यूपी के बाइस ज़िलों में 118 मदरसे ऐसे हैं, जो ज़मीन पर नहीं, बल्कि सरकारी फाइलों में ही चल रहे हैं। मदरसों के नाम पर इन्हें सरकार से करोड़ों रुपये सालाना मिलते हैं। एनडीटीवी के कमाल ख़ान कई ज़िलों में इन फ़र्ज़ी मदरसों के पतों पर गए, तो देखा कि उन पतों पर कहीं कोई दुकान चल रही है, तो कहीं कोई ब्यूटी पार्लर, तो कहीं किसी का घर है। सरकार ने अब इस घोटाले पर जांच बिठा दी है।
लखनऊ में ऐसे ही एक मकान में रहने वाली रंजना जोशी हैरत से कहती हैं कि वह यहां कई सालों से रह रही हैं और यहां कभी कोई मदरसा नहीं था।
गौरतलब है कि यूपी में करीब 10 हजार मदरसे हैं। कुछ सरकारी मदद से तो कुछ चंदे से चलते हैं। मदरसों को यह सरकारी मदद उनकी इमारत के लिए, टीचरों के वेतन, फर्नीचर खरीदने, कंप्यूटर खरीदने आदि के लिए दी जाती है।
सरकारी जांच में अब तक यह पता चला है कि 118 ऐसे मदरसे हैं जो फाइलों पर ही चल रहे हैं और उन्हें सरकारी मदद बदस्तूर जारी है।
यूपी सरकार में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री आजम खान ने बताया कि जब इस बात का पता लगाया गया कि सरकारी मदद से क्या हुआ। तब इस बात का खुलासा हुआ कि कई मदरसे वास्तविक्ता में हैं नहीं, और इनकी तादाद भी कम नहीं है।
ऐसे ही एक फर्जी मदरसे की तलाश में एनडीटीवी के कमाल खान एक उर्दू अखबार के दफ्तर पहुंच गए। इस अखबार के संपादक हिसाम सिद्दीकी ने बताया कि उनके दफ्तर के सामने जिस मस्जिद में नमाद पढ़ी जाती है, वहां सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार मदरसा चलता है। एक बार गलती से एक चेक उनके दफ्तर में डाकिया दे गया। उन्होंने बताया कि डाकिया के आने के तुरंत बात ही अल्पसंख्यक विभाग का एक इंस्पैक्टर आया और चेक ले गया। इस दौरान उन्हें पता चला कि साल में 70-75 हजार रुपये साल के ग्रांट के तौर पर वह फर्जी रूप से दिलवाते हैं। चेक आते ही विभाग के अधिकारी अपना हिस्सा लेने आ जाते हैं। उन्हें यह पता रहता है कि डाक विभाग से चेक कब भेजा जाता है।
झांसी में एक मदरसे के पते पर ब्यूटी पार्लर मिला। दस्तावेजों में मेरठ में करीब 100 मदरसे हैं और इनमें से 34 फर्जी पाए गए हैं। यहां पर एक मदरसे के पते में परचून की दुकान चल रही है।
यूपी सरकार में मंत्री आजम खान कहना है कि धर्म के काम में अधर्म का तरीका नहीं होना चाहिए। मदरसे का पैसा सही लोगों तक पहुंचना चाहिए।
जानकारी के अनुसार फर्जी मदरसों का यह धंधा दशकों से चल रहा है। आरोप है कि इस घोटाले में 65 फीसदी रकम अल्पसंख्यक कल्याण विभाग और 35 फीसदी रकम मदरसा चलाने वाले को मिलती है। अब इस बात की जांच की जा रही है कि किसने कितनी रकम खाई।
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