद्यालयों में इस निर्देश का पालन नहीं किया जाता है।
बिहार के सारण जिले के मशरक प्रखंड के नवसृजित प्राथमिक विद्यालय धरमसती, डंडामन में मंगलवार को मध्याह्न भोजन खाने के बाद बीमार हुए बच्चों में से अबतक 21 की मौत हो चुकी है।
पीएमसीएच में जिंदगी और मौत से जूझ रही इसी विद्यालय की चौथे वर्ग की छात्रा कांति कुमारी रुधे गले से कहती है कि उसे कुछ मालूम नहीं कि उसे यहां कैसे लाया गया। कांति बड़े मासूमियत से कहती है, "उसे मंगलवार को दोपहर में स्कूल में खाना दिया गया था, परंतु अन्य दिनों की तरह खाने में स्वाद नहीं था। इस कारण मेरे साथ कई बच्चों ने खाना छोड़ दिया था। परंतु शिक्षिका के डांटने के बाद डर के कारण पूरा खाना खाया।"
कांति ने आगे कहा, "खाना खाने के बाद पेट में दर्द होने लगा, तब शिक्षिका ने घर जाने को कहा दिया। अभी विद्यालय के बाहर निकली ही थी कि बेहोश हो गई।" इसके बाद उसे कुछ पता नहीं।
यह स्थिति केवल कांति की ही नहीं है। कांति के अलावा पीएमसीएच में भर्ती कई बच्चों की कहानी एक जैसी है।
विद्यालय में महिला रसोइया मंजू देवी के दो बेटे आदित्य और अभिषेक का भी पीएमसीएच में इलाज चल रहा है। मंजू देवी भी बीमार स्थिति में पीएमसीएच में भर्ती हैं। पीड़ित बच्चों का कहना है कि उन्हें नहीं मालूम कि उनके खाने में क्या मिला था और क्या गड़बड़ था? अन्य दिनों की भांति ही दोपहर के समय उन्हें खाना मिला था।
पीएमसीएच में इलाजरत करीब सात वर्षीय खुशी कहती है कि उन्हें जोर की भूख लगी थी, इसलिए उसने अन्य दिनों की तरह खाना खाया था। अपने कई मित्रों के बीमार होने की खबर बताए जाने पर वह कहती है, "सभी का इलाज चल रहा है, मेरे सभी दोस्त ठीक हो जाएंगे।" परंतु वह यह भी कहती है कि "अब स्कूल का खाना नहीं खाएंगे, वर्ना फिर सुई (इंजेक्शन) लगेगा।"
पुलिस सूत्रों के मुताबिक मंगलवार को नवसृजित प्राथमिक विद्यालय धरमसती, डंडामन में दोपहर के भोजन में भात और आलू तथा सोयाबीन की सब्जी बच्चों को दी गई थी।
शिक्षा विभाग के एक अधिकारी के अनुसार इस घटना ने मध्याह्न भोजन योजना की प्रभावी निगरानी और स्थानीय स्तर पर कुव्यवस्था की पोल खोल दी है। राज्य में आए दिन मध्याह्न भोजन को लेकर बच्चों और अभिभावकों द्वारा शिकायतें दर्ज कराई जाती रही हैं, लेकिन शिक्षा विभाग ने इसे गंभीरता से नहीं लिया था।
गौरतलब है कि मध्याह्न भोजन निदेशालय द्वारा 26 मार्च, 2012 को निर्देश जारी किया गया था कि बच्चों को भोजन देने के पूर्व विद्यालय के शिक्षक, प्रधानाध्यापक और रसोइए द्वारा खाने का स्वाद चखने के बाद ही बच्चों को खाना दिया जाएगा, परंतु अधिकांश विद्यालयों में इस निर्देश का पालन नहीं किया जाता है।
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