प्रतीकात्मक तस्वीर
झांसी:
देश में इन दिनों 'भारत माता की जय' पर जिरह छिड़ी हुई है इतना ही नहीं जय के आधार पर ही देशभक्त और देशद्रोही तय किए जा रहे हैं, मगर बुंदेलखंड के झांसी जिले में 'वीरा' एक ऐसा गांव है, जहां होली के मौके पर हिंदू ही नहीं, मुसलमान भी देवी के जयकारे लगाकर गुलाल उड़ाते हैं।
झांसी के मउरानीपुर कस्बे से लगभग 12 किलोमीटर दूर है वीरा गांव। यहां हरसिद्घि देवी का मंदिर है। यह मंदिर उज्जैन से आए परिवार ने वर्षो पहले बनवाया था, इस मंदिर में स्थापित प्रतिमा भी यही परिवार अपने साथ लेकर आए थे।
मान्यता है कि इस मंदिर में आकर जो भी मनौती (मुराद) मांगी जाती है, वह पूरी होती है। क्षेत्र के पूर्व विधायक प्रागीलाल बताते हैं कि वीरा गांव में होली का पर्व उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है, यहां होलिका दहन से पहले ही होली का रंग चढ़ने लगता है, मगर होलिका दहन के एक दिन बाद यहां की होली सांप्रदायिक सद्भाव का संदेश देने वाली होती है।
जिसकी मनौती पूरी होती है, वे होली के मौके पर कई किलो और क्विंटल तक गुलाल लेकर हरसिद्धि देवी के मंदिर में पहुंचते हैं। यही गुलाल बाद में उड़ाया जाता है।
प्रागीलाल का कहना है कि इस होली में हिंदुओं के साथ मुसलमान भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं और देवी के जयकारे भी लगाते हैं। होली के मौके पर यहां का नजारा उत्सवमय होता है, क्योंकि लगभग हर घर में मेहमानों का डेरा होता है, जो मनौती पूरी होने के बाद यहां आते हैं।
स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार अशोक गुप्ता ने बताया कि बुंदेलखंड सांप्रदायिक सदभाव की मिसाल रहा है। यहां कभी धर्म के नाम पर विभाजन रेखाएं नहीं खिंची हैं। होली के मौके पर वीरा में आयोजित समारोह इस बात का जीता जागता प्रमाण है।
यहां फाग (जिसे भोग की फाग कहा जाता है) के गायन की शुरुआत मुस्लिम समाज का प्रतिनिधि ही करता रहा है, उसके गायन के बाद ही गुलाल उड़ने का क्रम शुरू होता रहा है। अब सभी समाज के लोग फाग गाकर होली मनाते हैं। इसमें मुस्लिम भी शामिल होते हैं।
व्यापारी हरिओम साहू के मुताबिक, होली के मौके पर इस गांव के लोग पुराने कपड़े नहीं पहनते, बल्कि नए कपड़ों को पहनकर होली खेलते हैं, क्योंकि उनके लिए यह खुशी का पर्व है।
सामाजिक कार्यकर्ता संजय सिंह होली को बुंदेलखंड के लोगों के लिए सांप्रदायिक सद्भाव और सामाजिक समरसता का पर्व बताते हैं। उनका कहना है कि होली ही एक ऐसा त्योहार है, जब यहां के लोग सारी दूरियों और अन्य कुरीतियों से दूर रहते हुए एक दूसरे के गालों पर गुलाल और माथे पर तिलक लगाते हैं। वीरा गांव तो इसकी जीती-जागती मिसाल है।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
झांसी के मउरानीपुर कस्बे से लगभग 12 किलोमीटर दूर है वीरा गांव। यहां हरसिद्घि देवी का मंदिर है। यह मंदिर उज्जैन से आए परिवार ने वर्षो पहले बनवाया था, इस मंदिर में स्थापित प्रतिमा भी यही परिवार अपने साथ लेकर आए थे।
मान्यता है कि इस मंदिर में आकर जो भी मनौती (मुराद) मांगी जाती है, वह पूरी होती है। क्षेत्र के पूर्व विधायक प्रागीलाल बताते हैं कि वीरा गांव में होली का पर्व उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है, यहां होलिका दहन से पहले ही होली का रंग चढ़ने लगता है, मगर होलिका दहन के एक दिन बाद यहां की होली सांप्रदायिक सद्भाव का संदेश देने वाली होती है।
जिसकी मनौती पूरी होती है, वे होली के मौके पर कई किलो और क्विंटल तक गुलाल लेकर हरसिद्धि देवी के मंदिर में पहुंचते हैं। यही गुलाल बाद में उड़ाया जाता है।
प्रागीलाल का कहना है कि इस होली में हिंदुओं के साथ मुसलमान भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं और देवी के जयकारे भी लगाते हैं। होली के मौके पर यहां का नजारा उत्सवमय होता है, क्योंकि लगभग हर घर में मेहमानों का डेरा होता है, जो मनौती पूरी होने के बाद यहां आते हैं।
स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार अशोक गुप्ता ने बताया कि बुंदेलखंड सांप्रदायिक सदभाव की मिसाल रहा है। यहां कभी धर्म के नाम पर विभाजन रेखाएं नहीं खिंची हैं। होली के मौके पर वीरा में आयोजित समारोह इस बात का जीता जागता प्रमाण है।
यहां फाग (जिसे भोग की फाग कहा जाता है) के गायन की शुरुआत मुस्लिम समाज का प्रतिनिधि ही करता रहा है, उसके गायन के बाद ही गुलाल उड़ने का क्रम शुरू होता रहा है। अब सभी समाज के लोग फाग गाकर होली मनाते हैं। इसमें मुस्लिम भी शामिल होते हैं।
व्यापारी हरिओम साहू के मुताबिक, होली के मौके पर इस गांव के लोग पुराने कपड़े नहीं पहनते, बल्कि नए कपड़ों को पहनकर होली खेलते हैं, क्योंकि उनके लिए यह खुशी का पर्व है।
सामाजिक कार्यकर्ता संजय सिंह होली को बुंदेलखंड के लोगों के लिए सांप्रदायिक सद्भाव और सामाजिक समरसता का पर्व बताते हैं। उनका कहना है कि होली ही एक ऐसा त्योहार है, जब यहां के लोग सारी दूरियों और अन्य कुरीतियों से दूर रहते हुए एक दूसरे के गालों पर गुलाल और माथे पर तिलक लगाते हैं। वीरा गांव तो इसकी जीती-जागती मिसाल है।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
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