यह ख़बर 09 जुलाई, 2012 को प्रकाशित हुई थी

बुलंदशहर : सरकारी अस्पताल में स्वीपर और वार्डब्वॉय बने डॉक्टर

खास बातें

  • सीएमएस शिशिर श्रीवास्तव की जानकारी में ड्यूटी पर तैनात डॉक्टरों की मौजूदगी में सफाई कर्मचारी घायल बच्चों के ज़ख्मों पर टांके लगाता है, और वार्डब्वॉय उन्हें इंजेक्शन लगाता है।
बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश):

बीमार गरीबों के लिए एक ही सहारा होता है - सरकारी अस्पताल, लेकिन उत्तर प्रदेश में बुलंदशहर के सरकारी अस्पताल अब बीमारों को ज़िन्दगी नहीं, मौत बांट रहे हैं, और यहां के स्वीपर (सफाईकर्मी) और वार्डब्वॉय आजकल डॉक्टरों का भूमिका निभा रहे हैं। बुलंदशहर जिला अस्पताल के ये स्वीपर और वार्डब्वॉय वह सब करते हैं, जिसके लिए इन्हीं अस्पतालों में मोटी पगार पा रहे एमबीबीएस डॉक्टर रखे गए हैं। और इस सच्चाई का सबसे ज़्यादा खतरनाक पहलू यह है कि यह सब अस्पताल के सीएमएस, यानि मुख्य चिकित्साधिकारी, की झंडाबरदारी में ही हो रहा है।

राज्य सरकार जिस अस्पताल पर हर साल सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च करती है, उसी में भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी के चलते सीएमएस शिशिर श्रीवास्तव की जानकारी में यहां के एमरजेंसी वार्ड में ड्यूटी पर तैनात डॉक्टरों की मौजूदगी में ही सफाई कर्मचारी घायल बच्चों के ज़ख्मों पर टांके लगाता है, और वार्डब्वॉय उन्हें इंजेक्शन लगाता है। मरीजों की जान से खिलवाड़ का यह सिलसिला इस वार्ड में कई महीनों से जारी है।

यही नहीं, इसी जिला अस्पताल के परिसर में सीएमओ, यानि जिले में स्वास्थ्य विभाग के मुखिया, का भी कार्यालय है, लेकिन वह भी लापरवाही में पीछे नहीं हैं। बताया जाता है कि सीएमओ ने कई महीनों से एमरजेंसी वार्ड में कोई दौरा किया ही नहीं है।

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उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार प्रदेश से झोलाछाप डॉक्टरों का उन्मूलन करने पर तुली है, लेकिन सरकारी अस्पतालों में मरीजों की ज़िन्दगी से खेल रहे इन हाथों और झोलाछाप डॉक्टरों में भला क्या अंतर है। अब सवाल यह है कि जो समाजवादी पार्टी प्रदेश में कानून-व्यवस्था और जनता को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देने का नारा लगाकर सत्ता में आई थी, अब उसी के राज में क्या गरीब और बेबस लोग इन बे-पढ़े-लिखे डॉक्टरों के हाथों शिकार होते रहेंगे।