
मौत एक कड़वी सच्चाई है, जो आया है उसे एक ना एक दिन जाना भी होगा. किसी अपने के निधन पर उसके अपने टूट कर बिखर जाते हैं और परिवार में मातम छा जाता है. इंसान की मौत के बाद उसे अग्नि दी जाती है या फिर दफनाया जाता है. अलग-अलग धर्म और उनके रीति-रिवाज के अनुसार मृतक का अंतिम संस्कार किया जाता है. कई देश ऐसे भी हैं, जहां मरने के बाद शव को ना तो जलाया जाता है और ना ही दफनाया, बल्कि ईको-फ्रेंडली प्रोसेस विद्युत शवदाह गृह (Electric Crematoriums) के जरिए डिस्पोज किया जाता है. यह दाह संस्कार की यह मॉडर्न विधि है, जिसे लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में चौंकाने वाले मिथकों और अंधविश्वासों को फैलाया गया है.
इलेक्ट्रिक अंतिम संस्कार प्रोसेस क्या है? (What is Electric Cremation)
विद्युत दाह संस्कार, जिसमें शव को 800 से 1000 डिग्री सेल्सियस तक के अत्यधिक तापमान पर रखा जाता है, जो श्मशान घाट में होने वाले दाह संस्कार की तुलना में अधिक तीव्र और कम प्रदूषणकारी होता है. हालांकि, इन हाई-टेक्निक भट्टियों के अंदर जो कुछ होता है, उससे कई लोगों में भ्रम और भय पैदा हो गया है. ऐसी खबरें भी आई हैं कि इस प्रक्रिया के दौरान शव हिलते-डुलते हैं और उनकी आवाजें सुनाई देती हैं. इस घटना ने यह अफवाह भी फैला दी
है कि शवदाह गृह में मृतक 'जीवित' होते हैं, यह एक भयानक स्थिति है, जो सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो और वास्तविक रिपोर्टों के जरिए काफी पॉपुलर हो गई है.
देखें Video:
संकेतों के पीछे की सच्चाई क्या है? (Electric Cremation Facts)
एक मेडिकल कंटेंट क्रिएटर ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक वीडियो शेयर किया है. वीडियो में, विद्युत शवदाह गृह की पूरी प्रक्रिया को विस्तार से समझाया और दिखाया गया है, जिसमें बताया गया है कि कैसे शवों को राख में नहीं बल्कि हड्डियों के टुकड़ों में बदल दिया जाता है, जिन्हें बाद में बारीक कर अस्थि कलश में डाल दिया जाता है. लेकिन लोगों के बीच बीच फैला भ्रम और मृत्यु के बाद 'जीवन' के इन कथित संकेतों के पीछे की सच्चाई क्या है? इस पर न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. सुधीर शाह के कहा, ऐसी घटनाएं दाह संस्कार प्रक्रिया का स्वाभाविक परिणाम हैं.
लोगों ने क्या-क्या भ्रम फैलाए ? (Electric Cremation Myths)
डा. शाह ने कहा, 'मौत के बाद शरीर में कोई जीवन नहीं रहता है, लेकिन तीव्र गर्मी के संपर्क में आने से शरीर में रासायनिक और शारीरिक परिवर्तन होते हैं, मांसपेशियों के ऊतक सिकुड़ जाते हैं और शरीर के तरल पदार्थ वाष्पीकृत होने लगते हैं, इसके चलते दृश्य मरोड़ या आवाजें आने लगती हैं, जिनका लोग गलत अर्थ निकाल रहे हैं, ये आवाजें, जिन्हें कभी-कभी पॉपिंग, क्रैकिंग या यहां तक कि कराहने जैसी आवाजें भी कहा जाता है, शरीर के अंदर फंसी गैसों या तरल पदार्थों के निकलने के कारण ही यह एक्टिव होती हैं. इस प्रक्रिया को सिर्फ वैज्ञानिक रूप से ही समझा जा सकता है, लेकिन इस प्रक्रिया से अनजान लोगों के लिए चौंकाने वाली बात ही रहेगी'.
लोगों को जागरूक करने की जरूरत (Electric Cremations Awareness)
उन्होंने आगे कहा, लकड़ियों पर शव को जलाने से पर्यावरण पर बुरा असर पड़ता है. इस प्रक्रिया में मांस और हड्डियां समेत पूरा शरीर कई घंटों बाद राख में बदलता है. वहीं, इलेक्ट्रिक अंतिम संस्कार तकनीक का इस्तेमाल पर्यावरण की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए किया जाता है, लेकिन लोगों ने इसमें भी भ्रम पैदा कर दिए हैं. अवैज्ञानिक लोग इसे देवीय संकेत और चमत्कार आदि का नाम दे देते हैं और भ्रम फैलाते हैं कि इंसान का जीते-जी अंतिम संस्कार कर दिया. अधिकारियों और हेल्थ एक्सपर्ट ने इस प्रक्रिया के बारे में लोगों को ज्यादा से ज्यादा जागरूक करने की अपील की है.
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